...तो सात टुकड़ों में बंट जाएगा चीन
नई दिल्ली। एक पुरानी कहावत है- 'गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं'। शायद चीन की ओर से लगातार आ रही धमकियां भी इसी ओर संकेत दे रही हैं। दरअसल, इन धमकियों के पीछे चीन का डर ज्यादा दिखाई दे रहा है। चीन भी आंतरिक अलगाव से जूझ रहा है। ऐसे में यदि युद्ध छिड़ गया तो चीन कई टुकड़ों में बंट जाएगा।
जानकारी के मुताबिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। बताया जा रहा है कि जियांग जेमिन के शंघाई गुट और हु जिन्ताओ के बीजिंग गुट का चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के झेनजियांग गुट के बीच गुप्त युद्ध छिड़ा हुआ है और ये एक-दूसरे के प्रभाव को कम करने के लिए 'डर्टी पॉलिटिक्स' का भी सहारा लेने से नहीं चूक रहे हैं।
आने वाले महीनों खासकर पार्टी के 19वें अधिवेशन से पहले यह टकराव और बढ़ने की संभावना है। ऐसे में अटकलें यह भी हैं कि अगर ऐसी ही स्थिति रहती है तो चीन सात टुकड़ों में बंट जाएगा। खबरों के मुताबिक चीनी सरकार के खिलाफ आंतरिक विद्रोह के स्वर तेजी से उठ रहे हैं। यदि ऐसे में युद्ध छिड़ जाता है तो चीन को खुद को बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा।
चीन में बढ़ती अशांति पर बारीकी नजर रखने वाले विश्लेषकों और जासूसों का मानना है कि विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकताओं के लापता होने से चीन के कई आतंरिक इलाकों में भारी अराजकता की स्थिति है। देशी और विदेशी मीडिया पर सेंसरशिप से भी वर्तमान शासन के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा है। मीडिया पर क्रूर नियंत्रण से चीन के प्रांतों में विरोध प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं। सूत्रों के अनुसार कुछ भूमिगत कार्यकर्ताओं ने कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं राष्ट्रीय कांग्रेस से पहले जिनपिंग के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह होने की आशंका भी जताई है।
खबरों के अनुसार अगर चीन में सत्तारूढ़ पार्टी की गुटीय कलह और शासन के खिलाफ विद्रोह बढ़ता है और एक क्रांति सामने आती है तो झिंजियांग, मांचुरिया, हांगकांग, तिब्बत, चेंगदू, झांगज़ुंग और शंघाई जैसे राज्य चीन से अलग हो सकते हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील टेंग बियाओ ने द संडे स्टैंडर्ड को बताया कि चीन में गतिरोध बढ़ रहा है और राष्ट्रपति का ध्यान भारत के साथ डोकलाम विवाद पर है।
डोकलाम विवाद के पीछे भी माना जा रहा है कि सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ाकर जिनपिंग पार्टी की राष्ट्रीय कांग्रेस से पहले अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं। दरअसल, जिनपिंग का असली मकसद युद्ध नहीं बल्कि पार्टी को भीतर खुद को मजबूत बनाना है। इसके अलावा साम्यवादी चीन में अमीर और गरीब के बीच भी अंतर बढ़ता ही जा रहा है। खबरों के मुताबिक कई समूहों ने झिजियांग क्षेत्र का समर्थन किया था और राज्य सुरक्षा मंत्रालय के खूफिया सूचनाओं के मुताबिक प्रशिक्षित जिहादियों के झिजियांग प्रांत में लौटने की सूचना भी मिली थी। झिजियांग प्रांत के लोगों में इसलिए भी नाराजगी है कि चीनी सरकार ने विश्वविद्यालों से उइघुर भाषा को हटाकर मंदारिन भाषा को अनिवार्य बना दिया है।