विश्वास से ही आता है प्रेम...
किसी से यह कह देना कि 'मैं तुमसे प्यार करता हूं' और उस शख्स के प्रति मन में कोई विश्वास के भाव न हो, तो क्या प्रेम करने के लिए पर्याप्त होगा...? क्या प्रेम महज यही सुनने व्याकुल रहता है और क्या इसे ही प्रेम कहते हैं.?
घर-परिवार में तो ऐसा कुछ कहने की जरुरत ही नहीं होती तब भी परिजनों में परस्पर बहुत प्यार होता है। क्या कभी सोचा गया कि वह प्यार कहां से आता है? माता-पिता का बच्चों के प्रति, भाई-भाई में, भाई-बहन में सभी में प्रेम होता है क्योंकि वे एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं। यही विश्वास समृद्ध परिवार की कुंजी भी है। यदि माता-पिता बच्चों पर विश्वास न करें, तो बच्चे निश्चित ही गलत कामों की ओर बढ़ेंगे। भाई-भाई पर विश्वास न करे, तो व्यापार के साथ संबंध भी चौपट हो जाएंगे।
बहरहाल, वर्तमान आधुनिक युग में पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के बीचे बनते रिश्तों के विच्छेद का कारण क्या है? यह प्रश्न लंबे समय से मुझे विचलित कर रहा था, क्योंकि यदि सामाजिक परिदृश्य देखा जाए तो पति-पत्नियों के बीच बढ़ते तलाक के मामले हों या प्रेमी युगलों के बनते-बिगड़ते प्रेम संबंध हों, सभी में कहीं न कहीं विश्वास का अभाव दिखाई देता है। पति-पत्नी के बीच विवाद विश्वास न कर पाने से ही होते हैं। जो स्वर्ग से घर को नरक में बदल देते हैं। छोटी से छोटी बात पर भी यदि प्रेमी-प्रेमिका में विश्वास न हो, तो इनके भावी संबंध मिनटों में चकनाचूर हो सकते हैं।
इसलिए यदि प्रेम करना है। प्रेम पाना है, प्रेम देना है तो विश्वास करना उतना ही जरूरी है जितना जीवन के लिए सांसें।