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Last Modified: मंगलवार, 3 जुलाई 2018 (11:20 IST)

भारत आना चाहते हैं अफगान सिख

भारत आना चाहते हैं अफगान सिख | sikh in afghanistan
सांकेतिक चित्र
अफगानिस्तान के जलालाबाद में सिख समुदाय पर हुए आतंकवादी हमले के बाद वहां से सिखों में गुस्सा है। वे अब अफगानिस्तान को छोड़कर भारत वापस आना चाहते हैं।
 
 
अफगानिस्तान का जलालाबाद शहर रविवार की शाम एक बम धमाके से दहल उठा जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई, वहीं 21 लोग घायल हो गए। इनमें ज्यादातर सिख और हिंदू थे, जो राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात का इंतजार कर रहे थे। इस्लामिक स्टेट द्वारा किए गए इस हमले के पीड़ितों में संसदीय चुनाव के एकमात्र उम्मीदवार अवतार सिंह खालसा और एक्टिविस्ट रावल सिंह शामिल थे। इस फिदायीन हमले में अपने चाचा को खो चुके तेजवीर सिंह का कहना हैॆ, ´अब हम अफगानिस्तान में नहीं रहना चाहते। हम अफगान हैं, लेकिन आतंकवादियों ने हमें निशाना बनाया क्योंकि हम मुसलमान नहीं हैं। सिखों की धार्मिक स्वतंत्रता को इस्लामिक स्टेट बर्दाश्त नहीं कर सकता।´
 
 
हिंदुओं और सिखों के नेशनल पैनल के सचिव तेजवीर सिंह ने बताया कि अफगानिस्तान में सिखों के बस 300 परिवार हैं और सिर्फ काबुल और जलालाबाद में गुरुद्वारे हैं। 10 साल पहले तक अफगानिस्तान में तीन हजार सिख रह रहे थे। 90 के दशक अफगानिस्तान में में करीब 2।5 लाख सिख समुदाय के लोग रहा करते थे। गृहयुद्ध के बाद हालात ऐसे बिगड़े कि सिखों को देश छोड़कर जाना पड़ा। 
 
 
अफगानिस्तान के संविधान और राजनीति में सिखों को भले ही धार्मिक स्वतंत्रता दी गई हो, लेकिन इन्हें पूर्वाग्रहों और यातना का सामना करना पड़ता है। इस्लामिक स्टेट की ओर से हिंसा और प्रताड़ना की वजह से हजारों सिख भारत की ओर पलायन कर रहे हैं। जलालाबाद के हमले के बाद सिखों ने भारतीय दूतावास में शरण ले रखी है। 
 
 
जलालाबाद में किताबों की दुकान चलाने वाले बलदेव सिंह कहते हैं, "हमारे पास दो विकल्प हैं, या तो हम अफगानिस्तान छोड़कर भारत चले जाएं या फिर इस्लाम धर्म कबूल कर लें। भारत ने अफगानिस्तान के सिख और हिंदू समुदाय के लोगों को लॉन्ग टर्म वीजा देना शुरू दिया है। अफगानिस्तान में भारत के दूत विनय कुमार के मुताबिक, "अफगानिस्तान के हिंदू और सिख जब तक चाहें भारत में रह सकते हैं। हम यहां उन्हें मदद करने के लिए हैं। अंतिम फैसला उन्हें लेना है।"
 
 
लेकिन अफगानिस्तान में कुछ सिख ऐसे भी हैं जो देश छोड़कर भारत नहीं आना चाहते। जिनकी जमीन या व्यापार भारत में नहीं है, उनका भारत आने का कोई इरादा नहीं है। काबुल में दुकान चलाने वाले संदीप सिंह कहते हैं, "हम कायर नहीं है जो कहीं और चले जाएं। अफगानिस्तान हमारा वतन है और हम कहीं नहीं जाएंगे।" 
 
 
- वीसी/आईबी (रॉयटर्स) 
 
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