• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. व्यंग्य
  4. aamdani athanni ghotala rupaiya
Written By डॉ. आशीष जैन

आमदनी अठन्नी, घोटाला रुपईय्या

आमदनी अठन्नी, घोटाला रुपईय्या - aamdani athanni ghotala rupaiya
बही-खातों में जब छोटे-छोटे घपले टाले जाते हैं, तो वो घोटाले बन जाते हैं। आशावादी भारतीय लोकतंत्र में घोटाला होना एक शुभ संकेत है। निराश न हों, कम से कम पता तो चल रहा है कि घोटाला हुआ है। घपले तो आए दिन टल जाते हैं, पर घोटाले की जांच अवश्य होती है। और वो भी कोई छोटी-मोटी नहीं, अपितु सीबीआई की जांच क्योंकि यह पता लगाना आवश्यक है कि घोटाला हुआ किसके काल में है? ताकि चुनाव-दर-चुनाव इसका दोहन किया जा सके।
 
चुनाव में ढिंढोरा पीटने के अलावा घोटालों का इस देश में कोई और परिणाम नहीं निकला है। एक बिहारी बाबू को छोड़ दें तो बताइए और कौन जेल गया है? पता नहीं, उस बेचारे ने भी किस भैंस का चारा खाया था। इसके अलावा तो बाकी सब रिहा हो गए- कुछ तो जेल से, बाकी देश से।
 
अंग्रेजों की भी किस्मत देखिए, इतना लूटने के बाद भी पता नहीं क्या कुछ बच गया था, जो हमारे घोटालिए किश्तों में महारानी के खजाने में जमा करने जाते हैं और फिर वापस भी नहीं आते। देशवासी उन्हें कातर दृष्टि से निहारते रहते हैं, जैसे नन्हा बच्चा चंदा मामा को देखता है- कब आएंगे और टूटी प्याली लौटाएँगे?


 
समय आ गया है कि सरकार घोटालियों को उद्यमी का स्थान व सम्मान दे। क्यों न 'स्किल इंडिया' में घोटाला करने में दक्षता प्राप्त करने की मानद उपाधि दी जाए। 'स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया' की महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत सरकार उन्हें सहयोग दे और नए-नए घोटाले करने में सहायता प्रदान करें, जिससे वे 'रन अवे फ्रॉम इंडिया' न हो जाएं। हमें इस 'ब्रेन ड्रेन' को किसी भी कीमत पर रोकना होगा। ऐसा करने से देश का पैसा देश में ही रहेगा।

 
जिस गति से भारतीय रुपया ब्रितानी पाउंड को सशक्त करने में लगा है, कुछ ही वर्षों में महारानी के मुकुट के साथ-साथ गले में भी एक नहीं, एक सौ आठ कोहिनूरों की माला होगी। फिर अँग्रेजी भाषा के भारतीय इतिहासकार बड़े चाव से लिखेंगे कि कोहिनूर लूटा नहीं गया था, अपितु भारत की जनता ने दान दिया था। वैसे भी 'जन-धन' खाते खोलकर सरकार ने बैंकों को इतनी पूंजी तो उपलब्ध करा ही दी है कि दो-चार छोटे-मोटे घोटाले तो आराम से हो सकते हैं।

 
'स्वच्छ भारत अभियान' के अंतर्गत बैंकों की सफाई ज़ोर-शोर से चल रही है। सरकार हर बैंक के भीतर ही शौचालय बनाने में आर्थिक व तकनीकी सहयोग कर रही है, जिससे कि घोटालियों को 'बाहर न जाना पड़े'। दोनों हाथ ऊपर उठाकर बताओ मित्रों, ऐसा होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए...?
 
प्रसंगवश, लेखक यहाँ भारतीय मीडिया की तुलना कुंभकर्ण से करना चाहता है। भूख इतनी कि प्रतिदिन नए-नए मुद्दे बनाने पड़ते हैं, तो भी चौबीस घंटे के लिए कम पड़ते हैं। कई मुद्दे तो बेस्वाद और कड़वे भी होते हैं, परंतु वह उसे भी उदरस्थ करने में कोई संकोच नहीं करती। दूसरी ओर सरकार मूल मुद्दों पर करवट लेकर खर्राटे मारकर ऐसी सो जाती है कि कुंभकर्ण भी स्वयं को तुच्छ समझे।

 
स्वयंभू खोजी पत्रकार हो रहे घोटाले नहीं खोजते, वो मात्र हो चुके घोटाले ढूंढकर परोसते हैं। जब पैसा बंट चुका होता है और चट चुका होता है, सारे सबूत और गवाह ठिकाने लगाए जा चुके होते हैं और घोटालिए आप्रवासन खिड़की से सील-ठप्पा लगवाकर ससम्मान विदेश पंहुच जाते हैं, तब कुंभकर्ण जाग्रत होता है। 'मुझे भूख लगी है, भोजन दो' के स्वर से सारा प्राइम टाइम गूंज उठता है। और फिर नए-नए पकवान बनाकर जठराग्नि को शांत किया जाएगा। जनता के लिए यह तत्वरहित जंकफूड है, जो चटपटा स्वाद तो देता है, पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। घपलों को अनदेखा करना भी एक घोटाला है। और फिर चीख-चीखकर स्वयं को देश का हिमायती बताना एक षड्यंत्र है।

 
घोटालिए अपनी मनमर्जी से जहाँ-तहाँ घोटाले कर रहे हैं, सरकार में पदासीन अधिकारी उनका सहयोग कर रहे हैं। मीडिया आंखें मूँदे अनभिज्ञ बनकर बैठा है। न्यायपालिका, धनाढ्यों के आँगन में आंखों पर काली पट्टी बांधे संगमरमर की मूर्ति बनी खड़ी है। जनहित योजनाओं के लिए अठन्नी भी नहीं मिलती जबकि घोटालिए रुपए पर रुपए उड़ा रहे हैं...!
 
शीघ्र ही भारत को 'सोने के पानी से रंगी चिड़िया' के नाम से जाना जाएगा।
 
।।इति।।
(लेखक मैक्स सुपर स्पेश‍लिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में श्वास रोग विभाग में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं)