5जी से लैस यह स्वदेशी स्मार्टफोन-चिप क्यों है इतनी खास?
नई दिल्ली, डिजिटल युग में स्मार्टफोन के बिना रोजमर्रा के जीवन की कल्पना कठिन है। आज हमारे दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन चुके स्मार्टफोन्स का महत्वपूर्ण भाग उसमें लगने वाली चिप को माना जाता है।
तकनीकी शब्दावली में इसे एसओसी यानी सिस्टम ऑन चिप कहा जाता है।
किसी भी स्मार्टफोन की क्षमताएं काफी कुछ इसी एसओसी पर निर्भर करती हैं। एसओसी बाजार में मुख्य रूप से अमेरिकी, दक्षिण कोरियाई और ताइवानी कंपनियों का ही दबदबा है। हाल ही में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद के शोधार्थियों ने वाईसिग के साथ मिलकर एक नैरोबैंड इंटरनेट ऑफ थिंग्स-सिस्टम ऑन चिप (एनबी-आईओटी-एसओसी) 'कोआला' विकसित किया है।
उल्लेखनीय बात यह है कि यह स्वदेशी एसओसी 5जी क्षमताओं से लैस है। देश में जल्द ही इन सेवाओं की शुरुआत हो सकती है, जिसके लिए तैयारियां चल भी रही हैं।
कोआला5जी मैसिव मशीन टाइप कम्युनिकेशन (एमटीसी) तकनीक से लैस है जो लो रेंज के साथ लो-बिट रेट आईओटीटी एप्लीकेशंस चलाने में सक्षम है। इस चिप से डिवाइस की बैटरी को 10 वर्षों तक चलाया जा सकेगा। स्मार्ट मीटर्स, मशीन टू मशीन कनेक्टिविटी, इंडस्ट्री 4.0, विभिन्न सेंसर कनेक्टिविटी, एसेट ट्रैकिंग, डिजिटल हेलथ्केयर और तमाम एप्लीकेशंस को कोआला से गति देने में मदद मिलेगी।
आईआईटी हैदराबाद की यह परियोजना भारत सरकार के दूरसंचार विभाग की 5जी तकनीक के लिए स्वदेशी विकल्प तैयार करने की मुहिम का है। इसके लिए, आईआईटी, हैदराबाद और वाईसिग नेटवर्क्स (वाईसिग) ने आईआईटी हैदराबाद के तत्वावधान में आईटीआईसी नाम से एक स्टार्टअप विकसित किया। वहीं, भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आगे बढ़ाए गए उद्यम फैबसीआई का भी सहयोग रहा।
उन्होंने मिलकर भारत का पहला 5जी सेल्युलर चिपसेट विकसित किया। वहीं, भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी सिएंट ने इसके सेमीकंडक्टर डिजाइन को मूर्त रूप दिया।
आईआईटी हैदराबाद के निदेशक प्रो. बीएस मूर्ति बताते हैं- आईआईटी हैदराबाद और वाईसिग ने कोआला एसओसी को संयुक्त रूप से विकसित किया है। इस उपलब्धि के लिए मैं परियोजना से जुड़े प्रो. किरण कुची को बधाई देता हूं। साथ ही, मैं 5जी परीक्षण परियोजना के लिए दूरसंचार विभाग और संचार-सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के फैबसीआई इनक्युबेटर को भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार करती है। इस कार्य में सिएंट की सहभागिता पर भी मुझे खुशी है, जो उद्योग एवं अकादमिक जगत के बीच समन्वय को दर्शाता है, जो आत्मनिर्भर भारत को मूर्त रूप देने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।'
(इंडिया साइंस वायर)