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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021 (19:58 IST)

नजरिया: इंदौर में IIT के स्टूडेंट का सुसाइड मेंटल हेल्थ के मोर्चे पर समाज और सिस्टम के लिए अलार्म!

भविष्य की आशंका को लेकर युवा निराशा, चिड़चिड़ेपन एवं फ्लैशबैक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं: डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी

नजरिया: इंदौर में IIT के स्टूडेंट का सुसाइड मेंटल हेल्थ के मोर्चे पर समाज और सिस्टम के लिए अलार्म! - Suicide of IIT student in Indore alarm for society and system on the front of mental health
इंदौर में IIT के छात्र सार्थक विजयवत के सुसाइड केस ने एक बार फिर कोरोना काल के बच्चों और युवाओं पर पड़ रहे साइड इफेक्ट की ओर हमारा ध्यान खींच लिया है। शुक्रवार को  इंदौर के IIT खड़गपुर में पढ़ने वाले छात्र सार्थक विजयवत ने सुसाइड कर लिया। सार्थक आईआईटी खड़गपुर में सेकेंड ईयर का छात्र था। सुसाइड से पहले सार्थक ने दो पेज का एक सुसाइड नोट भी लिखा। सार्थक ने लिखा वह काफी थक चुका है, कुछ चीजों से बेहद परेशान है। उसने जिस सोच के साथ आईआईटी में दाखिला लिया था वह भी पूरी नहीं हो पा रही है। इसके साथ उसने पारिवारिक संवादहीनता के बारे में भी जिक्र किया।
 
सार्थक ने सुसाइड नोट में लिखा कि “सॉरी! और अब क्या ही बोल सकता हूं, जिन उम्मीदों से JEE की तैयारी की थी, उनके टूटने के बाद ही सब कुछ बिगड़ता चला गया, कहां सोचा था कि कैंपस जाऊंगा, इन्जॉय करूंगा, कहां ये ऑनलाइन असाइनमेंट में फंस गया। शायद टाला जा सकता था, कई लोगों के पास मौका था लेकिन कुछ नहीं किया. शायद कोई बाहरी मकसद होगा। पापा आपको थोड़ा सा हम सबके साथ ज्यादा टाइम स्पेंड करना था. बात करनी चाहिए थी हमसे”।
 
मध्यप्रदेश में बच्चों के सुसाइड मामले लगातार बढ़ते जा रही है। NCRB की रिपोर्ट भी बताती है कि 2017-19 के बीच 14-18 एज ग्रुप के बच्चों की आत्महत्या के मामले में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है जहां इस दौरान 3,115 बच्चों ने आत्महत्या की।
जाने माने मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि युवाओं में अपने कैरियर के प्रति एक अलग तरह की एंग्जाइटी होती है। कोरोना काल के बाद युवाओं में एंग्जाइटी बढ़ी हुई देखी जा रही है। भविष्य की आशंका को लेकर युवा निराशा, चिड़चिड़ेपन एवं फ्लैशबैक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ऐसे में पैरेटेंस की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है कि वह लगातार संवाद करने के साथ उन पर और अधिक ध्यान रखे। 
 
बातचीत में डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षार्थी आत्महत्या की हाई रिस्क ग्रुप की कैटेगरी में आते है, इसलिए स्कूल-कॉलेज में भी समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि मानसिक रोगों जैसे डिप्रेशन की पकड़ पहले से ही की जा सके और उचित इलाज़ से आत्महत्या के खतरे को समय रहते समाप्त किया जा सके।
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि मध्यप्रदेश में हायर एजुकेशन में स्टूडेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण के लिए और युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने के लिए उन्होंने पिछले दिनों मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल को लेकर एक सुझाव पत्र भी सौंपा है। इसके साथ ही उच्च शिक्षा आयोग के प्रमुख सचिव अनुपम राजन के साथ भी उनकी इस मुद्दें पर विस्तृत चर्चा हुई है।
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि कोरोना काल के दुष्प्रभाव को देखते हुए सरकार को मानसिक स्वास्थ्य को तत्काल स्कूलों के सिलेबस में शामिल करना चाहिए। जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा, जीवन प्रबंधन, साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड को शामिल किया जाए। जिसमें हमारी नयी पीढ़ी बचपन से ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बन सकें और जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना बखूबी कर सकें और मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता के साथ कलंक का भाव भी न रहे, शिक्षकों को भी मानसिक रोगों के प्रति जानकारी होना आवश्यक है।