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Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 4 मई 2025 (22:55 IST)

विदेश मंत्री जयशंकर की यूरोप को दो टूक, भारत को दोस्त चाहिए, ज्ञान देने वाले नहीं

Foreign Minister Jaishankar
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस-यूक्रेन संघर्ष सहित प्रमुख भू-राजनीतिक उथल-पुथल के प्रति कुछ यूरोपीय देशों के दृष्टिकोण पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए रविवार को कहा कि भारत को ‘भागीदारों’ की तलाश है, न कि ‘उपदेशकों’  की। उन्होंने भारत के साथ गहरे संबंध विकसित करने के लिए यूरोप को कुछ संवेदनशीलता दिखाने और पारस्परिक हितों को ध्यान में रखने की भी सलाह दी।
 
जयशंकर ने एक संवाद सत्र के दौरान जयशंकर ने कहा कि यूरोप ‘हकीकत की एक विशेष स्थिति में प्रवेश कर चुका है’। यह बात उन्होंने भारत की ‘रूस को लेकर यथार्थवादी नीति’ और इस बात को समझाते हुए कही कि भारत और रूस के बीच संबंध क्यों ‘एक महत्वपूर्ण तालमेल’ हैं।
 
उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा ‘रूसी यथार्थवाद’  की वकालत की है और संसाधन प्रदाता एवं उपभोक्ता के रूप में भारत और रूस के बीच ‘‘महत्वपूर्ण सामंजस्य’’ है और वे इस मामले में एक दूसरे के ‘‘पूरक’’ हैं। उन्होंने यह टिप्पणी ट्रम्प प्रशासन द्वारा रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध विराम समझौते के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के बीच की।
रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने रूस के साथ संबंध बरकरार रखे और उसने पश्चिमी देशों की बढ़ती बेचैनी के बावजूद रूसी कच्चे तेल की खरीद में वृद्धि की। उनकी यह टिप्पणी यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की उच्च प्रतिनिधि काजा कल्लास के इस वक्तव्य के दो दिन बाद आई है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव ‘चिंताजनक’ है। उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद दोनों पक्षों से ‘संयम बरतने’ को भी कहा।
 
सोशल मीडिया पर कई पर्यवेक्षकों ने पीड़ित और हमलावर के बीच समानता दर्शाने के लिए उनकी टिप्पणियों की आलोचना की। विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना करते हुए कहा कि इसने ‘‘यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है।’’
 
उन्होंने ‘आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम’ में कहा कि मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना।’’
 
विदेश मंत्री ने आर्कटिक में हालिया घटनाक्रम के दुनिया पर पड़ने वाले असर और बदलती वैश्विक व्यवस्था के क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर व्यापक चर्चा करते हुए ये बातें कहीं।
 
उन्होंने पश्चिमी देशों पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘हमने किसी भी पक्ष को ‘ऐसा’ या ‘वैसा’ करने के लिए नहीं कहा है और यह याद रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक ऐसा शिष्टाचार है, जो हमें हमेशा नहीं दिया जाता। इसलिए हमें (बस यह) सलाह दी जाती है कि हमें क्या करना चाहिए।’’
 
जयशंकर ने यूरोप से भारत की अपेक्षाओं संबंधी एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि उसे उपदेश देने के बजाय पारस्परिकता के ढांचे के आधार पर कार्य करना शुरू करना होगा।
 
उन्होंने कहा कि जब हम दुनिया को देखते हैं, तो हम साझेदारों की तलाश करते हैं, हम उपदेशकों की तलाश नहीं करते, विशेषकर ऐसे उपदेशकों की, जो अपनी बातों का अपने देश में स्वयं पालन नहीं करते, लेकिन अन्य देशों को उपदेश देते हैं।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अब भी इस समस्या से जूझ रहा है। कुछ हिस्से में बदलाव आया है।’’ उन्होंने कहा कि यूरोप को ‘‘कुछ हद तक वास्तविकता का एहसास’’ हुआ है।
 
उन्होंने कहा, ‘‘अब हमें यह देखना होगा कि वे इस पर आगे बढ़ पाते हैं या नहीं।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘लेकिन हमारे दृष्टिकोण से (बात करें तो) यदि हमें साझेदारी करनी है, तो कुछ आपसी समझ होनी चाहिए, कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए, कुछ पारस्परिक हित होने चाहिए तथा यह अहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है।’’
 
उन्होंने कहा कि और मुझे लगता है कि ये सभी कार्य यूरोप के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्तरों पर प्रगति पर हैं, इसलिए (इस मामले में) कुछ देश आगे बढ़े हैं, कुछ थोड़े कम। 
 
जयशंकर ने भारत-रूस संबंधों पर कहा कि दोनों देशों के बीच ‘‘संसाधन प्रदाता और संसाधन उपभोक्ता’’ के रूप में ‘‘अहम सामंजस्य’’ है और वे इस मामले में एक दूसरे के ‘‘पूरक’ हैं।  उन्होंने कहा कि जहां तक ​​रूस का सवाल है, हमने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत करने का दृष्टिकोण अपनाया है। भाषा Edited by: Sudhir Sharma
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