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Last Modified: गुरुवार, 5 जनवरी 2017 (11:13 IST)

रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के कोई सबूत नहीं: रिपोर्ट

rohingya muslims । रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के कोई सबूत नहीं: रिपोर्ट - myanmar rohingya muslims
म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा की जांच करने वाले एक आयोग ने इस बात से इनकार किया है कि वहां सुरक्षा बलों ने रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया है।
पुलिस चौकियों पर हमलों के बाद पिछले साल अक्टूबर में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने रखाइन प्रांत में अभियान छेड़ा था। इसके बाद दसियों हजार रोहिंग्या लोग वहां से भाग गए। बताया जाता है कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान दर्जनों रोहिंग्या लोग मारे गए। इस दौरान सुरक्षा बलों पर महिलाओं के साथ बलात्कार, उत्पीड़न और आगजनी करने के आरोप भी लगे।
 
नोबेल शांति विजेता आंग सान सू ची के नेतृत्व वाली म्यांमार की सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया और अल्पसंख्यक रोहिंग्या लोगों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव को मानने से इनकार कर दिया। म्यांमार अपने यहां रहने वाले लगभग दस लाख रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं मानता। वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी समझता है। असल में इन लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है।
 
बौद्ध बहुल देश म्यांमार में इन लोगों को "बंगाली" कहा जाता है। भेदभाव और प्रताड़ना का शिकार होकर बहुत से रोहिंग्या लोग अपनी जान जोखिम में डालकर वहां से भाग रहे हैं। उनके दयनीय हालात को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया के सबसे प्रताड़ित लोग कहता है।

म्यांमार की सरकार ने रखाइन में हुई हिंसा की जांच के लिए एक आयोग बनाया जिसने बुधवार को अपनी रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में इन दावों को गलत बताया गया है कि म्यांमार के सुरक्षा बल रोहिंग्या लोगों को म्यांमार से भगाने के लिए अभियान चला रहे हैं। इससे पहले, रोहिंग्या लोगों की पिटाई का एक वीडियो सामने आने के बाद कई पुलिस अफसरों को हिरासत में लिया गया था। यह वीडियो एक पुलिस अधिकारी ने ही बनाया था। इसके बाद सरकार के इन दावों पर सवाल उठे कि सुरक्षा बल मानवाधिकारों का हनन नहीं कर रहे हैं।

सरकारी मीडिया में आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है, "अशांत इलाके में बंगाली लोगों की इतनी बड़ी संख्या, उनकी मस्जिदें और धार्मिक इमारतें इस बात का सबूत है कि नरसंहार या फिर धार्मिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने जैसा कोई मामला नहीं है।" आयोग का कहना है कि उसे महिलाओं के बलात्कार के भी सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन आगजनी, गैरकानूनी गिरफ्तारी और उत्पीड़न के आरोपों की जांच हो रही है।
 
इसके विपरीत मानवाधिकार कार्यकर्ता क्रिस लेवा कहती हैं कि आयोग सही से जांच करने में नाकाम रहा है। वह कहती हैं, "जांच का जो तरीका आपनाया गया है, वो विश्वसनीय नहीं है, पेशेवर नहीं है। गांवों में जाकर लोगों से कोई पूछताछ नहीं की गई है। उनका काम आरोपों को जांचना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है।"
इससे पहले, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक म्यांमार की नेता सू ची पर खामोशी से लोगों का नरसंहार देखने का आरोप लगा चुके हैं। इसके अलावा, एक दर्जन से ज्यादा नोबेल विजेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को खत लिख कर उत्तरी रखाइन में "इंसानी त्रासदी को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों में तब्दील होने से" रोकने को कहा है।
 
- एके/एमजे (एएफपी) 
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