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Written By सुरेश एस डुग्गर

कश्मीर में 1990 जैसे तलाशी अभियान

कश्मीर में 1990 जैसे तलाशी अभियान - Jammu Kashmir, Indian Army, Search operations
श्रीनगर। पिछले दो महीनों से अप्रत्यक्ष तौर पर कश्मीर वादी को सेना के हवाले किया जा चुका है। इसे जम्मू कश्मीर सरकार के कई अधिकारी भी अब दबी जुबान में स्वीकार करने लगे हैं। ऐसा करने के पीछे सबसे बड़ा कारण कश्मीर के बेकाबू हो चुके हालात हैं जिसको थामने की खातिर सेना 1990 के दशक की तरह बड़े-बड़े तलाशी अभियान छेड़े हुए है।
 
हालांकि इस अरसे में कुछ तलाशी अभियानों में सेना को बड़ी-बड़ी कामयाबियां भी मिली हैं, लेकिन अधिकतर तलाशी अभियान इसलिए कामयाब नहीं हो पाए, क्योंकि कहीं पर आतंकी भागने में कामयाब रहे तो कहीं पर पत्थरबाजों ने उन्हें भागने में मदद की।
 
इतना जरूर था कि अपने तलाशी अभियानों के बारे में अन्य सुरक्षाबलों को, खासकर जम्मू कश्मीर पुलिस को सूचित नहीं किए जाने से उनमें अच्छी खासी नाराजगी है। हालंकि जम्मू कश्मीर पुलिस के अधिकारी का कहना है कि समय पर सूचना मिल जाने पर वे पत्थरबाजों से निपटने के इंतजाम कर आतंकियों को भागने से रोक सकते थे।
 
लेकिन सेना अपने तलाशी अभियानों के प्रति जानकारियों को गुप्त ही रखने के मूड में है। एक सेनाधिकारी का कहना है कि पिछले अनुभवों के कारण वे किसी भी तलाशी अभियान की समय से पहले सूचना किसी अन्य को नहीं दे सकते, क्योंकि इससे आतंकियों के भाग निकलने का खतरा बना रहता है।
 
दरअसल, सेना द्वारा आप ही तलाशी अभियानों को अंजाम दिए जाने की नीति को दूसरे नजरिए से भी देखा जा रहा है। आम जनता का मानना है कि कश्मीर को सेना के हवाले किया जा चुका है और इसका खामियाजा स्थानीय पुलिस अधिकारियों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्हें स्थानीय लोगों के आक्रोश का शिकार होना पड़ रहा है।
 
यह सच है कि करीब 17 सालों के बाद सेना ने कश्मीर में तलाशी अभियानों को फिर से आरंभ किया है। करीब 17 साल पहले वह आतंकवाद की शुरुआत के समय से लेकर कई साल तक अकेले ही ऐसे अभियान चलाती रही थी और बाद में कश्मीर का कंट्रोल बीएसएफ के हवाले कर दिया गया था। और अब एक बार फिर सेना द्वारा तलाशी अभियानों को छेड़े जाने के कारण यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कश्मीर के हालात 1990 के दशक जैसे और बेकाबू हो चुके हैं।
 
यह पूरी तरह से सच भी है। पहले की ही तरह अब कश्मीरी सड़कों पर हैं। आतंकी उन्हें ढाल बनाकर हमले कर रहे हैं। बस, इसमें नई बात पत्थरबाजी भी जुड़ गई है, जो दोनों ही पक्षों के लिए घातक साबित हो रही है। अगर पत्थरबाजी से सेना के जवान भी जख्मी हो रहे हैं तो जवाबी कार्रवाई में उनके द्वारा गोलियां चलाए जाने से कई कश्मीरी युवा मारे जा रहे हैं या फिर जख्मी हो रहे हैं।