भ्रष्टाचार जिसकी जड़ें इस देश को भीतर से खोखला कर रही हैं उससे यह देश कैसे लड़ेगा? यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काफी अरसे बाद इस देश के बच्चे, बूढ़े और जवान तक में एक उम्मीद जगाई है। इस देश का आम आदमी भ्रष्टाचार और सिस्टम के आगे हारकर उसे अपनी नियति स्वीकार करने के लिए मजबूर हो चुका था, उसे ऐसी कोई जगह नहीं दिखती थी जहां वह न्याय की अपेक्षा भी कर सके, लेकिन आज वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रहा है।
सोशल मीडिया नाम की जो ताकत उसके हाथ आई है, उसका उपयोग वह सफलतापूर्वक अपनी आवाज प्रधानमंत्री तक ही नहीं, पूरे देश तक पहुंचाने के लिए कर रहा है। देखा जाए तो देश में इस समय यह एक आदर्श स्थिति चल रही है, जिसमें एक तरफ प्रधानमंत्री अपनी मन की बात देशवासियों तक पहुंचा रहे हैं तो दूसरी ओर देशवासियों के पास भी इस तरह के साधन हैं कि वे अपनी मन की बात न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि पूरे देश तक पहुंचा पा रहे हैं।
शायद आम आदमी के हाथ आए सोशल मीडिया नामक इस हथियार के सहारे ही प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार पर काबू कर पाएं, क्योंकि सिस्टम तो करप्ट है ही और जो लोग सिस्टम का हिस्सा हैं वे अपनी आदतों से मजबूर हैं तो कोई मजबूरी ही उन्हें अपनी सालों पुरानी आदतों से मुक्त कर पाएगी!
हाल ही में बीएसएफ के जवान तेज बहादुर यादव जो ऐच्छिक सेवानिवृत्ति के तहत 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं, जाते-जाते देश के सामने सेना में सैनिकों की दशा पर प्रश्नचिन्ह लगा गए। कठघरे में न सिर्फ वह सेना है जिस पर पूरा देश गर्व करता है बल्कि सरकार के साथ-साथ पूरा विपक्ष भी है क्योंकि आज जो विपक्ष में हैं, कल वे ही तो सरकार में थे।
तो 2010 में ही जब कैग ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान और चीन सीमा पर तैनात जवानों को मिलने वाले भोजन, उसकी गुणवत्ता और मात्रा में भी निम्न स्तर के होने की जानकारी दी थी तो तब की सरकार ने, या फिर आज की सरकार ने 2016 की कैग की रिपोर्ट पर क्या एक्शन लिया? कठघरे में तो सभी खड़े हैं। खैर, उन्होंने अपनी और अपने साथियों की आवाज को प्रधानमंत्री तथा देशवासियों तक पहुंचाने के लिए इसी हथियार का इस्तेमाल किया।
'भूखे भजन न होए गोपाला, यह रही तेरी घंटी माला' की तर्ज पर उन्होंने प्रधानमंत्री से गुहार लगाई। उनका वीडियो सोशल मीडिया पर इतना वायरल हुआ कि उनकी जो आवाज उनके सीनियर अधिकारी नहीं सुन पा रहे थे या सुनना नहीं चाह रहे थे उस आवाज को आज पूरा देश सुन रहा है। वह आवाज अखबारों की हेडलाइन और चैनलों की प्राइम टाइम कवरेज बन गई है।
जो काम 6 सालों से कैग की रिपोर्ट नहीं कर पाई वो एक सैनिक की आवाज कर गई क्योंकि इसे सुनने वाले वो नेता या अधिकारी नहीं थे जिन्हें एक जवान के दर्द से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि इसे सुनने वाला था वो आम आदमी जो एक-दूसरे के दर्द को न सिर्फ समझता है, बल्कि महसूस भी करता है और चूंकि लोकतंत्र में सत्ता की चाबी इसी आम आदमी के हाथ में है तो जो दर्द इस आदमी ने महसूस किया है उसका इलाज शायद सत्ताधारियों को अब ढूंढना होगा।
खबर के वायरल होते ही सरकार हरकत में आई, जांच के आदेश दिए गए, सरकार अपनी जांच कर रही है और बीएसएफ अपनी। जांच शुरू हो चुकी है और साथ ही आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी। कुछ 'राष्ट्रवादियों' का कहना है कि इस प्रकार सेना की बदनामी देश के हित में नहीं है और जो सैनिक दाल पर सवाल उठा रहा है, पहले उसका इलाज जरूरी है। उन सभी से एक सवाल।
देश क्या है? हम सब ही तो देश बनाते हैं। सेना क्या है? यह सैनिक ही तो सेना बनाते हैं। जिस देश की सेना अपने सैनिक के मूलभूत अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकती, वह सैनिक उस देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करेगा? जिस देश की सेना में उसके सैनिक की रोटी तक भ्रष्टाचार के दानव की भेंट चढ़ जाती हो वह भी अपने ही उच्च पद के अधिकारियों के कारण उस देश में हम किस राष्ट्रवाद की बातें करते हैं?
जो लोग सैनिक की इस हरकत को अनुशासनहीनता मान रहे हैं वे स्वयं दिल पर हाथ रखकर कहें कि ऐसे दुर्गम स्थान पर जहां जीवित रहने के लिए ही प्रकृति से पल-पल संघर्ष पड़ता है, वहां जो भोजन वीडियो में दिखाया गया है, उस भोजन के साथ वे 11 घंटे की ड्यूटी दे सकते हैं? जवान द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच जरूर की जानी चाहिए। अगर आरोप सही हैं तो दोषी अधिकारियों को सजा मिले और सैनिकों को न्याय, लेकिन अगर आरोप झूठे हैं तो सेना के कानून के तहत उस जवान पर कार्यवाही निश्चित ही होगी।
दरअसल, भ्रष्टाचार केवल सरकार के सिविल डिपार्टमेंट तक सीमित हो, ऐसा नहीं है, सेना भी इससे अछूती नहीं है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि आजाद भारत में जो सबसे पहला घोटाला सामने आया था वो 1955 में सेना का ही जीप घोटाला था। उसके बाद 1987 में बोफोर्स घोटाला, 1999 ताबूत घोटाला, 2007 राशन आपूर्ति घोटाला, 2009 आदर्श घोटाला, 2013 अगस्तावेस्टलैंड घोटाला, यह सभी घोटाले सेना में हुए हैं। रिटायर्ड एयर चीफ एसपी त्यागी को हाल ही में सीबीआई द्वारा अगस्तावेस्टलैंड घोटाले की जांच के अंतर्गत हिरासत में लिया गया है।
इसके अलावा अभी कुछ समय पहले सेना में प्रमोशन के सिलसिले में एक नया घोटाला भी सामने आया था जिसके लिए आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल ने रक्षा मंत्रालय और सेना को सिस्टम में वायरस की तरह घुसते भ्रष्टाचार पर काबू करने के लिए कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक लेफ्टीनेंट जनरल का प्रमोशन भी रद्द कर दिया था।
अगर हम वाकई में राष्ट्रहित के विषय में सोचते हैं तो हमें कुछ ख़ास लोगों द्वारा उनके स्वार्थपूर्ति के उद्देश्य से बनाए गए स्वघोषित आदर्शों और कुछ भारी-भरकम शब्दों के साए से बाहर निकलकर स्वतंत्र रूप से सही और गलत के बीच के अंतर को समझना होगा। एक तथ्य यह भी है कि सेना में अनुशासन सर्वोपरि होता है। हर सैनिक को ट्रेनिंग का पहला पाठ यही पढ़ाया जाता है कि अपने सीनियर की हर बात हर ऑर्डर को बिना कोई सवाल पूछे मानना है और यह सही भी है। बिना अनुशासन के आर्मी की कल्पना भी असंभव है।
आप सोच सकते हैं कि युद्ध की स्थिति में कोई जवान अपने सीनियर की बात मानने से मना कर दे तो ऐसी अनुशासनहीन सेना के कारण उस देश का क्या हश्र होगा, लेकिन एक सत्य यह भी है कि इसी अनुशासन की आड़ में काफी बातें जवान न तो बोलने की हिम्मत जुटा पाते हैं, न ही विरोध कर पाते हैं। तो अनुशासन अपनी जगह है लेकिन अनुशासन की आड़ में शोषण न तो सैनिक के लिए अच्छा है, न सेना के लिए।