घर के बुजुर्गों को लेकर एक दिवस मनाया जाता है। विश्व वृद्ध दिवस। इस दिन बुजुर्गों की तरफ से नई पीढ़ी को खूब खरी खोटी सुनाई जाती है। उन्हें नसीहत दी जाती हैं। उन्हें लानत-मलामत भी भेजी जाती हैं। अहसास करवाया जाता है कि वे दुनिया के सबसे बुरे बच्चे हैं। मैं यह नहीं कहती कि यह सब गलत है .... वाकई स्थिति बहुत बुरी है इसीलिए वृद्धाश्रम और ओल्ड एज होम जैसे ठिकाने अस्तित्व में आए हैं लेकिन जरा ठहर कर सोचें कि क्या ये एक तरफा सोच सही है?
चूंकि वे वृद्ध हैं, बुजुर्ग हैं तो उनकी गलती, गलती नहीं मानी जाएगी? उनकी असंवेदनशीलता और चिड़चिड़ाहट उनकी कुंठा, उनकी स्वार्थी सोच सब क्षम्य मान ली जाएगी?
मैंने अपने जीवनकाल में बहुत प्यारे प्यारे बुजुर्ग देखे हैं। उनके भरपूर आशीर्वाद भी लिए हैं लेकिन मैंने यह भी देखा है कि कुछ बुजुर्गों के अड़ियल रवैये से कई युवाओं तक शादी के प्रस्ताव नहीं पहुंच पाए... लड़का तो बहुत अच्छा है लेकिन उसकी मां कठोर स्वभाव की है। लड़की तो अच्छी है पर उसका पिता शराब पीता है।
कई लड़के लड़की अपने माता-पिता के बुरे स्वभाव का खामियाजा भोगते आपको दिखाई दे जाएंगे... सामने से सब आपको सामान्य नजर आए पर ऐसा होता नहीं है। कई माता-पिता उनके जीवन में आए कष्टों का दंड अपनी संतान को देते हैं। कई बुजुर्ग अपने जीवन में पूरी न होने वाली महत्वाकांक्षा का बोझ अपनी संतान पर लाद देते हैं। कई अपनी मर्जी के खिलाफ शादी को अपने मान-सम्मान का विषय बना लेते हैं और जीवन भर अपने बच्चों को माफ नहीं करते हैं...
फिर संतान सिर्फ इस बात के लिए अपने आपको जीवन भर अपराध बोध में रखती हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता के पसंद से शादी नहीं की.... बुजुर्ग अपना अहम नहीं छोड़ते हैं और बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वे उनके हर गलत काम, गलत फैसले को भूल जाएं और उनकी सेवा करते रहें।
कई माता पिता के लिए अपने बच्चे अपनी कुंठा निकालने का जरिया होते हैं। बच्चे सॉफ्ट टारगेट होते हैं तो वे उनके बड़े होने तक बेधड़क हाथ उठाते रहते हैं। बच्चे बच्चे न होकर उनकी अपनी प्रॉपर्टी समझे जाते हैं। जब चाहा जैसा चाहा बच्चों का इस्तेमाल किया उनके आत्मसम्मान का हनन किया और बाहर समाज में जाकर अपनी बुजुर्गियत का हवाला देकर मासूम भी बन गए... बच्चे दोनों तरफ से कुटाते रहें और ये दोनों तरफ से उन्हें छलते रहें।
कई बार बच्चे अपने संस्कारों के चलते मां बाप का कहना मानते रहते हैं और कई बुजुर्ग बात का, उनके व्यवहार का फायदा उठाते रहते हैं। बहुत सारे बुजुर्गों ने अपने अहंकार के चलते अपने ही बच्चों के सपनों का गला घोंटा है। अपने ही बच्चों के व्यक्तित्व को कुचला है। और समाज में ऐसे मासूम बने रहे हैं कि उन्होंने तो अपनी जिंदगी लूटा दी अब बच्चे कृतघ्न निकले हैं। पर ऐसा नहीं है कभी न कभी तो बच्चों को आपके इरादे पता चल ही जाते हैं या वे आपकी मंशा को भांप ही लेते हैं तब वे विरोध के स्वर उठाते हैं और समाज की नजर में बुरे बन जाते हैं।
सवाल यह कि बुजुर्ग दिवस पर यह आलेख क्यों? तो उसका जवाब है सोशल मीडिया में चलते अतिरंजना वाले वे वीडियो जो पूरी तरह से यह साबित करने पर तुले हैं कि बुजुर्ग निहायत ही मासूम और निर्दोष होते हैं और बुजुर्ग दिवस पर तो ऐसे वीडियो और पोस्ट की बाढ़ आ जाएगी जिनमें पूरी ताकत झोंक दी जाएगी यही बात सिद्ध करने में।
मैं फिर कह रही हूं कि सारे बुजुर्ग ऐसे नहीं हैं तो आप भी मानिए कि सारे युवा भी ऐसे नहीं हैं कहीं न कहीं व्यक्तिगत रूप से पीड़ित और प्रताड़ित वे भी हैं।
समाज में इतने रिश्तों की इतनी तहें होती हैं कि आप कभी भी जो दिख रहा है उसके आधार पर फैसले नहीं ले सकते हैं। हमारा समाज अपने बुजुर्गों से तलाक लेने का प्रावधान नहीं रखता। हमारे समाज में युवाओं के लिए 'होम' जैसी अवधारणा भी प्रचलित नहीं है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि बुजुर्ग अपनी खुद की जिंदगी तो जी ही लें अपनी अगली पीढ़ी की जिंदगी में हस्तक्षेप कर उनकी भी जिंदगी जीने की चाह रखने लगे।
भारतीय परिवेश में बुजुर्ग हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं, हम सब में रचे-बसे हैं हम तो अपने पूर्वजों के नाम पूरा आधा महीना दे देते हैं। इसी परिवेश में युवा भी पले बढ़े हैं तो वे कैसे अहसानफरामोश हो सकते हैं, कुछ अगर हैं तो उसकी तह में जाकर देखिए किस्से कुछ और ही निकलेंगे। सिर्फ युवा होने के कारण या आधुनिक होने के कारण बे बुरे हैं यह कतई सच नहीं है।
बुजुर्ग दिवस पर बुजुर्ग भी अपने गिरेबान में झांकें और स्वीकार करें कि उनसे भी गलतियां हुई हैं, होती हैं, मानवीय दुर्बलता का वे भी शिकार है, सिर्फ बुजुर्ग होने से वे दूध के धुले नहीं हैं।
फिलहाल, शुभकामनाएं तो ले ही लीजिए अपने बुजुर्ग होने की....
नोट : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्यक्त विचारों से सरोकार नहीं है।