अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने पाकिस्तान से चरमपंथी गुटों के खिलाफ कदम उठाने को कहा है। अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी कहते हैं कि पाकिस्तान को अमेरिका की बात ना मानने पर गंभीर नतीजे झेलने होंगे।
हुसैन हक्कानी ने डीडब्ल्यू से एक खास बातचीत में अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों के विभिन्न पहलुओं पर बात की। इसके अलावा उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना को पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह बताया। पेश है इसी बातचीत के अंश।
पाकिस्तान अकसर कहता है कि उसने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में बहुत "कुरबानियां" दी हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय फिर भी उसकी सराहना नहीं करता। क्या यह बात सही है?
यह बदकिस्मती है कि पाकिस्तान ने 9/11 के बाद से अपने बहुत सारे सैनिकों और आम लोगों को खोया है। लेकिन इससे यह तथ्य नहीं बदल जाता है कि यह पाकिस्तान की ही गलत नीतियों का नतीजा है। एक तरफ वह कुछ आतंकवादियों से लड़ रहा है तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे ही लोगों का समर्थन कर रहा है।
ट्रंप की अफगानिस्तान नीति का पाकिस्तान पर क्या असर होगा?
अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान को "एक और आखिरी" मौका दे रहा है कि वह अफगानिस्तान को लेकर अपनी नीति अमेरिकी नीति के अनुरूप करे। अगर अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के लिए पाकिस्तान अपना समर्थन जारी रखता है तो पाकिस्तान को ऐसे नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं जिनका सामना उसने पहले कभी नहीं किया है।
पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों को आप आगे कैसे देखते हैं?
दोनों देश लगातार एक दूसरे से दूर जा रहे हैं। इसे बदलने के लिए पाकिस्तान को अपने यहां मौजूद सभी जिहादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी, खास कर उन पर भी जो भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ हमले करते हैं।
पाकिस्तान पर आरोप लगते हैं कि अफगानिस्तान से लगने वाली सीमा पर वह आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहें मुहैया करा रहा है और इसीलिए वह दुनिया में अलग थलग पड़ रहा है। इस अलगाव को खत्म करने के लिए पाकिस्तान को क्या करना चाहिए?
यह बात सही है कि पाकिस्तान लगातार अलग थलग पड़ता जा रहा है। चीन और रूस के साथ रिश्ते मजबूत करने से उसका यह अलगाव दूर नहीं होगा। पाकिस्तान को जिहादियों की सुरक्षित पनाहगाहें खत्म करनी होंगी। यह न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में उसके अलगाव को खत्म करने के लिए, बल्कि खुद के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है।
हाल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान ट्रंप प्रशासन के साथ काम करने को तैयार है। उनका यह बयान क्या किसी नीतिगत बदलाव की तरफ इशारा करता है?
अमेरिका में पाकिस्तान के सामने विश्वसनीयता की समस्या रही है। ऐसे वादे तो बरसों से किये जा रहे हैं लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला है। जिस तरह पाकिस्तान अफगान तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और लश्कर ए तैयबा को समर्थन दे रहा है, अमेरिका उसे कतई अनदेखा नहीं कर सकता। कुछ आतंकी गुटों पर कार्रवाई करना और कुछ को बचाने की नीति अब नहीं चलेगी।
आप पाकिस्तान-चीन आर्थिक कोरिडोर को कैसे देखते हैं?
पाकिस्तान आर्थिक रूप से अब अमेरिका की बजाय चीन पर निर्भर होता जा रहा है। चीन पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है ताकि भारत दक्षिण एशिया में ही उलझा रहे। आर्थिक कोरिडोर से पाकिस्तान की समस्याएं हल नहीं होंगी, बल्कि जल्द ही यह पाकिस्तान के लिए आर्थिक बोझ बन जाएगा। पाकिस्तान को ऊंची दर पर लिए गये लोन ब्याज के साथ चुकाने होंगे।
पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान ने बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्तिस्तान और अन्य इलाकों में आर्थिक कोरिडोर के खिलाफ प्रदर्शनों पर कार्रवाई की है। कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें गायब किया गया और उनका उत्पीड़न हुआ है।
पाकिस्तान सरकार हाफिज सईद जैसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता है जिनकी निशानदेही अमेरिका ने आतंकवादी के तौर पर की है?
क्योंकि पाकिस्तानी सेना भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ सक्रिय जिहादी गुटों को अब भी अपनी पूंजी समझती है। बल्कि वे तो हाफिज सईद को मुख्यधारा में लायेंगे और कहेंगे कि वह सिर्फ एक राजनेता है जिसके विचार उग्रपंथी हैं। वह उसे ऐसा आतंकवादी नहीं मानेंगे जिसे सजा दी जानी चाहिए।
हुसैन हक्कानी अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हैं और फिलहाल वह वॉशिंगटन स्थित संस्थान हडसन इंस्टीट्यूट के निदेशक हैं। उनके साथ यह इंटरव्यू डीडब्ल्यू के आतिफ तौकीर ने किया।