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  4. I wish men also had menstruation, sharp comment by a judge in Supreme Court
Last Modified: बुधवार, 4 दिसंबर 2024 (19:40 IST)

काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, सुप्रीम कोर्ट में जज की तीखी टिप्पणी

supreme court
Supreme Court on petition of dismissed judge: उच्चतम न्यायालय ने प्रदर्शन के आधार पर राज्य की एक महिला न्यायाधीश को बर्खास्त करने और गर्भ गिरने के कारण उसे हुई पीड़ा पर विचार न करने के लिए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय से नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर पुरुषों को भी मासिक धर्म से गुजरना पड़े तो क्या हो। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायामूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह ने दीवानी न्यायधीशों की बर्खास्तगी के आधार के बारे में उच्च न्यायालय से स्पष्टीकरण मांगा।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि पुरुष न्यायधीशों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे। मुझे यह कहने में कोई झिझक महसूस नहीं हो रही। महिला गर्भवती हुई और उसका गर्भ गिर गया। गर्भ गिरने के दौरान महिला को मानसिक और शारीरिक आघात झेलना पड़ता है।...काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तो उन्हें इससे संबंधित दुश्वारियों का पता चलता। ALSO READ: दिल्ली प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- ग्रैप-4 प्रतिबंधों में बिना अनुमति ढील न दी जाए
 
शीर्ष अदालत ने लिया था स्वत: संज्ञान : उन्होंने न्यायिक अधिकारी के आकलन पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की, जिसने दीवानी न्यायाधीश को गर्भ गिरने के कारण पहुंचे मानसिक व शारीरिक आघात को नजरअंदाज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला दीवानी न्यायाधीशों की बर्खास्तगी पर 11 नवंबर, 2023 को स्वत: संज्ञान लिया था। ALSO READ: कवि प्रदीप की पंक्तियों का सुप्रीम कोर्ट में उल्लेख, एक घर का सपना कभी ना छूटे
 
मप्र हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने हालांकि एक अगस्त को पुनर्विचार करते हुए 4 अधिकारियों ज्योति वरकड़े, सुश्री सोनाक्षी जोशी, सुश्री प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया तथा अन्य दो अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को राहत नहीं दी। ALSO READ: बुलडोजर जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान, क्या बोले CJI
 
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन :  अधिवक्ता चारु माथुर के माध्यम से दायर एक न्यायाधीश की याचिका में दलील दी गई कि 4 साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड और एक भी प्रतिकूल टिप्पणी न मिलने के बावजूद, उन्हें कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सेवा से उनकी बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
 
याचिका में कहा गया है कि यदि कार्य मूल्यांकन में उनके मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश की अवधि को शामिल किया गया तो यह उनके साथ घोर अन्याय होगा। याचिका में कहा गया है कि यह स्थापित कानून है कि मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश एक महिला और शिशु का मौलिक अधिकार है, इसलिए मातृत्व व शिशु देखभाल के लिए ली गईं छुट्टियों के आधार पर प्रदर्शन का मूल्यांकन याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala