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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 20 नवंबर 2023 (15:22 IST)

क्या नाटो में शामिल होगा युद्धग्रस्त यूक्रेन?

क्या नाटो में शामिल होगा युद्धग्रस्त यूक्रेन? - Will war-torn Ukraine join NATO?
-टेरी शुल्स
 
Ukraine: रूसी कब्जे से घिरे यूक्रेन को नाटो के एक पूर्व प्रमुख ने गठबंधन में शामिल करने की सिफारिश की है। लेकिन लगता नहीं कि सदस्य देश इस प्रस्ताव पर सहमत होंगे। 2008 से नाटो ये वादा करता रहा है कि यूक्रेन एक रोज गठबंधन का सदस्य बनेगा। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की बार बार गुहार लगा चुके हैं। वो चाहते हैं कि युद्ध खत्म होने के बाद उनके देश को नाटो में शामिल कर लिया जाए। लेकिन अभी तक उनकी अपील अनसुनी ही है।
 
इस बीच नाटो के पूर्व महासचिव आंदेर्स फोग रासमुसेन ने सार्वजनिक रूप से यूक्रेनी सदस्यता का प्रस्ताव सामने रख दिया जिस पर कई पर्यवेक्षकों ने असहमति जताई। रासमुसेन करीब एक दशक तक यूक्रेनी राजनीतिज्ञों के लिए पेड सलाहकार की भूमिका में रह चुके हैं।
 
अभी दूर-दूर तक युद्ध के खात्मे के कोई निशान नहीं दिख रहे। इसके बावजूद, रासमुसेन कहते हैं कि यूक्रेन को नाटो सदस्यता दे देनी चाहिए, भले ही क्रीमिया, दोनबास और दूसरे इलाके अभी रूस के अवैध कब्जे में हैं। उनकी दलील है कि अगर यूक्रेन, नाटो गठबंधन की सामूहिक सुरक्षा की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 5 के तहत आ जाता है तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उसकी अतिरिक्त जमीन हथियाने की जुर्रत नहीं करेंगे।
 
यूक्रेन को नाटो की छतरी के नीचे जल्द से जल्द लाने की पुरजोर वकालत करने वाले कुछ नेताओं को भी रासमुसेन का फार्मूला जंच नहीं रहा। लिथुआनिया के विदेश मंत्री गाब्रिलियस लैंड्सबर्गिस पुतिन के साथ युद्धविराम के विकल्प को किसी भी हाल में आगे नहीं रखना चाहते। वो इस ख्याल को ही शर्मनाक मानते हैं।
 
सोमवार को यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों की बैठक में उन्होंने कहा, 'किसी भी किस्म की वार्ता, रूस के लिए विजय दिवस में बदल जाएगी। अपने भूभाग को दूसरे के हवाले कर देने की बात, अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। क्षेत्रीय अखंडता अटल और पाक होती है।'
 
लैंड्सबर्गिस ने अपनी असहमति जताते हुए ये भी कहा कि 'किसी चीज के लिए कुछ दे बैठना, ये काम इस तरह नहीं करना चाहिए।'
 
यूक्रेन में योजना के चंद समर्थक
 
यूक्रेन की राजधानी कीव से, डॉयचे वेले से बातचीत में यूक्रेनी सांसद आंद्रेइ ओसादचुक ने भी मिलती-जुलती बात कही। उनके मुताबिक यूक्रेन के लिए ये योजना सफल नहीं होगी। उन्होंने कहा, 'बुरे पक्ष के साथ किसी भी तरह का युद्धविराम, संघर्ष का खत्मा या कोई भी समझौता करने से, रूस को फिर से ताकत बटोरने का मौका मिल जाएगा।' उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नाटो ऐसे देश को बतौर सदस्य रख लेगा जिसका अपने भूभाग पर पूरा नियंत्रण भी नहीं।
 
लेकिन ओसादचुक ये भी मानते हैं कि रूस ऐसे किसी सुझाव को खारिज ही करेगा, क्योंकि उसकी निगाहें और बड़े फायदों पर होंगी। उन्होंने कहा, 'रूस को अभी भी लगता है कि कि वो धीरे धीरे समूचे यूक्रेन को निगल जाएगा, एक अजगर की तरह। पश्चिम, यूक्रेन के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए फिलहाल लड़ने को तैयार नहीं दिखता- और यही चीज इन 'जानकारों' को ऐसे 'महान' ख्यालों के लिए जमीन मुहैया करा रही है, जिनका वास्तविकता से कतई कोई लेना-देना नहीं।'
 
फुस्स हो गया बयान?
 
लेकिन ये विचार पहले भी सामने आ चुका है। अगस्त में नाटो के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग के चीफ ऑफ स्टाफ स्तियान येनसन ने नॉर्वे में एक कॉंफ्रेंस के दौरान कहा था कि नाटो सदस्यता के बदले यूक्रेन अपनी कुछ जमीन छोड़ भी सकता है। इसे उन्होंने एक संभावित नतीजा बताया।
 
नॉर्वेयाई भाषा में ये टिप्पणी, अंतरराष्ट्रीय प्रेस के सामने की गई थी। यूक्रेन में और इस दलील के समर्थकों में फौरन कोहराम मच गया। 24 घंटे के भीतर स्टॉल्टेनबर्ग को दोबारा तस्दीक करनी पड़ी कि नाटो यूक्रेन को अपनी क्षेत्रीय अखंडता वापस हासिल करने का समर्थन करता है, स्तियान येनसन को सफाई देनी पड़ी कि वो अपनी बात ठीक से नहीं रख पाए।
 
'क्रीमिया यूक्रेन है,' इस बात का क्या हुआ?
 
नाटो के पूर्व रक्षा अर्थशास्त्री और विश्लेषक एडवर्ड हंटर क्रिस्टी कहते हैं कि यूक्रेन के मामले में की जा रही असल गल्तियों का ये महज एक उदाहरण है- कथनी और करनी दोनों में।
 
हंटर क्रिस्टी ने डीडब्ल्यू को बताया, 'आदर्श नतीजे के रूप में अपनी समूची जमीन को वापस हासिल करने को लेकर यूक्रेन के आधिकारिक पक्ष और मदद के वास्तविक स्तर- खासतौर पर सैन्य मदद- के बीच बड़ा फासला है। ये काफी असाधारण है और स्पष्ट रूप से बड़ा अजीब भी, कि एक तरफ कूटनीतिक तौर पर हम मानते हैं, क्रीमिया यूक्रेन है और यूक्रेन को अपनी जमीन को रिकवर करने का हक है, लेकिन इसी दौरान हम, उसे लंबी दूरी के हथियार देने के लिए लगातार मना भी करते आ रहे हैं। जबकि उसे तमाम साजोसामान की जरूरत है जिससे वो जमीनी हालात में बदलाव करने का असल मौका हासिल कर सके। फिर हम देखेंगे, हमारी कूटनीति क्या रुख लेती है।'
 
जर्मन मार्शल फंड से जुड़े ब्रुनो लेटे भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर कैसे रासमुसेन मान बैठे कि सुरक्षा गारंटियां यूक्रेन के लिए काम कर जाएंगी। वो हैरानी जताते हैं, 'एकबारगी माना यूक्रेन गठबंधन की छतरी के नीचे आ भी गया तो रूस को उस पर हमला करने से आप कैसे रोकेंगे?' क्या इसका मतलब ये है कि नाटो भी अपनी फौज उतार देगा? क्या इसका मतलब ये है कि बाल्टिक क्षेत्र की तरह हमें यूक्रेन में भी एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की तैनाती के बारे में सोचना पड़ेगा?'
 
लेटे, हंटर क्रिस्टी से सहमत हैं कि शांति का रास्ता यूक्रेन की सैन्य प्रभुता के जरिए ही गुजरता है। वो कहते हैं, 'तभी यूक्रेन एक ऐसा सौदा कर पाने में समर्थ होगा जिसमें उसे पूरी तरह नुकसान न उठाना पड़े।'
 
लेटे मानते हैं कि ये प्रस्ताव ऐसे व्यक्ति से आया है जो इस समय नाटो से बाहर है, इसके बावजूद 'इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ये वो विकल्प है जिस पर गठबंधन, बहुत सारे विचारों के पैकेज के तहत, चर्चा कर रहा है। मेरे ख्याल से नाटो भी इस समय काफी दबाव में है, उसे यूक्रेन से 2008 में किए सदस्यता के वादे को भी पूरा करना है।' लेकिन वो ये भी कहते हैं कि रासमुसेन ने जो विचार सुझाया, 'उससे न यूक्रेन की जीत होगी ना पश्चिम जीतेगा।'
 
लेकिन हंटर क्रिस्टी मानते हैं कि नाटो ने यूक्रेन को उसकी पूरी जमीन पर कब्जा वापस दिलाने का संकल्प किया है। उन्होंने कहा, 'सामरिक और सैन्य और कानूनी तौर पर, और गठबंधन की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और साख को देखते हुए, हमें हर हाल में ये कर दिखाना होगा।'
 
यूक्रेन की लड़ाई के पक्ष में समर्थन कम होने लगा है, इस बात के संकेत मिलने लगे हैं। आज ये बात सुनने में भले ही नागवार लगती हो लेकिन ऐसा लाजिमी तौर पर शायद न हो कि राष्ट्रपति जेलेंस्की अपने देश के कुछ हिस्से पर दावा छोड़कर उसे 'शांति' समझौता कहने लग पड़ें।
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