वैभव श्रीधर, भोपाल। टिकट वितरण के शुरुआती दौर में राजनीतिक दलों द्वारा दावे किए जा रहे थे कि महिलाओं को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
महिला आरक्षण बिल के बाद जिस तरह भाजपा ने अपने संविधान में संशोधन करके 33 फीसदी स्थान संगठन में महिलाओं के लिए आरक्षित किए थे, इसके बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में बराबर तवज्जो दी जाएगी लेकिन पार्टी ने सिर्फ 10 प्रतिशत यानी 23 सीटें ही महिलाओं को दीं जबकि प्रदेश संगठन ने दावा किया था कि 33 फीसदी यदि सीटें नहीं दी जातीं तो कम से कम हर जिले में एक सीट महिलाओं को दी जाएगी, लेकिन दावा सिर्फ दावा रहा। महिलाओं को टिकट देने में कांग्रेस सबसे आगे रही। हालाँकि इसके लिए प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी को काफी संघर्ष करना पड़ा। कुछ सीटों पर अन्य कद्दावर नेताओं के विरोध के बावजूद पार्टी ने 12.60 फीसदी यानी 29 सीटों पर महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया जबकि पार्टी 229 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एक सीट बुरहानपुर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ी गई है।
दूसरी ओर मायावती के नेतृत्व वाली बसपा की महिलाओं से बेरुखी टिकट वितरण में साफ देखी जा सकती है। इस पार्टी ने 230 में से मात्र 13 यानी 5.22 फीसदी सीटों से ही महिलाओं को अपना नुमाइंदा बनाकर प्रस्तुत किया जबकि सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के चलते उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देगी।
इसी तरह उमा भारती की अगुआई वाली भाजश में भी पुरुषों का बोलबाला रहा। घोषित 216 सीटों में सिर्फ 18 पर ही महिलाओं को अगुआई करने का मौका दिया गया जबकि इन्हीं उमा भारती के मुख्यमंत्रित्वकाल में थाने से लेकर मंत्रालय तक महिलाओं की तूती बोलती थी। पहली दफा मंत्रालय की सुरक्षा की कमान महिला अधिकारी को सौंपी गई थी। सपा का हाल महिलाओं को आगे करने में सबसे बुरा है। पार्टी ने घोषित 225 सीटों में से 16 पर ही महिला उम्मीदवार दिए। लगभग यही हालत गोंडवाना मुक्ति सेना, लोक जनशक्ति, राष्ट्रीय समानता दल सहित अन्य क्षेत्रीय दलों की है।