2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की असली परीक्षा आर्थिक मोर्चे रही। पिछले चार सालों में सरकार ने जीएसटी और नोटबंदी समेत आर्थिक मोर्चे पर जो भी कदम उठाए उसे पांचवें साल में आम लोगों के गले उतारना सरकार को भारी पड़ रहा है।
2016 में जहां नोटबंदी ने अच्छे-अच्छों को जमीन दिखा दी थी वहीं 2017 में जीएसटी के जाल में व्यापारी उलझे से नजर आए। 2018 में नकदी संकट ने सरकार की परेशानी और बढ़ा दी है। कभी सरकार एटीएम बंद होने की खबरों पर सफाई देती नजर आई तो कभी उसे कैश फ्लो बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक की शरण में जाना पड़ा।
बहरहाल पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी व्यापारी हैरान नजर आए और आम आदमी परेशान। निवेशकों के लिए भी यह साल बेहद उतार चढ़ाव भरा रहा। कभी शेयरों ने परेशान किया तो कभी रुपए ने रुला दिया। पेट्रोल, डीजल ने भी सरकार पर दबाव बनाए रखा। अगले कुछ महिनों बाद मोदी सरकार का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में मोदीजी की डगर आर्थिक मोर्चे पर आसान नहीं नजर आ रही है। आइए जानते हैं इन मोर्चों पर कैसा रहा आर्थिक जगत का हाल...
कैश क्राइसिस : नोटबंदी को दो साल हो गए लेकिन नकदी की कमी है कि दूर होने का नाम ही नहीं ले रही है। ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बढ़ने के बाद भी लोगों को नकदी की तलाश में एक एटीएम से दूसरे एटीएम भटकते हुए देखा जा सकता है। बैंकों के पास कैश नहीं है और लोगों के पास सब्र का अभाव है। लगातार बढ़ रहे एनपीए ने भी समस्या में इजाफा ही किया है। इस स्थिति को देखते हुए आरबीआई और सरकार में टकराव भी देखा जा रहा है।
जीएसटी के मोर्चे पर बढ़ी परेशानी : जीएसटी ने 2018 में पूरे साल सरकार की नाक में दम करके रखा। जीएसटी कौंसिल की बैठकों में एक-एक कर कई वस्तुओं पर कर को घटा दिया गया। हालांकि इसका लाभ आम लोगों तक कम ही पहुंच सका। यह एक ऐसा मुद्दा बन गया जिसका लाभ सरकार चाहकर भी नहीं उठा पाई। जीएसटी के नाम पर व्यापारी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, बगैर बिल का काम अभी भी जोरों से जारी है।
नेपाल में 200, 500 और 2000 के नोट बंद : नेपाल जाने वाले भारतीय पर्यटकों के लिए बुरी खबर यह रही कि दिसंबर 2018 से यहां 200, 500 और 2000 के नोट नहीं चल रहे हैं। अब यहां भारतीय मुद्रा में केवल 100 रुपए का नोट चल रहा है। उल्लेखनीय है कि बंद हो चुके 500 और हजार रुपए के पुराने नोटों का मुद्दा नहीं सुलझने से नेपाल सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है।
पेट्रोल-डीजल : पेट्रोल-डीजल के रोज बदलते दामों ने आम आदमी की परेशानी और बढ़ा दी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब दाम कम हो रहे थे तब सरकार के भारी करों की वजह इसका फायदा लोगों तक नहीं पहुंच सका। हालांकि दाम बढ़ने पर यहां भी इन दोनों की कीमतें तेजी से बढ़ीं। एक समय तो यह कयास भी लगाए जाने लगे थे कि भारत में पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर बिकेगा। हालांकि मोदी सरकार आने वाले वर्ष में इस मोर्चे पर लोगों को बड़ी राहत दे सकती है।
पुणे में पेट्रोल में इथेनॉल की जगह मिथेनॉल मिलाकर प्रयोग किया जा रहा है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसके दाम 10 रुपए तक घट सकते हैं। 3 अक्टूबर को कच्चा तेल अपने इस साल के ऊपरी स्तर 86.74 डॉलर प्रति बैरल पर था। वहीं, अब इसके दाम 42 फीसदी गिरकर कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल आ गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके दाम 47 डॉलर प्रति बैरल तक आ सकते हैं। इससे देश में भी पेट्रोल के दाम तेजी से कम होने का अनुमान है।
शेयर बाजार : शेयर बाजार के लिए 2018 एक बेहतरीन वर्ष रहा। पूरे वर्ष इसमें भारी उतार चढ़ाव देखा गया। सेंसेक्स 1 जनवरी को 33813 अंकों पर था 23 मार्च को 32597 अंकों तक गिर गया। फिर बाजार में तेजी का जो दौर शुरू हुआ उसने 28 अगस्त को सेंसेक्स को 38896 अंकों के आसमान पर पहुंचा दिया। हालांकि 26 अक्टूबर को यह एक बार फिर गिरकर 33349 तक पहुंच गया।
इसी तरह निफ्टी 1 जनवरी को 10436 पर था 23 मार्च को यह गिरकर 9998 पर बंद हुआ 28 अगस्त को इसने नया इतिहास रचते हुए 11739 का आंकड़ा छू लिया। भारी उतार चढ़ाव के बीच यह 24 दिसंबर को 10663 पर बंद हुआ। पूरे साल बाजार में भारी उथल पुथल रही। इस वर्ष बाजार छोटे निवेशकों पर भारी पड़ा। हालांकि कई लोगों ने यहां से भारी पैसा भी कमाया।
म्यूचुअल फंड : म्यूचुअल फंड में लोगों की रुचि साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। एक्सपर्ट की मदद से बाजार में पैसा लगाने की बात लोगों के गले उतरने लगी है। शेयर बाजार की अपेक्षा जोखिम कम होने की वजह से भी इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। म्यूचुअल फंड नियामक एम्फी का म्यूचुअल फंड सही है, इस वर्ष के सबसे सफल एडवरटाइजमेंट कैंपेन में से एक रहा है। म्यूचुअल फंड भी लगातार पारदर्शिता पर जोर दे रहे हैं। दो साल में म्यूचुअल फंड खातों की संख्या भी दोगुनी हो गई है। एम्फी लगातार म्यूचुअल फंड कंपनियों के खर्चे घटाने पर भी जोर दे रहा है। इससे भी निवेशकों का लाभ बढ़ेगा। बहरहाल 2019 म्यूचुअल फंड निवेशकों के संयम की परीक्षा ले सकता है।
रुपया : 2018 में डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी ने भी निवेशकों को खूब हैरान किया। इस वर्ष अक्टूबर में यह डॉलर की कीमत 74.33 के स्तर तक पहुंच गई। यह इसका अब तक का सर्वोच्च स्तर था। हालांकि अक्टूबर के बाद से स्थितियां थोड़ी संभली डॉलर के मुकाबले रुपए में 5.4% की मजबूती आई।
यह साल के अंत में लगभग 70 पर आ गया। इस तरह यह इंडोनेशियाई करेंसी रुपियाई के बाद सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गया। हालांकि साल के अंत में किए गए जबरदस्त प्रदर्शन के बाद भी रुपया पिछले साल की समान अवधि से 8.5 प्रतिशत नीचे हैं। वर्चुअल करेंसी बिटकॉइन का बुखार जितनी तेजी से चढ़ा था उतनी ही तेजी से उतर गया। 2018 में तो कोई इसका नाम लेवा भी नहीं रहा।
आर्थिक मोर्चे पर संकट में सरकार : आर्थिक मोर्चे पर जुझ रही सरकार को सबसे बड़ा झटका रिजर्व बैंक गर्वनर उर्जित पटेल के इस्तीफे से लगा। सरकार और रिजर्व बैंक के बीच लगातार बढ़ती तनातनी और नकदी संकट के बीच हु्ई इस घटना ने वित्त जगत को अंदर तक हिला दिया। पटेल के स्थान पर शक्तिकांत दास को आरबीआई की कमान सौंपी गई। हालांकि भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर स्थिति को और उलझा दिया।
बीओबी, देना बैंक और विजया बैंक का विलय : केंद्र सरकार द्वारा विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय की योजना को दिसबंर के आखिर तक अंतिम रूप दिया जा सकता है। सरकार को उम्मीद है कि तीन बैंकों के विलय से अस्तित्व में आने वाला बैंक अगले वित्त वर्ष से काम करना शुरू कर देगा। बैंक ऑफ बड़ौदा के कंपनी सेक्रेटरी पीके अग्रवाल ने बांबे स्टाक एक्सचेंज और नेशनल स्टाक एक्सचेंज के वाइस प्रेसीडेंट को पत्र लिखकर भविष्य में विलय होने की जानकारी दी है। हालांकि बैंक कर्मचारी इस फैसले से खुश नहीं है और उन्होंने हड़ताल कर अपनी नाराजगी भी जता दी है।
इन उद्योगपतियों की वजह से बदनाम हुआ उद्योग जगत : भारतीय उद्योग जगत में नीरव मोदी, मेहूल चोकसी, नितिन एवं चेतन संदेसरा जैसे कुछ व्यापारियों ने इस कहावत को चरितार्थ किया। उनकी कारगुजारियों ने 2018 में पूरे भारतीय उद्योग जगत के सामने प्रश्न चिह्न खड़ा किया। बैंकों के साथ अरबों रुपए की धोखाधड़ी और मनी लॉड्रिंग के मामलों में नामजद शराब कारोबारी विजय माल्या, आभूषण कारोबारी चोकसी और नीरव मोदी ने भारतीय एजेंसियों को जमकर छकाया। गुजरात की दवा कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक समूह के प्रवर्तक नितिन और चेतन संदेसरा का नाम भी सामने आया। ये दोनों 5000 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी और धन-शोधन अक्षमता मामले में आरोपी हैं। बहरहाल वॉलमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण, हिंदुस्तान यूनिलीवर का ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन (जीएसके) के साथ विलय आदि सौदों की भी जमकर चर्चा हुई।