बुधवार, 25 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. मध्यप्रदेश
  4. Kadaknath Chhattisgarh Madhya Pradesh GI
Written By
Last Modified: गुरुवार, 5 अप्रैल 2018 (17:02 IST)

कड़कनाथ पर छत्तीसगढ़ से 'जीआई जंग' जीतने से सिर्फ एक कदम दूर मध्यप्रदेश

कड़कनाथ पर छत्तीसगढ़ से 'जीआई जंग' जीतने से सिर्फ एक कदम दूर मध्यप्रदेश - Kadaknath Chhattisgarh Madhya Pradesh GI
- हर्षवर्धन प्रकाश 
 
इंदौर। देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने मध्यप्रदेश के झाबुआ की पारंपरिक प्रजाति के कड़कनाथ मुर्गे पर मध्यप्रदेश का दावा शुरुआती तौर पर मंजूर कर लिया है। इसके बाद पड़ोसी छत्तीसगढ़ ने इस प्रजाति के लजीज मांस को लेकर भौगालिक उपदर्शन (जीआई) प्रमाणपत्र हासिल करने की जंग में कदम पीछे खींचने के संकेत दिए हैं।

चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री की 28 मार्च को प्रकाशित भौगोलिक उपदर्शन पत्रिका में छपा है कि कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर झाबुआ की गैर सरकारी संस्था ग्रामीण विकास ट्रस्ट की दायर अर्जी को संबंधित कानूनी प्रावधानों के तहत ​मंजूर कर विज्ञापित किया जाता है। इस अर्जी को "पोल्ट्री मांस" की श्रेणी में शुरूआती तौर पर स्वीकार किया गया है। 

जानकारों के मुताबिक अगर इस विज्ञापन के प्रकाशन के अगले तीन महीने में कोई आपत्ति सामने नहीं आती है, तो तय प्रक्रिया के तहत कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस के संबंध में झाबुआ की संस्था को जीआई प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाएगा। इस संस्था ने वर्ष 2012 में कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर जीआई प्रमाणपत्र की अर्जी दी थी।

लंबी जद्दोजहद के बाद इस अर्जी पर अंतिम फैसला हो पाता, इससे पहले ही एक निजी कम्पनी यह दावा करते हुए जीआई दर्जे की जंग में कूद गई कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मुर्गे की इस प्रजाति को अनोखे ढंग से पालकर संरक्षित किया जा रहा है।

बहरहाल, भौगोलिक उपदर्शन पत्रिका में झाबुआ स्थित संस्था की अर्जी मंजूर किए जाने का विज्ञापन छपने के बाद दंतेवाड़ा के जिलाधिकारी सौरभ कुमार ने फोन पर कहा कि कड़कनाथ चिकन पर दावे को लेकर इस विज्ञापन के खिलाफ हमारी ओर से आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाएगी।

उन्होंने कहा, "जीआई रजिस्ट्री में छत्तीसगढ़ ने नवंबर 2017 में कड़कनाथ चिकन को लेकर दावा किया, जबकि इस सिलसिले में मध्यप्रदेश का दावा हमसे काफी पुराना है। अब हम मध्यप्रदेश के साथ किसी जंग में उलझना नहीं चाहते। हम बस इतना चाहते हैं कि हमारे उन 180 आदिवासी महिला समूहों के हित प्रभावित न हों, जो हर साल कड़कनाथ के करीब 2.5 लाख चूजों का उत्पादन करते हैं। 

झाबुआ मूल के माने जाने वाले कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में 'कालामासी' कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ के मांस में दूसरी प्रजातियो के चिकन के मुकाबले चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है. झाबुआ मूल की प्रजाति के गोश्त में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। कड़कनाथ चिकन की मांग इसलिए भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसके मांस में अलग तरह का स्वाद और गुण पाए जाते हैं।