जब मैं तेरे आँगन में एक फूल की माँनिंद खिला तू देख के मुझको जीती थी मैरे आँसू पीती थी माँ ओ माँ! अक्सर डर कर मैं छुप जाता था तेरे आँचल में ख़ुशियों के सारे रंग मैं पाता था तेरे आँचल में मेरे लिए तू ही सारी दुनिया थी तेरी झोली में ही तो मेरी सारी ख़ुशियाँ थी आज ! मैं उलझा हूँ जीवन के संघर्षों में पर इस तपती दोपहरी में भी माँ ! तेरी कोई दुआ बादल बनकर मेरी रूह से टकराती है और आज भी सारी फ़िक्रों के बीच मुझे ये ख़ुशियाँ दे जाती है माँ ओ माँ !