भाजपा संसदीय बोर्ड से शिवराज के बाहर और सत्यनारायण जटिया की एंट्री के क्या हैं सियासी मायने?
भोपाल। भाजपा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति की नई सूची ने राजनीतिक पंडितों को फिर एक बार चौंका दिया है। मोदी सरकार में वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर के नेता और सबसे टॉप फरफॉर्मर मंत्री नितिन गडकरी और चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को सियासी गलियारों में काफी चौंकाने वाला फैसला माना जा रहा है।
भाजपा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सात साल बाद बाहर होने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे है। ऐसे समय जब मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी मोड में आ चुका है तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दलित नेता सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शामिल कर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में मिशन 2023 के लिए अपनी रणनीति का साफ संकेत दे दिया है। सत्यनारायण जटिया से पहले भाजपा ने महाकौशल से सुमित्रा बाल्मीकि को राज्यसभा भेजकर दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की है।
दलित वोटरों को साधेंगे जटिया?-संघ के करीबी उज्जैन से सात बार सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया के सहारे मध्यप्रदेश में भाजपा ने दलित कार्ड खेल दिया है। मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें रिजर्व है। वहीं प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते है। मध्यप्रदेश में 17 फीसदी दलित वोटर बैंक है और विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के साथ यह वोट बैंक एकमुश्त जाता है वह सत्ता में काबिज हो जाती है।
दलित वोटर भाजपा से छिटका!-अगर पिछले चुनाव और उपचुनाव के नतीजों को देखे तो मध्यप्रदेश में दलित वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ लगातार कमजोर होती दिख रही है और कांग्रेस लगातार इस वोटबैंक को अपने साथ रखने में कामयाब हो रही है। सिंधिया की भाजपा में एंट्री के बाद मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा के अनुसूचित जाति के लिए अरक्षित कई सीटों पर हार का सामना करना है। इनमें ग्वालियर चंबल की आने वाली डबरा विधानसभा सीट के साथ भिंड की गोहद और शिवपुरी की करैरा विधानसभा सीट शामिल है। वहीं मालवा में आने वाली आगर विधानसभा सीट भी भाजपा के हाथ से फिसल कर कांग्रेस के खाते में चली गई थी।
दरअसल अनुसूचित जाति वर्ग की आरक्षित सीटों पर भाजपा को लगातार मिल रही पराजय में यह संदेश भी छुपा हुआ है कि कांग्रेस इस वर्ग के बीच अपनी पकड़ को मजबूत कर रही है। अब दलित नेता सत्यनारायण जटिया के सहारे भाजपा दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रही है।
बसपा का कमजोर होना भाजपा के लिए मौका-मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल और विध्य में दलित वोट बैंक एक बड़ी ताकत है। मध्यप्रदेश में ग्वालियर-चंबल और विंध्य में बहुजन समाज पार्टी की दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ थी। ऐसे मे जब पिछले दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक बसपा के हाथ से निकलकर भाजपा के साथ चला गया, तब भाजपा की नजर अब मध्यप्रदेश में दलित वोट बैंक पर टिक गई है।
2018 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते बसपा विधायक संजीव सिंह अब भाजपा में है। वहीं बसपा की दूसरी विधायक रामबाई बसपा से निलंबित है। अगर मध्यप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से केवल 18 पर जीत हासिल कर सकी थी जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 35 मे से 28 सीटों पर जाति हासिल की थी।
दलित वोटरों को लेकर संघ चिंतित!-मध्यप्रदेश से दलित नेता सत्यनारायण जटिया की संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में एंट्री के पीछे संघ की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। संघ से जुड़े सूत्र बताते है कि संघ के सर्वे में भाजपा लगातार दलित वोटबैंक के बीच अपना जनाधार खोती हुई दिख रही है, ऐसे में दलित वोट बैंक की बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए संघ ने सामाजिक समरसता पर लगातार जो रही है। संत रविदास जयंती पर शिवराज सरकार की तरफ से बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित होना इसी की एक कड़ी है।