राजनीति एवं राजनेताओं में संवेदनशीलता तथा कर्तव्यबोध अब भी शेष है
चाहे गलवान संघर्ष में अपनी आहुति देने वाले श्रध्देय दीपक सिंह जी की अंतिम विदाई हो याकि श्रध्देय धीरेन्द्र त्रिपाठी जी की अंतिम विदाई हो। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का हमारे राष्ट्ररक्षकों के संस्कार में उपस्थित होना तथा परिवार को संबल प्रदान करना,यह वास्तव में संवेदनशील राजनीति का परिचायक है।
अन्य राजनैतिक मुद्दों के अलावा राजनीति के नेतृत्व का राष्ट्ररक्षकों के सम्मान के लिए मुख्यधारा में आना, निश्चित ही हमारे स्वस्थ राजनैतिक परिवेश का उदाहरण है।
ऐसी विकट परिस्थितियों में राजनीति का जो संवेदनशील चेहरा दिखता है, वह हमारे लोकतंत्र को एक नया आयाम देता है। राष्ट्र का सैनिक जो राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणोत्सर्ग कर देता है, उसके बलिदान की कोई कीमत हम नहीं चुका सकते।
लेकिन इन परिस्थितियों में यदि हम अपने उसी सैनिक के सम्मान के लिए उपस्थित होते हैं तथा सैनिक के परिवार एवं उसके दु:ख को अपना समझते हैं तो समूचे राष्ट्र में सैनिकों के प्रति सम्मान का भाव एवं राजनैतिक नेतृत्व का यह स्वरूप अपनी कीर्ति को प्राप्त करता है। वर्तमान की भ्रष्ट नौकरशाही, दिन प्रति दिन कुटिल होती राजनीति के बावजूद भी ऐसी उपस्थित एवं दृश्य कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारी राजनीति एवं राजनेताओं में संवेदनशीलता तथा कर्तव्यबोध अब भी शेष है।
हमारी यही राजनैतिक परंपरा ही राष्ट्र की वास्तविक आकांक्षाओं का सुफल है जिसे जनमानस के प्रत्येक दु:ख -सुख का भागीदार होना चाहिए। बाकी तो सत्ता, पक्ष-विपक्ष, राजनैतिक वार-प्रतिवार का क्रम चलता रहेगा।
राष्ट्ररक्षकों का यही सम्मान प्रत्येक नागरिक के कर्तव्यबोध को भी प्रदर्शित करता है कि राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति की राष्ट्रनिर्माण में क्या भूमिका होनी चाहिए। अब तय हमें करना है कि हम अपने कर्तव्यों का पालन किस प्रकार करते हैं।
हम स्वयं को इस कसौटी पर रखकर खरा उतारने का प्रयास करें कि क्या हम राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करने के लिए प्रतिपल तैयार जवान की भांति अपने दायित्वों को निभाते हैं या नहीं? यदि हम उन सैनिकों के बलिदान के प्रखर पुंज को अपने ह्रदय में संजोते हुए उनसे प्रेरणा लें तो राष्ट्र को जर्जर करने वाली व्याधियां स्वत: समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि राष्ट्ररक्षा के लिए सेनाओं में गया जवान किसी भी कीमत पर अपनी मातृभूमि की रक्षा के मार्ग से नहीं हट सकता है। वह अपने प्राणों की आहुति दे देगा किन्तु राष्ट्ररक्षा के मार्ग से नहीं डिगेगा। वह राष्ट्ररक्षा के लिए मृत्यु को हथेली पर रखकर चलता है। बस यही ज्योति हम अपने ह्रदय में जलाए रखें और अपने बच्चों में भी वीरों की जीवनगाथा के रोपित करें।
नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।