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Last Modified: शुक्रवार, 17 अगस्त 2018 (12:29 IST)

कारगिल से कंधार तक अटलजी ने किया था सुरक्षा चुनौतियों का सामना

कारगिल से कंधार तक अटलजी ने किया था सुरक्षा चुनौतियों का सामना - Atal Bihari Vajpayee, Kargil, Security challenge
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत को कारगिल लड़ाई, कंधार विमान अपहरण और संसद पर हमले जैसी कई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन कूटनीति और सैन्यबल दोनों के इस्तेमाल के माध्यम से बखूबी उन्होंने इन चुनौतियों से निपटा।


वर्ष 1998 में दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद वाजपेयी भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की पहल करते हुए अमृतसर से लाहौर बस में गए। बहरहाल, लाहौर घोषणा के बावजूद भारत और पाकिस्तान के बीच सौहार्द लंबे समय तक नहीं चला, क्योंकि दौरे के कुछ महीने बाद ही पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में चोरी-छिपे अपने सैनिक भेज दिए, जिससे पाकिस्तान के साथ लड़ाई हुई, जिसमें वह हार गया।

वाजपेयी पाकिस्तान के साथ शांति चाहते थे और इसके लिए अपनी तरफ से कदम बढ़ाए, लेकिन वह सैन्य कार्रवाई से भी नहीं हिचके। पाकिस्तान में उस समय भारत के उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी ने कहा, मुझे याद है कि जब कारगिल की लड़ाई छिड़ी तो मुझे दिल्ली आने के लिए कहा गया और सेना मुख्यालय में बताया गया कि वाजपेयी ने वायु शक्ति के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। इसे उनके द्वारा और सुरक्षा पर बनी कैबिनेट समिति ने मंजूरी दी थी।

उन्होंने कहा, उन्होंने (वाजपेयी) कहा था कि नियंत्रण रेखा को पार नहीं करें, क्योंकि हम उस पाकिस्तान से लड़ रहे हैं, जिसने नियंत्रण रेखा पार की है, हमें भी वही काम नहीं करना चाहिए। और हां, अंत में हम विजयी रहे। वाजपेयी सरकार 1999 में विश्वास मत हार गई और अकटूबर में वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने।

इस बार उनकी सरकार ने जिस पहली बड़ी चुनौती का सामना किया, वह था दिसम्बर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान संख्या आईसी 814 का अपहरण जिस पर 190 लोग सवार थे और काठमांडू से नई दिल्ली की उड़ान के दौरान पांच आतंकवादियों ने विमान का अपहरण कर लिया और तालिबान शासित अफगानिस्तान लेकर चले गए।

वाजपेयी सरकार ने अपहर्ताओं की मांग स्वीकार कर ली और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह तीन आतंकवादियों- मसूद अजहर, उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को कंधार लेकर गए और बंधक यात्रियों की रिहाई के बदले उन्हें छोड़ दिया गया। उनकी सरकार को एक और सुरक्षा चुनौती का सामना करना पड़ा, जब पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हमला कर दिया।

पांच आतंकवादियों ने संसद परिसर पर हमला किया और बेतरतीब गोलीबारी कर नौ लोगों की हत्या कर दी। संसद पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की सीमा पर 'ऑपरेशन पराक्रम' के तहत 11 महीने तक सेना तैनात कर दी।

पार्थसारथी ने सेना तैनाती के बारे में कहा, जब संसद पर हमला हुआ तो वाजपेयी ने सीमा पर सैनिकों को तैनात कर दिया और पाकिस्तान पर काफी दबाव बना दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान को संघर्ष विराम करना पड़ा और वार्ता बहाल हो गई। तब राष्ट्रपति मुशर्रफ ने कहा था कि पाकिस्तान के नियंत्रण वाले क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होगा।

उन्होंने कहा, वह शांति के लिए पहल करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को तैयार थे लेकिन देश की सुरक्षा के लिए वह सेना का इस्तेमाल करने को भी तैयार रहते थे जैसा कि उन्होंने कारगिल के दौरान किया और फिर संसद पर हमले के बाद सेना की तैनाती की थी।' (भाषा)
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