ये दुनिया भरोसे के काबिल नहीं, हिफाजत तो दूर की बात है...लड़कियों के साथ आए दिन होने वाले हादसे तो कुछ यही कहते हैं। निर्भया के अपराधियों को सजा सुनाए अभी सप्ताह भर भी नहीं बीता था, कि उस तरह के अपराधों की नई पौध तैयार हो गई...।
11 मई को हुई दो घटनाएं तो अभी ताजा ही हैं, जिसमें एक तरफ हरियाणा की निर्भया... जिसे इंसान की शक्ल में छुपे आधा दर्जन दरिंदों ने हैवानियत की हद तक नोचा, कुत्तों की तरह उस पर टूट पड़े इन अपराधियों ने सिर्फ वासना को ही नहीं भोगा बल्कि उसके शरीर को बाहरी और आंतरिक रूप से क्षत-विक्षत किया...इतने में भी पशुता का यह खेल खत्म नहीं हुआ, और पीड़िता के मृत शरीर के कपाल पर इतने वार किए, कि वह कई टुकड़ों में विभक्त हो गया...। मृतका के घरवालों का कहना है कि हत्या से पूर्व भी अपराधियों की शिकायत की गई थी, पर पुलिस से इसे गंभीरता से नहीं लिया।
दूसरी तरफ इंदौर की छात्रा एवं मॉडल, अनामिका दुबे...जिसकी हत्या के सबूत तो पुलिस अब तक जुटा नहीं सकी है...लेकिन दबी जुबान में सच कहा जा रहा है, वह हत्या की ओर ही इशारा करता है। अनामिका के पोस्टमार्टम में उसकी आंतें, लिवर और शरीर के अन्य आंतरिक अंगों के क्षतिग्रस्त होने की बात सामने आई, जिसका कारण विशेषज्ञों ने बताया। विशेषज्ञों के अनुसार संभवत: अनामिका के पेट पर लातों से कई बार किए गए हों, जिससे उसके आंतरिक अंग क्षतिग्रस्त हुए और इस मल्टीपल इंज्युरी के कारण ही उसकी मौत भी हुई।
इस घटना पर सभी का कहना अलग-अलग है। कभी कहा जाता है कि अनामिका को सुबह उल्टियां हुई जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया और उसकी मौत हो गई, कभी कहा जाता है कि उसकी मौत अस्पताल लाए जाने के 36 घंटे पहले ही हो गई थी। बयानों में यह बदलाव संदेह का एक बड़ा कारण है, जिससे पुलिस भी अवगत है, लेकिन अब तक वह किसी आशाजनक नतीजे पर नहीं पहुंची है। इसका कारण क्या है, यह तो केस में संलिप्त लोग या पुलिस ही बता सकती है।
लेकिन यह कोई पहला मामला नहीं, बल्कि इंदौर में इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं, जिसमें दोस्तों का साथ लड़कियों को दगा दे गया। किसी की जान होटेल की खिड़की से कूदकर गई, तो किसी का गला दोस्तों ने ही घोंटा और लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात भर घूमते रहे। मामला कोई भी हो, विश्वासघात तो कहीं न कहीं हुआ ही है। फर्क इतना है कहीं दोस्तों, करीबियों या अजनबियों ने घात किया, तो कभी मानवता के विश्वास में घात मिली।
सवाल यह उठता है, कि यह मानसिकता उपजी कैसे, कहां से और क्यों, जिसके लिए शौक, स्वार्थ, वासना और लालच जैसी चीजें महत्वपूर्ण हो गईं और कीमती जान की कोई कीमत नहीं। यह जुर्म अंतरात्मा में था, या कोई बाहरी ताकत इस मानसिकता का संचालन कर रही है? हां, एक जवाब जरूर है...नशा। जो किसी का सगा नहीं, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता... जो किसी का दोस्त या रिश्तेदार नहीं, बल्कि पूरे समाज का दुश्मन है। धीरज शर्मा भी इससे अछूता नहीं है, जिसका उदाहरण है उसे फेसबुक वॉल की कुछ पोस्ट -
इस नशे की चादर तले न जाने कितने अपराध जन्म लेते हैं, जिनमें से कुछ प्रत्यक्ष हैं, तो कुछ अब भी दबे-छुपे। कभी नशे में धुत्त बदमाश बिना किसी भय के शहरों की सड़कों पर खुलेआम अपराध को अंजाम देते हैं, तो कभी यही नशा घर के बहन, बेटी, बहू की अस्मिता को झकझोरता है...अंधेरे सन्नाटे में। ये नशा अपराध करने का साहस जरूर देता है लेकिन मौके, परिस्थिति, रिश्तों और मानवता की मर्यादाओं के पार होकर।
यह धीमा जहर न केवल नशा करने वालों को खत्म कर रहा है, बल्कि समाज, संस्कृति, मर्यादाओं और इंसानियत को भी तार-तार कर रहा है। अपराधियों के लिए सजा है, लेकिन क्या अपराध को जन्म देने और विकृति पैदा करने वाले इस अपराधी के लिए कोई सजा है हमारे पास .. ?
रेप, दुष्कर्म, मर्डर की अधिकांश घटनाओं में यह पाया जाता है कि दोषी घटना को अंजाम देते वक्त शराब के नशे में था, या अन्य नशीले पदार्थ का सेवन कर उसने घटना को अंजाम दिया। क्या इस स्थिति में नशा एक बड़ा अपराधी नहीं हुआ...क्या इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता नहीं, क्या इससे निपटने के प्रयास नहीं किए जाने चाहिए...जो भावी पीढ़ी की मानसिकता, क्षमता, सोच, क्रियाकलाप और स्वास्थ्य को विकृत कर रहा है। घृणा, घृणित एवं निकृष्ट कर्म मानसिकता की उपज है, जिसके शुद्धिकरण के लिए इसके कारण पर विचार करना बेहद जरूरी है।