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Written By DW
Last Updated : रविवार, 25 सितम्बर 2022 (08:22 IST)

क्या बांग्लादेश में हिन्दू खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं ?

क्या बांग्लादेश में हिन्दू खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं ? - do bangladeshi hindus feel safe
जोबैर अहमद
बांग्लादेश में पिछले साल दुर्गा पूजा के मौके पर हुए सांप्रदायिक हमलों की यादें अभी भी तमाम हिन्दुओं के दिमाग में ताजा हैं। उन्होंने इस साल दुर्गा पूजा को शांतिपूर्ण बनाने के लिए कई उपाय किए हैं।
 
अनिल कृष्ण पाल के लिए दुर्गा पूजा के त्योहार का मौका साल का सबसे व्यस्त समय होता है। दुर्गा पूजा बांग्लादेश में हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। 55 वर्षीय अनिल कृष्ण पाल और उनके साथी इस मौके के लिए मूर्तियां और अन्य चीजें बना रहे हैं जिनकी पूजा की जानी है। इस साल उन्हें इन मूर्तियां और अन्य चीजों को बनाने के लिए बीस ऑर्डर मिले हैं।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में पाल कहते हैं, "सबसे पहले, हम लोग बांस और लकड़ी का बैकग्राउंड फ्रेम बनाते हैं। उसके बाद भूसे से मूर्ति का ढांचा तैयार करते हैं जिसे इस फ्रेम पर टिका देते हैं। इसके बाद इस ढांचे पर मिट्टी चढ़ाते हैं।”
 
डीडब्ल्यू को मूर्तियों की एक कतार दिखाते हुए वो आगे कहते हैं, "ढांचा और मिट्टी का काम पूरा होने में आठ दिन लग जाते हैं। इसके बाद दो दिन उन्हें रंगने में लगता है।”
 
पाल की कार्यशाला दक्षिणपूर्वी बांग्लादेश के कमिला शहर में स्थित है जहां पिछले साल दुर्गा पूजा महोत्सव के दौरान कुछ मुस्लिम लोगों ने हिन्दू मंदिरों पर हमला कर दिया था।
 
पिछले साल क्या हुआ था?
सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हुआ था जिसमें कथित तौर पर कुरान की एक कॉपी हिन्दू देवता हनुमान की गोद में रखी हुई थी।
 
यह वीडियो बांग्लादेश में तमाम बहुसंख्यक मुसलमानों को अपमानजनक लगा और इसके खिलाफ एक दर्जन से ज्यादा जिलों में प्रदर्शन होने लगे। हिन्दुओं के घरों पर हमले किए गए और सात लोगों की हत्या कर दी गई।
 
वीडियो में हनुमान की जो मूर्ति दिख रही थी, उसे अनिल कृष्ण पाल ने ही बनाई थी। पाल कहते हैं, "मुझे बहुत बुरा लगा। मैं और क्या महसूस कर सकता था? मैंने जिस मूर्ति को बनाया था उसे नष्ट कर दिया गया। क्या यह दुखद बात नहीं है? हम लोग मूर्ति की पूजा करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। मेरा दिल टूट गया।”
 
बाद में पता चला कि यह वीडियो जानबूझकर एक षडयंत्र के तहत वायरल किया गया था ताकि धार्मिक तनाव भड़के। सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि एक व्यक्ति ने मंदिर में जाकर मूर्ति की गोद में कुरान रख दी थी। बाद में उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया।
 
मंदिर पर हमला
हिन्दू बहुल इलाके के पास में रहने वाली 45 वर्षीय रत्ना दास पिछले साल की सांप्रदायिक हिंसा की प्रत्यक्षदर्शी थीं। डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "हमारा इलाका हमले झेलने वाला दूसरा इलाका था। हमारे पड़ोस के युवक और युवतियों ने हमले का विरोध किया और मंदिर की सुरक्षा की। अब हमने किसी भी तरह के अवांछित लोगों को आने से रोकने के लिए यह गेट बनवा दिया है। हालांकि उन लोगों ने अन्य मोहल्लों में भी तोड़-फोड़ की।”
 
वो कहती हैं, "एक अन्य मंदिर के प्रवेश द्वार को नष्ट कर दिया गया था। हमलावरों ने त्योहार के दौरान की गई सजावट को नष्ट कर दिया, साउंड बॉक्स, लाइट इत्यादि को तोड़ दिया। कई लोग इन हमलों में घायल भी हुए थे।”
 
"डर के माहौल" में समारोह
बांग्लादेश में हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमले कोई असामान्य बात नहीं है। बांग्लादेश स्थित एक मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सालिश केंद्र यानी एएसके के मुताबिक पिछले साल दुर्गा पूजा के मौके पर हुए हमलों से पहले भी सौ से ज्यादा हिन्दुओं के घरों पर हमले हो चुके थे।
 
2013 से 2021 के बीच हिन्दुओं पर 3500 से ज्यादा हमले हो चुके हैं जिनमें 1678 हमले मंदिरों पर हुए और कई मूर्तियां तोड़ी गईं।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में दास कहती हैं, "लेकिन पिछले साल जैसे हमले हुए थे, इस तरह के हमले हमने इससे पहले नहीं देखे थे। यहां तक कि हमारे बाप-दादाओं ने भी कमिला शहर में ऐसे हमले नहीं देखे थे। यही वजह है कि हम लोग थोड़ा डरे हुए हैं।”
 
रत्ना दास की पड़ोसी नीपा पाल कहती हैं, "मेरी आठ साल की बेटी मुझसे पूछ रही थी कि क्या इस साल कहीं दुर्गा पूजा होगी? हम जानते हैं कि हम लोग दुर्गा पूजा का त्योहार मनाएंगे लेकिन इस बात का डर जरूर है कि कहीं पिछले साल वाली घटना फिर से न दोहराई जाए।”
 
पुलिस सुरक्षा
बांग्लादेश में इस बार की दुर्गा पूजा देश भर में 32 हजार से ज्यादा स्थाई और अस्थाई मंदिरों में मनाई जाएगी। अधिकारियों का कहना है कि वो उम्मीद करते हैं कि पिछले साल जैसी स्थिति नहीं आने पाएगी।
 
बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने आयोजकों और अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और इस बात पर जोर दिया कि पूजा पंडालों की सुरक्षा इस बार और बढ़ाई जाएगी।
 
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने आयोजकों से कहा है कि वो सभी पूजा पंडालों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं। हम वहां पर्याप्त पुलिस बल और दूसरे अधिकारियों की तैनाती करेंगे।”
 
बांग्लादेश पुलिस का कहना है कि उन्हें देश भर में खतरे की आशंका है।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में बांग्लादेश पुलिस के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल मोहम्मद हैदर अली खान कहते हैं, "हमने तभी से सुरक्षा उपायों को लागू करना शुरू कर दिया था जब से मूर्तियां बननी शुरू हुई हैं। हमारी खुफिया एजेंसियां सूचनाएं इकट्ठा कर रही हैं ताकि हम लोग खतरों का आकलन कर सकें उसी के अनुसार सुरक्षात्मक कदम उठ सकें।”
 
हालांकि दुर्गा पूजा के आयोजकों का कहना है कि वो मौजूदा स्थिति और सुरक्षा उपायों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में एक आयोजक पोद्दार कहते हैं, "हम एक ऐसे समाज में रहना चाहते हैं जहां धार्मिक त्योहारों के लिए पुलिस सुरक्षा की जरूरत न पड़े। हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यही है। अगर आप पुलिस सुरक्षा के बीच दुर्गा पूजा मनाएं तो आजादी का कोई अर्थ नहीं रह जाता।”
 
मुस्लिम धर्मगुरुओं की एकजुटता की अपील
इस बीच, राजधानी ढाका में स्थित बेतूल मुकर्रम मस्जिद में जुमे की नमाज से पहले मुस्लिम धर्म गुरुओं ने सामाजिक सद्भाव की अपील की। उनका कहना था कि इस्लाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि हम किसी को भी कष्ट पहुंचाएं।
 
बीस वर्षीय इस्लामिक स्कॉलर मोहम्मद शहीदुल इस्लाम कहते हैं, "इस्लाम कहता है कि अगर आपके साथ दूसरे धर्मों के लोग रह रहे हैं तो मुसलमानों के किसी कृत्य से उन्हें तकलीफ नहीं पहुंचनी चाहिए।”
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में शहीदुल कहते हैं कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति पर अपनी धार्मिक मान्यताओं को थोपना ठीक नहीं है। शहीदुल के दोस्त अली हसन कहते हैं कि घृणा और हिंसा से किसी भी गलतफहमी का हल नहीं निकल सकता। वो कहते हैं, "हमारे पैगंबर ने हमें ये नहीं पढ़ाया है कि हम किसी से घृणा करें।”
 
इस बीच, बेतूल मुकर्रम मस्जिद के मुख्य मौलाना ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए समुचित कार्रवाई करने की अपील की है। डीडब्ल्यू से बातचीत में हाफिज मौलाना मुफ्ती रुहुल अमीन कहते हैं, "ऐसे लोगों के खिलाफ जरूर कार्रवाई होनी चाहिए। प्रशासन को साजिश करने वालों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए।”
 
सरकार कितनी सक्रिय है?
बांग्लादेश में एक आम धारणा है कि सत्तारूढ़ अवामी लीग को ज्यादातर अल्पसंख्यक वोट मिले थे क्योंकि उसका धार्मिक झुकाव किसी तरफ नहीं दिखता, भले ही हिन्दू नेता यह शिकायत करते हैं कि सरकार उनकी रक्षा करने में विफल रही है।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में पोद्दार कहते हैं, "यह बहुत ही निराशाजनक है कि अपराधियों और साजिश करने वालों को सजा नहीं मिली। इसीलिए एक के बाद एक कई हमले करने के लिए उनका साहस बढ़ता गया।”
 
पिछले साल दुर्गा पूजा के मौके पर हुए हमलों के मामले में पुलिस ने कम से कम 52 मामले दर्ज किए थे। पुलिस ने मुख्य संदिग्ध के अलावा सैकड़ों अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन ये सभी मुकदमे अभी भी लंबित हैं।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में डीआईजी खान कहते हैं, "हमने ज्यादातर मामलों में जांच रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। कुछेक मामलों की जांच अभी भी जारी है।”
 
बांग्लादेश के एक पत्रकार और सांप्रदायिक हिंसा पर शोध कर रहे शहरयार कबीर कहते हैं कि सरकार को सक्रिय होना होगा। वो कहते हैं, "हमने सलाह दी है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के मामले में सरकार को अल्पकालीन और दीर्घकालीन उपायों पर काम करना चाहिए। अल्पकालीन उपायों में दोषियों को जल्दी सजा मिलनी चाहिए ताकि पीड़ितों को लगे कि उनके साथ न्याय हुआ है और दीर्घकालीन उपायों के लिए हमने कहा है कि सरकार को एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग बनाना चाहिए या फिर अल्पसंख्यक सुरक्षा कानून बनाना चाहिए।”
 
कमिला शहर की ओर एक बार फिर लौटते हैं जहां रत्ना दास ने मंदिर में अभी-अभी शाम की पूजा खत्म की है। उनके दिमाग में उन सामानों की सूची घूम रही है जिन्हें वो दुर्गा पूजा समारोह के लिए खरीदना चाहती हैं और साथ ही एक सवाल भी घूम रहा है, "यह मेरा देश है। क्या यह अजीब सा नहीं लगता कि मुझे दुर्गा पूजा के मौके पर अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना पड़ रहा है?”
 
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