जमुई सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे चिराग पासवान
पटना। बिहार में नक्सल प्रभावित जमुई (सुरक्षित) संसदीय क्षेत्र में इस बार के लोकसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को 'चिराग' रोशन रखने की चुनौती होगी।
देश के चुनावी इतिहास में करीब 38 वर्ष तक अस्तित्वविहीन रही जमुई सीट ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अभिनय की दुनिया में विफल रहे चिराग पासवान को राजनीति में एक मुकम्मल वजूद जरूर दिया है।
ठीक पांच साल पहले इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को अंधेरे में धकेलकर लोजपा ने चिराग तो जलाया, लेकिन वर्ष 2019 के आम चुनाव में उसे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के पंखे (चुनाव चिन्ह) की तेज हवाओं के बीच चिराग को रोशन रखने की चुनौती होगी।
बॉलीवुड को ‘मिले ना मिले हम’ कहकर 16वें आम चुनाव (2014) में जमुई सीट पर भाग्य आजमाने आए केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा के अध्यक्ष रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की टक्कर राजद के सुधांशु शेखर भास्कर और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) प्रत्याशी एवं बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के साथ रही।
इस त्रिकोणीय मुकाबले में चिराग ने 285354 मत हासिल कर अपने प्रतिद्वंद्वियों को चारों खाने चित कर दिया। इस चुनाव में भास्कर को जहां 199407 वोट मिले, वहीं चौधरी ने 198599 मत हासिल कर अपनी मजबूत उपस्थित दर्ज कराई थी।
इस बार के चुनाव (2019) में बिहार में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। पिछले चुनाव में जहां लोजपा और रालोसपा राजग का घटक दल थी वहीं जदयू ने अपने बलबूते चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार लोजपा और जदयू राजग का हिस्सा हैं लेकिन रालोसपा अब राजद नीत महागठबंधन का घटक बन गई है। इसलिए तालमेल के तहत राजग में जमुई सीट लोजपा के पास ही है लेकिन महागठबंधन में यह रालोसपा के खाते में गई है।
17वें संसदीय चुनाव में इस सीट पर त्रिकोणीय नहीं बल्कि लोजपा के चिराग पासवान और रालोसपा प्रत्याशी एवं इसी सीट से सांसद रह चुके भूदेव चौधरी के बीच सीधा मुकाबला होगा। चौधरी इस क्षेत्र से वर्ष 2009 के आम चुनाव में सांसद चुने गए थे। उन्होंने 178560 मत हासिल कर राजद प्रत्याशी श्याम रजक को 29797 मतों के अंतर से पराजित कर दिया था।
हालांकि पिछले पांच साल में चिराग के प्रयास से जमुई में विकास के कई ऐसे कार्य हुए हैं, जो उन्हें जनता की पसंद बनाता है। उनके प्रमुख कार्यों में रेलवे स्टेशन और मेडिकल कॉलेज की स्थापना जैसे कार्य महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसका उन्हें लाभ अवश्य मिलेगा।
इस सीट की विडंबना रही है कि दो अलग-अलग बार में यह करीब 38 वर्षों तक अस्तित्व में नहीं रही। इस संसदीय क्षेत्र ने आजाद भारत के पहले वर्ष 1952 का आम चुनाव तो देखा लेकिन 1957 में इसका अस्तित्व समाप्त कर इसे मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में मिला दिया गया। पुन: 1962 में यह लोकसभा सीट वजूद में आई लेकिन परिसीमन के पेचोखम में फंसकर 1977 में इसके अस्तित्व को खत्म कर दिया गया। इसके बाद सीधा 2009 में इस सीट को पुन: जीवनदान मिला और यह इस वर्ष हुए आम चुनाव का गवाह बना।