बंगाल में ज्यादा तो बिहार में कम वोटिंग के मायने, किसे होगा फायदा
Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा की 102 सीटों पर हुए मतदान के बाद वोटिंग का जो आंकड़ा सामने आया है, उसके अनुसार मतदाता की उदासीनता ज्यादा सामने आई है। हालांकि पश्चिम बंगाल में 77 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है, वहीं बिहार में सबसे कम 48.50 प्रतिशत मतदान हुआ है। ऐसे में एक सवाल उठ रहा है कि बंगाल में 77 फीसदी मतदान और बिहार में मतदाताओं की उदासीनता से किस पार्टी या गठबंधन को फायदा हो सकता है। सर्वाधिक मतदान त्रिपुरा (80.17 प्रतिशत) में हुआ है।
सभी सीटों पर एनडीए का कब्जा : बंगाल की 3 और बिहार की जिन 4 सीटों पर मतदान हुआ है, उन पर फिलहाल भाजपा या उसके गठबंधन सहयोगी दलों का ही कब्जा है। पश्चिम बंगाल में कूचबिहार, जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। ये तीनों ही सीटें 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीती थी।
यदि ज्यादा मतदान का फायदा राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी को मिलता है तो भी भाजपा को खास नुकसान होता दिखाई नहीं देता क्योंकि पिछले चुनाव में कूचबिहार में निसिथ प्रमाणिक 54 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे, जबकि जलपाईगुड़ी में जयंत कुमार रॉय 1 लाख 84 हजार से ज्यादा वोटों से विजयी रहे थे।
इसी तरह अलीपुर द्वार सीट जॉन बारला ने 2 लाख 43 हजार वोटों से जीती थी। यदि ज्यादा मतदान का फायदा टीएमसी को मिलता है तो भाजपा को सिर्फ कूचबिहार में नुकसान हो सकता है। यदि ज्यादा मतदान भाजपा के पक्ष में जाता है तो पार्टी के उम्मीदवारों की जीत का अंतर और ज्यादा बढ़ सकता है। निसिथ प्रमाणिक वर्तमान में मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं। बंगाल में जहां संदेशखाली कांड टीएमसी को नुकसान पहुंचा सकता है, वहीं अयोध्या राम मंदिर और मोदी लहर का भाजपा को फायदा हो सकता है। चुनाव में बेरोजगारी भी एक मुद्दा रहा है।
बिहार की चारों सीटें एनडीए के पास : दूसरी ओर, पहले चरण में बिहार की 4 सीटों- औरंगाबाद, नवादा, गया और जमुई सीटों पर मतदान हुआ है। ये चारों ही सीटें एनडीए के पास हैं। 2019 में भाजपा के सुशील कुमार सिंह ने औरंगाबाद सीट 72 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थी, जबकि जमुई में चिराग पासवान 2 लाख 41 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे। नवादा में भी लोजपा के चंदन सिंह 1 लाख 48 हजार वोटों से जीते थे। गया सीट पर जदयू के विजय कुमार मांझी भी 1 लाख 52 हजार वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
मतदाता की उदासीनता का किसको नुकसान : बिहार में जिस तरह से कम मतदान हुआ है, उससे मतदाताओं की उदासीनता नजर आई है। इसमें 'जीतेगा तो मोदी' नारे की बड़ी भूमिका हो सकती है। गर्मी तो थी ही संभवत: मतदाताओं को लगा हो कि मोदी जीत ही जाएंगे, ऐसे में बाहर निकलने की जरूरत ही क्या है। हालांकि यदि विपक्षी दल अपने वोटरों को निकालने में सफल रहा होगा और एनडीए के वोटर उदासीन रहे हों तो इसका फायदा बिहार में महागठबंधन को मिल सकता है। फिलहाल एनडीए को नुकसान होता दिख नहीं रहा है। जीत का अंतर जरूर कम हो सकता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala