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Written By Author कृष्णा गुरुजी

स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन

Ravan | स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन
वर्षों पुरानी परंपरा विजयादशमी पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है। शास्त्र कहते हैं कि रावण का दाह संस्कार नहीं हुआ था। इसलिए रावण का दहन करना एक परंपरा बन गई। हालांकि इस कलयुग में रावण दहन मात्र एक खेल सा बन गया है। अपने छोटे बच्चों को रावण दहन दिखाना मात्र मनोरंजन का साधन बन चुका है और राजनीतिक लोगों के लिए राजनीतिक अखाड़ा।

बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में त्योहार मनाने वालों को बुराई के साथ-साथ रावण की अच्छाई पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके साथ ही अपने अंदर की बुराई का दहन कर अपनी अच्छाई की जीत रूपी विजयादशमी मनाकर स्वयं को बधाई दें।

सब जानते हैं कि रावण एक सर्वज्ञानी ब्राह्मण था। अपनी शिव साधना से शिव तांडव रच शिव की असीम कृपा का पात्र बना। यह वही रावण है, जिसने अपनी साधना से ग्रहों को अपने वश में कर लिया था। यहां तक कि राम सेतु के निर्माण के वक़्त राम द्वारा ब्राह्मण कार्य का आमंत्रण देने पर विधिवत पूजन भी किया। किसी इंसान की मंशा एवं कर्म देखना चाहिए। रावण के जन्म के बारे में सबके अलग-अलग मत हैं। एक संप्रदाय तो रावण को विद्याधर कहता है।

आज के इस कलयुग में क्या विजयादशमी या दशहरा का मतलब सिर्फ रावण दहन कर एक-दूसरे को विजयादशमी की बधाई देना है? आज के परिवेश में तो सिर्फ यह बधाई व्हाट्सऐप, फेसबुक की बलि चढ़ गई है। क्या आपने बच्चों को बताया कि रावण कौन था? रावण की क्या अच्छाइयां थीं, क्या बुराई थी। इंसान अच्छाई-बुराई का मिलाजुला पुतला है।

अत: आज के इस युग में जरूरी है अपने भीतर के राम रूपी गुण एवं रावण रूपी अवगुणों के चिंतन की। यदि गंभीरता से देखें तो इसी जन्म में आपकी शारीरिक, वैचारिक क्रिया किसी रावण के अवगुणों से कम नहीं नजर आएगी। साथ ही राम जैसे गुण भी नजर आएंगे।

आज अधिकांश लोगों में कितना अहंकार रहता है अपनी शक्तियों पर, वो भले ही शारीरिक हो, राजनीतिक हो या फिर धन की शक्ति हो। तो फिर रावण भी कहां गलत था, यदि उसे अहंकार था। अपने तन बल, धन बल पर इतना अहंकार कि शिव-पार्वती सहित कैलाश पर्वत को उठाने का साहस किया।

रावण अहंकारी था, लेकिन दुराचारी नहीं था। उसने अपनी छाया भी कभी सीताजी के करीब नहीं आने दी। हकीकत तो यह है कि आज के युग के रावण कहीं ज्यादा बुराई से युक्त हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में त्योहार मनाने वालों को बुराई के साथ-साथ रावण की अच्छाई पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके साथ ही अपने अंदर की बुराई का दहन कर अपनी अच्छाई की जीत रूपी विजयादशमी मनाकर स्वयं को बधाई दें।

यदि आज के युग पर नजर डालें तो कितने ही तथाकथित संत कन्याओं के शारीरिक शोषण के मामले में अपराधी साबित हो चुके हैं और कारावास की सजा भोग रहे हैं। ऐेसे कितने ही अज्ञात रावण बुरी निगाहों के साथ समाज में हैं, पर ऊपरी मुखौटा राम का है, लेकिन इन मुखौटों को नोंचकर असली चेहरा लाने का साहस किसी में भी नहीं है। दरअसल, सदियों से चली आ रही परंपराओं को एक नई सोच देने का समय है। इसके लिए जरूरी कि अपने भीतर के 'राम' से ही अपने भीतर बैठे 'रावण' का दहन करवाएं, फिर सच्चे अर्थों में विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दें।