बुधवार, 4 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Who will get freedom for India first, Congress or BJP?
Last Updated : शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024 (16:43 IST)

भारत को मुक्ति पहले किससे मिले? कांग्रेस या भाजपा से?

भारत को मुक्ति पहले किससे मिले? कांग्रेस या भाजपा से? - Who will get freedom for India first, Congress or BJP?
भाजपा ने अंतिम क्षणों में अपने आपको बचा लिया। कांग्रेस ख़ुद को नहीं बचा पाई। कमलनाथ अपनी पुरानी पार्टी में ही बने रहेंगे। हो सकता है लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक प्रधानमंत्री के साथ उनकी मुलाक़ात के नए चित्र मीडिया में नज़र नहीं आएं।
 
कमलनाथ को किन कारणों से कांग्रेस में ही रुकना पड़ा, उसका खुलासा आसानी से नहीं हो पाएगा। 
प्रधानमंत्री और भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों ने सोचा नहीं होगा कि कमलनाथ-प्रसंग से पार्टी की छवि को अंदर और बाहर दोनों ओर से इतना बड़ा धक्का लगेगा। इतनी थू-थू के लिए मध्यप्रदेश के पन्ना-प्रमुखों के स्तर तक पूर्व-तैयारी नहीं थी।
 
भाजपा ने समझा होगा जैसे महाराष्ट्र के 'आदर्श' पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को तुरत-फ़ुरत भर्ती करवाकर उनका नाम राज्यसभा के लिए तय कर दिया गया, वैसे ही 'ऑपरेशन-कमलनाथ' भी शांतिपूर्वक संपन्न हो जाएगा। वैसा नहीं हुआ। राजस्थान के 'पायलट प्रोजेक्ट' की विफलता के बाद राजनीति में शुचिता का उपदेश देने वाली पार्टी के लिए इसे दूसरा बड़ा सदमा माना जा सकता है।
 
कल्पना की जा सकती है कि भाजपा के लिए छिंदवाड़ा सहित ज़रूरी एमपी की सभी 29 सीटों पर केंद्रित इस ऑपरेशन के फ्लॉप होने से सबसे ज़्यादा प्रसन्नता 'महाराज' को ही हुई होगी। भाजपा ने उन्हीं के नेतृत्व में कमलनाथ (सरकार) को आंदोलनों के लिए सड़कों पर ला पटका था। अगर कमलनाथ भी भाजपा में भर्ती हो जाते तो ग्वालियर और छिंदवाड़ा को साथ मिलकर कांग्रेस की हिन्दुत्व-विरोधी ताक़तों का मुक़ाबला करना पड़ता।
 
विधानसभा चुनाव परिणामों के तुरंत बाद कमलनाथ ने शिवराज सिंह से भेंट कर उन्हें बधाई दी थी। चुनाव परिणामों के बारे में दोनों ही नेताओं को शायद पहले से पता था। इसमें दो मत नहीं कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के निमित्त पीएम के लिए ज़रूरी हो गया है कि लोकसभा चुनावों में पार्टी 370 के आंकड़े को प्राप्त करके देश को दिखा दें।
 
एमपी में पिछली बार सिर्फ़ छिंदवाड़ा की सीट रह गई थी। कमलनाथ के भाजपा-प्रवेश के बाद वह सीट भी निश्चित हो जाती। कमलनाथ को अब वह सीट कांग्रेस के खाते में जीतना पड़ेगी। 
 
विधानसभा चुनावों में पार्टी को ज़बर्दस्त तरीक़े से जीत दिलाने के तुरंत बाद उत्साह से लबरेज़ शिवराज सिंह छिंदवाड़ा पहुंच गए थे। वहां उन्होंने घोषणा कर दी थी कि 'आज से हम मध्यप्रदेश का मिशन 29 शुरू कर रहे हैं। इसका मतलब मध्यप्रदेश में लोकसभा की सभी 29 सीटों से है। पिछली बार छिंदवाड़ा की सीट रह गई थी।'
 
शिवराज सिंह को 6 दिसंबर के बाद से आज तक छिंदवाड़ा में दोबारा पैर रखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। वहां की सीट मोदी की जादू की छड़ी से ही भाजपा की झोली में टपकने को बेचैन हो उठी। कमलनाथ प्रसंग पर बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने बाद में खुलासा किया कि जांच एजेंसियों का जिस तरह का दबाव अन्य नेताओं पर है, वैसा ही कमलनाथ पर भी है।
 
समूचा कमलनाथ प्रसंग इसी अहंकार की उपज था कि सांप्रदायिक विभाजन और चुनाव जीतने के कामों में सब कुछ जायज़ है। दूसरे यह कि चुनाव जीतने के काम में पार्टी कार्यकर्ताओं के समर्पण के मुक़ाबले जांच एजेंसियों का इस्तेमाल ज़्यादा प्रभावकारी साबित होता है।
 
कमलनाथ की तरह ही अपने को कांग्रेस का वफ़ादार सिपाही बताने वाले अशोक चव्हाण के पलटी मारने के पीछे मुख्य कारण संसद के बजट सत्र के आख़िरी दिन मोदी सरकार द्वारा मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार पर पेश किया गया 'श्वेत पत्र' बताया गया था। 'श्वेत पत्र' में मुंबई की आदर्श बिल्डिंग सोसाइटी के उस घोटाले का भी उल्लेख था जिसके कारण अशोक चव्हाण को 2010 में मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
 
आदर्श सोसाइटी घोटाले की सीबीआई जांच के बाद आरोप लगाया गया था कि सेना के सेवानिवृत्त लोगों के लिए निर्मित बिल्डिंग में अपने संबंधियों को आवंटन के लिए चव्हाण ने अतिरिक्त फ़्लेट्स के निर्माण की अनुमति दी थी। चव्हाण द्वारा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश करने के तत्काल बाद देवेन्द्र फडनवीस ने कहा था कि ऐसे कई नेता जिनका कांग्रेस में दम घुट रहा है, भाजपा के संपर्क में हैं। माना जा सकता है कि फडनवीस का इशारा कमलनाथ की तरफ़ रहा होगा।
 
अशोक चव्हाण के कांग्रेस छोड़ते ही भाजपा में पुरस्कृत होने की सत्तारूढ़ दल के निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर क्या प्रतिक्रिया हुई, उसका भी फड़नवीस को तत्काल पता चल गया। महाराष्ट्र भाजपा के 69 वर्षीय उपाध्यक्ष माधव भंडारी के पुत्र चिन्मय द्वारा सोशल मीडिया पर जारी की गई एक पोस्ट चर्चा का विषय बन गई। चव्हाण को राज्यसभा में भेजे जाने से व्यथित चिन्मय ने अपनी मार्मिक पोस्ट में अपने पिता का शुमार उन लोगों में किया जिन्हें पार्टी की दशकों से की जा रही नि:स्वार्थ सेवा के बावजूद कभी अपेक्षित सम्मान प्राप्त नहीं हुआ।
 
'भ्रष्टाचारियों' का कांग्रेस में दम घुट रहा है और 'ईमानदार' भाजपा ने उनके लिए अपने दरवाज़े खोल रखे हैं। जिन निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने भाजपा को 2 से 303 बनाने में अपनी सांसें झोंक दीं और पिछले 10 सालों से जिनके पार्टी में प्राण निकले जा रहे हैं, उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है। उनकी नई ज़िम्मेदारी यही बची है कि प्रधानमंत्री की तीसरी, चौथी और पांचवीं पारी पूरी होने तक वे विपक्षी दलों से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं का भगवा दुपट्टों से स्वागत करते रहें।
 
निष्ठावान कार्यकर्ताओं को इस चिंता से भी मुक्त हो जाना चाहिए कि तपे-तपाए कार्यकर्ताओं और अन्य दलों से सत्ता तापने आने वाले अवसरवादी नेताओं के बीच वैचारिक संसर्ग से जो वर्णसंकर नस्लें जन्म लेंगी, वे संघ और भाजपा को हिन्दू राष्ट्रवाद के किन शिखरों पर पहुंचाएंगी?
 
सवाल यह भी है कि सत्ता की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए ली जा रही राजनीतिक नैतिकता की बलि के क्षणों में देश को पहले मुक्ति किससे मिलना चाहिए? कांग्रेस से या भाजपा से? क्या सवाल का जवाब लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, वसुंधरा राजे या शिवराज सिंह चौहान से प्राप्त किया जा सकता है? आप चाहें तो और नाम भी जोड़ सकते हैं।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)