कश्मीर में 11 महीनों में मारे गए 200 आतंकी
श्रीनगर। इस वर्ष अभी तक 11 महीनों के दौरान 200 आतंकियों का सफाया ऑपरेशन आल आउट के तहत किया जा चुका है। दो सौ आतंकियों के मरने की खुशी तो मनाई जा सकती है, लेकिन अगर आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाएं तो सुरक्षाकर्मियों की शहादत का आंकड़ा भी बढ़ा है।
ऐसा भी नहीं है कि इस साल ही कश्मीर में सबसे ज्यादा आतंकी मारे गए हों बल्कि कश्मीर में पिछले 29 सालों से फैले आतंकवाद में वर्ष 2001 का आंकड़ा सबसे अधिक आतंकियों की मौतों को अपने आप में समेटे हुए है जब सुरक्षाबलों ने सबसे अधिक 2850 आतंकियों को मार गिराया था।
तब सुरक्षाबलों को अपने 590 जवानों व अफसरों की शहादत भी देनी पड़ी थी। अगर वर्ष 2001 के आतंकियों और सुरक्षाबलों के जवानों की शहादत के अनुपात को देखा जाए तो तब पांच आतंकियों के पीछे एक जवान की जान गई थी।
कश्मीर में सबसे कम आतंकी वर्ष 2012 में मारे गए थे और सबसे कम सुरक्षाकर्मी भी। वर्ष 2012 में 17 सुरक्षाकर्मियों ने अपनी शहादत देकर 84 आतंकियों को मार गिराया था, लेकिन शहादत का अनुपात वही बना रहा था।
दरअसल कश्मीर में 1988 में आरंभ हुए आतंकवाद के दौर के दौरान आतंकियों की मौतों का ग्राफ वर्ष 2001 तक ऊपर ही चढ़ता गया था और फिर यह कम होता चला गया था। यही कारण था कि जहां वर्ष 2001 में सबसे अधिक आतंकी मारे गए थे तो वर्ष 2012 में सबसे कम।
और अब एक बार फिर आतंकियों के मरने की संख्या में इजाफा होने लगा है। यह इसी से साबित होता है कि वर्ष 2013, 14, 15 तथा 16 में क्रमशः 100, 110, 113 तथा 165 आतंकी मारे गए थे। इस साल 11वें महीने के खत्म होते होते मरने वाले आतंकियों की संख्या 200 को पार तो करने लगी थी, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की शहादत के घटते अनुपात ने सबको चिंता में जरूर डाल दिया था। अर्थात जहां पहले पांच आतंकियों की मौत के अनुपात में एक जवान को शहादत देनी पड़ रही थी अब यह आंकड़ा 1: 2.5 का हो गया है जो अधिकारियों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
इस बारे में कुछ अधिकारियों का मानना था कि आतंकी अधिक आधुनिक हथियारों, सटीक हमलों तथा अतिप्रशिक्षित हैं जिस कारण सुरक्षाबलों की शहादत का अनुपात चिंता में डाले हुए है। जानकारी के लिए सुरक्षाबलों की शहादत के आंकड़ों में सेना, पुलिस, केरिपुब तथा बीएसएफ आदि के जवान शामिल हैं।