तीन तलाक : शांति अब शोर में तब्दील हो चुकी है
जिस तरह से संसार में दो ही चीजें दृश्य हैं, प्रकाश और अंधकार। उसी तरह श्रव्य भी दो ही चीजें हैं - शोर या शांति ...और ये दोनों ही किसी स्थिति, परिस्थति में पूर्ण रूप से अपने अस्तित्व को लिए हुए होती हैं।
बात कोई भी हो, विवाद कोई भी हो, मुद्दा कोई भी हो... या तो बिल्कुल शांति लिए हुए होगा, जैसे ठंडे बस्ते वाली कहावत इसी के लिए बनी हो। या फिर कर्इ तरह का शोर लिए, जिसे आजकल हम विवाद या हंगामे के रूप में देखते हैं।
अब तीन तलाक का मामला ही देख लीजिए... सालों से यह तीन तलाक नाम का दंश मुस्लिम समुदाय की कितनी ही महिलाओं को अपना शिकार बना चुका है, उनके अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर चुका है। लेकिन यह सब जारी था...सालों से जारी था... हम भी नहीं जानते कब से, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के साथ ये खिलवाड़ अनवरत जारी रहा। और चीत्कार भरे दर्द के बावजूद, न केवल समुदाय विशेष में, बल्कि हमारे पूरे समाज भर में जरा सी आह भी कभी सुनाई नहीं दी। गूंजती हुई अगर कोई आवाज थी, तो वो थी तलाक, तलाक, तलाक...
सोचिए, यहां भावों में ऊफनती कराहों और चीखों के बीच भी सन्नाटा पसरा रहा, जैसे सन्नाटे की इस चादर के नीचे तमाम दर्द के निशान छिप जाएंगे...जब ये सन्नाटा पसरा था, तब कभी कोई ख्याल या प्रयास नहीं नजर आया दीमक की तरह फैलती इस बीमारी को रोकने का लेकिन अब देखिए, जब बात शुरू हुई तो सन्नाटा कहीं गुम सा है और विवादों ने अपनी अपनी जगह संभाल रखी है।
विषय वही है, गंभीरता भी ही लेकिन शांति अब शोर में तब्दील हो चुकी है.. चाहे समाज के ठेकेदारों का शोर हो, सदियों से थमे दर्द को चीरती चीखों का शोर हो या फिर इस मामले पर राजनीतिक श्रेय लेने के लिए मचे घमासान का शोर हो...।