चम्बल घाटी में अब गूंज रही है शेरों की दहाड़
इटावा। डकैतों के आतंक का पर्याय रही चम्बल घाटी के बीहड़ में जहां कभी गोलियों की गूंज सुनाई देती थी, आज वहां शेरों की दहाड़ सुनाई देने लगी है।
80 के दशक के प्रारंभ में डकैतों से प्रभावित यमुना-चम्बल घाटी की खबरें दे चुका वार्ता का यह संवाददाता उस समय खुश होने के साथ ही हैरान रह गया, जब उसने यहां बन रही सफारी के चारों ओर हल्के पीले रंग की एक बड़ी चहारदीवारी देखी।
कभी इस जगह मलखान सिंह, मुस्तकीम, लालाराम-शिवराम, घनश्याम उर्फ घनसा, विक्रम मल्लाह, कुसमा नैन जैसे खूंखार डकैतों और पुलिस तथा प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बटालियन के बीच मुठभेड़ों के दौरान गोलीबारियों की आवाजें सुनाई देती थीं लेकिन अब शेरों की दहाड़ और पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी हैं और इन भयावह घाटियों की गड्ढों से भरी कच्ची सड़कों की जगह सफारी तक पक्की सड़कें दिखाई देती हैं।
सफारी के एनिमल हाउस के बाड़े में कम से कम 6 एशियाई शेर हरी-भरी घास पर अपनी शाहाना चाल में निर्भय विचरण करते दिखाई देते हैं। उनके रखवाले धूप सेंक रहे इन शेरों के सम्मोहित कर देने वाले नजारे से विस्मय व विमुग्ध हैं और उत्साह से भरे हुए उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब पर्यटकों का हुजूम उन्हें देखने के लिए सफारी में उमड़ेगा।
इस अनूठे काम को अंजाम देने के लिए नियुक्त अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं कि सफारी के काम को जल्दी पूरा कर लिए जाए ताकि इसे पर्यटकों के लिए शीघ्र खोला जा सके।
ऐसा लगता है कि वे चेन्नई के भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों की इन खबरों से प्रफुल्लित हैं कि यहां काम कर रहा प्रजनन केंद्र सिंह शावकों के लिए उपयुक्त है और परिवार बनाने के लिए तैयार शेरनी की राह में जलवायु आड़े नहीं आएगी।
इटावा-ग्वालियर मार्ग पर आगरा से 116 किलोमीटर दूर स्थित फिशर फॉरेस्ट में 1,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली इस सफारी के औपचारिक उद्घाटन के बारे में अभी निर्णय नहीं हुआ है। इसे राष्ट्रीय वन्यजीव प्राधिकरण से मंजूरी मिलने का इंतजार है।
सफारी के लिए व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी ले रहे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अपने पिता और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के 77वें जन्मदिन के अवसर पर 22 नवंबर को इस क्षेत्र में आए थे और उन्होंने अधिकारियों को इसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य बनाने के लिए काम में गति लाने और यहां अधिक जानवर लाने के निर्देश दिए थे।
गुजरात के जूनागढ़ से कम से कम 3 शेर सफारी में जल्द आने वाले हैं। संभवत: नए साल पर उनके बहुप्रतीक्षित आगमन से यहां शेरों की संख्या बढ़कर 9 हो जाएगी और जैसे ही उनका प्रजनन शुरू हो जाएगा, परियोजना पूरी गति से आगे बढ़ने लगेगी।
गुजरात से वन्यजीव विशेषज्ञ कई बार इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और उनका मानना है कि चीजें जैसे ही व्यवस्थित हो जाएंगी, जलवायु और अन्य कारक यहां शेरों की आबादी बढ़ाने के काम में अड़चन नहीं बनेंगे।
युवा होते शेरों और सिंह शावकों की असामयिक मौत होने जैसी शुरुआती आशंकाओं को पीछे रखते हुए अधिकारियों का कहना है कि वन्यजीवों की विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण के देश के कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में यह सफारी कारगर साबित होगी।
इस परियोजना से उम्मीद लगाए क्षेत्र के निवासियों ने वार्ता से कहा कि पर्यावरणीय पर्यटन को बढ़ावा मिलने से आगे चलकर उनके जीवन में भी बदलाव आएगा। अगर यह सफारी कामयाब रहती है तो एशियाई शेरों के संरक्षण में मददगार होगी जिनकी संख्या देश में तेजी से घट रही है और विश्व में 530 से भी कम रह गई है।
गुजरात के गिर वन में अफ्रीकी शेरों की उपप्रजाति 'लियो पर्सिका' के नाम से जानी जाने वाली एशियाई शेरों की संख्या लगभग 523 है और इनमें से कुछ की गुजरात में हाल में आई बाढ़ में मौत हो गई है। अभयारण्य में 2010 में हुई गणना के मुकाबले इनकी संख्या में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस साल मई में गणना के बाद अधिकारियों ने बताया था कि अभयारण्य और उसके पास के वन क्षेत्र में 109 शेर, 201 शेरनियां और 213 शावक हैं।
दुनिया में यह अभयारण्य एशियाई शेरों का पहला और अंतिम आवास था पर इटावा की सफारी उनका दूसरा घर होगी। (वार्ता)