नई दिल्ली, पक्षियों को हर जगह देखा जा सकता है, फिर चाहे वह शहरी इलाके हों, या फिर ग्रामीण क्षेत्र। पक्षियों को पार्क से लेकर जंगलों, पहाड़ों, और आर्द्रभूमि और तटों के आसपास देखा जा सकता है।
कुछ पक्षी ऐसे भी हैं, जिनकी गतिविधियां और व्यवहार मौसमी बदलावों की पहचान भी कराती हैं। हालांकि, मनुष्य अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गया है कि उसे अधिकतर पक्षियों के नाम तक याद नहीं रहे हैं। लेकिन, कोविड-19 महामारी के कारण एक बार फिर मनुष्य प्रकृति की तरफ अग्रसर हुआ है। यह महामारी मानव जाति के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती है। लेकिन, महामारी के इस दौर ने पक्षियों के प्रति जागरूकता और उनके कल्याण के लिए प्रकृति के महत्व को उजागर किया है।
पक्षियों की कई प्रजाति विलुप्त हो रही हैं। उनके संरक्षण के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है। पक्षियों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर मनाया जाने वाला विश्व प्रवासी पक्षी दिवस इसकी एक बानगी कहा जा सकता है।
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य प्रवासी पक्षियों के प्रति वैश्विक समुदाय में जागरूकता पैदा करना और उनके बचाव के लिए जरूरी उपाय तलाशने एवं उनकी आवश्यकता पर बल देना है। विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाने की कोई निश्चित तारीख नही है। इसे साल में दो बार मई और अक्तूबर महीने के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है।
1993 में पहली बार अमेरिका में विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया गया। यह दिन पश्चिमी दुनिया में सफलतापूर्वक मनाया जा रहा था। लेकिन, दुनिया के बाकी हिस्सों में इसे नही मनाया जा रहा था। उसके बाद से प्रवासी पक्षियों के लिए एक दिन निश्चित किए जाने का विचार किया गया। वर्ष 2006 में अफ्रीकी-यूरेशियन माइग्रेटरी वॉटरबर्ड्स (एईडब्ल्यूए) और वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों (सीएमएस) के सचिवालय के सहयोग से हर वर्ष विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की शुरुआत हुई। हर वर्ष इसकी एक अलग थीम होती है। वर्ष 2021 की थीम “सिंग, फ्लाई सोर-लाइक ए बर्ड” है।
अधिकांश पक्षी कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, और बदलते मौसम के अनुरूप से वे एक से दूसरे राज्य में प्रवास करते रहते हैं। पक्षियों की कई प्रजातियां तो ऐसी हैं, जो हजारों मील का सफर तय करके दूसरे देश पहुंच जाती हैं। इसके अलावा, पक्षी अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए सर्वोत्तम परिस्थितियों और आवास की तलाश में सैकड़ों और हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं।
ज्यादातर पक्षी उत्तरी क्षेत्र से दक्षिणी मैदानों की ओर पलायन करते हैं। हालांकि, कुछ पक्षी अफ्रीका के दक्षिणी भागों में प्रजनन करते हैं, और सर्दियों में तटीय जलवायु का आनंद लेने के लिए प्रवास पर मैंदानों की ओर निकल पड़ते हैं। अन्य पक्षी सर्दियों के महीनों के दौरान मैदानी क्षेत्र में रहते हैं, और गर्मियों में पहाड़ों की ओर चले जाते हैं।
प्रवासी पक्षियों को कई खतरों का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें मुख्य रूप से प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। प्रदूषण से न केवल स्थानीय पक्षी प्रभावित होते हैं, बल्कि इससे प्रवासी पक्षियों के लिए संकट खड़ा हो रहा है। प्रदूषण के कारण पक्षियों का जीवन बेहद मुश्किल हो जाता है, और इससे पक्षियों को अपने प्रवास को सफलतापूर्वक पूरा करना कठिन हो जाता है।
इसके साथ ही, पक्षियों का अवैध शिकार भी एक गंभीर समस्या है। हर साल बड़ी संख्या में पक्षियों को अपने प्रवास के बीच भुखमरी का सामना करना पड़ता है। अपर्याप्त भोजन के कारण अधिकांश पक्षी मौत का शिकार हो जाते हैं। प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए विश्व प्रवासी पक्षी दिवस साल में दो बार मनाया जाता है।
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार भोजन और संसाधनों की खपत में वृद्धि ने पक्षियों के प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुँचाया है, और इसमें विकासात्मक गतिविधियों की अहम भूमिका है। लिविंग प्लेनेट इंडेक्स के अनुसार वर्ष 1970 से 2014 की अवधि में पशु एवं पक्षियों की आबादी में 60 प्रतिशत की गिरावट हुई है। आर्द्रभूमि प्रवासी पक्षियों की गर्म प्रजनन स्थल मानी जाती है। लेकिन, ढांचागत संरचनाओं और विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि के साथ आर्द्रभूमि तेजी से समाप्त हो रही हैं। यह बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की आबादी को प्रभावित कर रहा है।
हर साल भारत में विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का प्रवास होता है। भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रफ, ब्लैक विंग्ट स्टिल्ट, कॉमन टील, वुड सैंडपाइपर जैसी पक्षियों की प्रजातियां शामिल हैं। इन प्रवासी पक्षियों को हम जिम कॉर्बेट, दिल्ली बायोडायवर्सिटी पार्क जैसी जगहों पर भी देख सकते हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों की संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में, हमें यह समझना जरूरी है कि प्रवासी पक्षी हमारी एक साझा प्राकृतिक विरासत हैं और इनका भी संरक्षण बेहद जरूरी है।
(इंडिया साइंस वायर)