अब तक के द्वि-आयामी टेलीविजन का भविष्य त्रि-आयामी (3D) होगा, यह संदेश बर्लिन में हर साल लगने वाले संसार के सबसे बड़े ऑडियो-वीडियो और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक मेले IFA ने पिछले साल ही दे दिया था। इस बार इस मेले का संदेश है कि टेलीविजन की नई दुनिया एक ऐसी त्रिवेणी होगी, जो त्रि-आयामी टेलीविजन, टेबलेट कंप्यूटर और मोबाईल फोन के संगम से बनेगी।
जर्मनी की राजधानी बर्लिन शहर रेडियो और टेलीविजन अर्थात ऑडियो और वीडियो की दुनिया में हो रहे क्रांतिकारी परिवर्तनों का हमेशा ही झरोखा रहा है। 1924 में बर्लिन में ही जर्मनी की पहली रेडियो प्रदर्शनी लगी थी। उसने शीघ्र ही ऐसे अंतरराष्ट्रीय मेले का रूप धारण कर लिया, जिसकी परंपरा इस बार के 51 वें मेले के साथ- जो 2 से 7 सितंबर तक चला- अब भी बनी हुई है।
बर्लिन में ही 22 मार्च 1935 को संसार के पहले टेलीविजन कार्यक्रम का नियमित प्रसारण शुरू हुआ था। टेलीविजन स्टेशन का नाम- विद्युतचुंबकीय तरंगों द्वारा चित्रप्रेषण तकनीक के जर्मन अन्वेषक पाउल निप्कोव के सम्मान में- 'पाउल निप्कोव' रखा गया था। डेढ़ घंटे का यह कार्यक्रम उस समय सप्ताह में केवल तीन दिन प्रसारित होता था। अपना निजी टेलीविजन सेट तब शायद ही किसी के पास हुआ करता था, इसलिए बर्लिन के लोग मिलजुल कर किसी रेस्तराँ, कैफे या मदिरालय (पब) में इन कार्यक्रमों को देखते थे।
टेलीविजन का बदलता कलेवर : 1967 में इसी मेले के साथ रंगीन टेलीविजन का युग शुरू हुआ था। 1970 वाले दशक में पहले वीडियो कैसेट रिकॉर्डर (VCR) और 1980 वाले दशक में पहले वीडियो कैमरे (कैमकॉर्डर) देखने में आए। नयी सदी के पहले दशक में हाई डेफीनिशन (HD) टेलीविजन की धूम रही, जबकि दशक का अंत त्रि-आयामी (3D) टेलीविजन के पदार्पण के साथ हुआ। टेलीविजन दर्शक 'HD' और '3D' टीवी को अभी पचा भी नहीं पाए थे कि अब बिगुल बज रहा है 'स्मार्ट टीवी' का।
ऑडियो-वीडियो की तकनीकी दुनिया में किसी नई क्रांति के अभाव में टेलीविजन सेटों की बिक्री बढ़ाने और नए ग्राहकों को लुभाने के लिए निर्माताओं को अब यही सूझ रहा है कि वे उन्हें और अधिक गुणकारी बनाएँ, उनमें और अधिक सुविधाएँ और प्रयोजन ठूँसें। इसलिए अब ऐसे टेलीविजन सेट बाजार में उतारे जाएंगे, जिन पर त्रि-आयामी (3D) फिल्में देखने के लिए किसी चश्मे की जरूर नहीं पड़ेगी और जो साथ ही उन सुविधाओं से भी लैस होंगे, जिनके लिए अब तक इंटरनेट और स्मार्ट फोन प्रसिद्ध रहे हैं।
3D चश्मे के बिना तीसरा आयाम नहीं : इस समय की स्थिति यह है कि त्रि-आयामी टेलीविजन तो बाजार में बिक रहे हैं, पर त्रि-आयामी प्रसारण कहीं नहीं होता। जिसे 3D फिल्में देखनी हों, उसे 3D टेलीविजन के साथ-साथ 3D ब्लू-रे डिस्क और ब्लू-रे प्लेयर तथा एक ऐसा चश्मा भी खरीदना होगा, जिसका खरीदे गए टेलीविजन के साथ मेल बैठता हो। दो तरह के चश्में प्रचलन में हैं। अधिकतर लाल और हरे रंग के काँच वाला एक तो है 'पोलाराइजेशन' चश्मा, और दूसरा है टेलीविजन से आ रहे संकेतों के अनुसार प्रतिसेकंड कई बार खुलने-बंद होने वाला 'शटर' चश्मा।
'पोलाराइजेशन' चश्मा : जापान की तोशिबा, हॉलैंड की फिलिप्स और दक्षिण कोरिया की LG जैसी कंपनियों के बने 3D टेलीविजन के लिए वैसा ही 'पोलाराइजेशन' चश्मा चाहिए, जो सिनेमाघरों में दिखाई जाने वाली 3D फिल्मों के लिए भी लगता है। टेलीविजन के पर्दे पर अलग-अलग वेवलेंग्थ वाले दो चित्र बनते हैं।
चश्मे का हर लेंस किसी एक वेवलेंग्थ को सोख कर केवल दूसरी वेवलेंग्थ वाला चित्र दिखाता है। इससे हमारे मस्तिष्क को यह आभास होता है कि वह चित्र में दिखायी जा रही वस्तु को दोनो तरफ से, यानी दोनो आँखों के बीच वाली दूरी पर के कोण से बने तीसरे आयाम के साथ देख रहा है। 'पोलाराइजेशन' चश्मा सस्ता और हल्का तो होता है, लेकिन इस विधि से किसी चित्र की स्पष्टता 50 प्रतिशत तक घट जाती है।
'शटर' चश्मा : इसलिए जापान की ही सोनी और शार्प तथा दक्षिण कोरिया की सैमसंग जैसी कंपनियाँ ऐसे त्रि-आयामी टेलीविजन सेट बना रही हैं, जिनके लिए 'शटर' चश्मा चाहिए। यह चश्मा कहीं भारी और मंहगा है। टेलीविजन सेट चश्मे को प्रतिसेकंड कई बार ऐसे रेडियो और इन्फ्रारेड संकेत भेजता है, जो बारी-बारी से चश्मे के दाहिने या बाएं लेंस को बहुत अल्प समय के लिए पारदर्शी या अपारदर्शी बना देता है। हमारा मस्तिष्क तेजी से बदल रही इस पारदर्शिता और अपारदर्शिता को जोड़ कर इस तरह देखता है कि उसे टेलीविजन पर की तस्वीर त्रि-आयामी लगने लगती है। लेकिन, ग्राहक को 'शटर' चश्मा भी उसी कंपनी का खरीदना होता है, जिस कंपनी का टेलीविजन हैं। इस समय हर कंपनी का अपना अलग चश्मा है, हालाँकि सोनी, पैनासॉनिक और सैमसंग शटर चश्मे का एक मिलाजुला मानक तैयार करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
दोनो प्रकार के त्रि-आयामी टेलीविजनों और चश्मों की सबसे बड़ी कमी यह है कि दर्शक बहुत लंबे समय तक टेलीविजन के सामने बैठा नहीं रह सकता। उसे सिरदर्द और आँखों में दर्द होने की शिकायत हो सकती है और चक्कर या मितली भी आने लग सकती है। इसलिए, कोशिश हो रही है ऐसे त्रि-आयामी टेलीविजन के निर्माण की, जिस के लिए किसी चश्मे की जरूरत ही नहीं पड़े।
अब बिना चश्मे के तीसरा आयाम : बर्लिन के इस बार के IFA मेले में इन प्रयासों के कई उदाहरण देखने को मिले। इस तरह के 'ऑटोस्टीरियोस्कोपिक डिस्प्ले' वाले नए त्रि-आयामी टेलीविजन का पर्दा उन 3D पोस्टकार्डों की ऊपरी सतह की तरह लगता है, जो अलग-अलग कोणों से देखने पर अलग-अलग आकृतियाँ दिखाते लगते हैं। पर्दे (डिस्प्ले पैनल) पर बहुत सारे ऐसे बारीक प्रिज्म (त्रिपार्श्व) लगे होते हैं, जो प्रकाश को इस तरह मोड़ते हैं कि किसी तस्वीर की लंबाई और चौड़ाई के साथ मोटाई या गहराई वाले उसके तीसरे आयाम का भी आभास हो। इस तरह के टेलीविजन के लिए चश्मे की कोई ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन वे अभी बहुत मंहगे हैं।
त्रि-आयामी टेलीविजन का भावी विकास : मेले के हॉल नंबर 11 में 'टेक वॉच' नाम से उन शोध-परियोजनाओं की एक झलक प्रस्तुत की गई थी, जो बिना चश्मे वाले भावी त्रि-आयामी टेलीविजन के विकास या अन्य प्रकार के सुधारों के लिए प्रयोगशालाओं मे चल रही हैं। उदाहरण के लिए, जर्मनी का फ्राउनहोफर संस्थान 3D टेलीविजन का एक ऐसा बड़ा-सा डिस्प्ले पैनल दिखा रहा था, जिस पर किसी फिल्म को देखने के लिए कोई चश्मा नहीं चाहिए। कई लोग एक साथ फिल्म का मजा ले सकते हैं, लेकिन उन्हें एक निशचित दूरी पर रह कर देखना होगा। वे पैनल के न तो बहुत निकट जा सकते हैं और न दूर, क्योंकि त्रि-आयामी आभास केवल एक निश्चित दायरे और कोण के भीतर ही पैदा होता है।
फ्राउनहोफर संस्थान के प्रतिनिधि का कहना था कि डिस्प्ले पर दिखाए जा रहे कंसर्ट का दृश्य पाँच अलग-अलग कोणों से लिए गए दृश्यों के मेल से बना है। दर्शक जब भी अपनी जगह थोड़ी-सी बदलता है, वह पाँच में से किसी एक दश्य के दाहिने और बांए परिप्रेक्ष्य को देख रहा होता है। हमारा मस्तिष्क दोनो को मिला कर उन्हें त्रि-आयामी रूप देता है।
बत्ती के बल्ब से इंटरनेट पर सैर : इसी हॉल में एक ऐसे लैपटॉप कंप्यूटर का प्रदर्शन किया जा रहा था, जो अपने लिए डेटा छत में लगी LED (लाइट एमिटिंग डायोड/ प्रकाश उत्सर्जी डायोड) कहलाने वाली बत्ती से प्राप्त कर रहा था।
नन्हे-नन्हे LED वाले बल्ब ही इस समय बिजली के सबसे अधिक बचतकारी बल्ब हैं। लैपटैप बिना किसी तार के इन बल्बों के द्वारा इंटरनेट से जुड़ जाता है और मनचाही सामग्री अपने डिस्प्ले पर दिखा सकता है। LED बल्ब अपने प्रकाश की फ्रीक्वेंसी को (मॉड्यूलेशन द्वारा) हमारे लिए अदृश्य टेरा-हेर्त्स में बदल कर एक तरह से W-LAN (वायरलेस एरिया नेटवर्क) का काम करता है। लैपटॉप में लगा एक फोटोडायोड बत्ती से आ रहे इस प्रकाश को ग्रहण कर उसे डिजिटल संकेतों में बदल देता है।
इस समय के W-LAN या वाई-फाई बिजली की सहायता से डिजिटल डेटा को रेडियो-तरंगों में बदलते हैं। बर्लिन के मेले में दिखाए गए इस लैपटॉप के प्रसंग में ऑप्टिकल (प्रकाशीय) W-LAN इंटरनेट से आ रहे डिजिटल डेटा को अदृश्य प्रकाश में बदलता है और हो सकता है कि कुछ ही वर्षों में वह वर्तमान W-LAN की जगह लेले। बत्ती तो सब जगह होती ही है। विशेषकर अस्पतालों या विमानों जैसी जिन जगहों पर रेडियो तरंगें अवांछित होती हैं, क्योंकि वे दूसरे नाजुक उपकरणों के काम में बाधक बन सकती हैं, वहाँ यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है।
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त्रिवेणी टीवी : इस बात के संकेत पहले से ही मिल रहे थे कि टेलीविजन, इंटरनेट और कंप्यूटर बहुत समय तक अलग-अलग नहीं रह पाएंगे। ऐसे टेलीवीजन सेट बाजार में आने लगे थे, जो इंटरनेट की सुविध भी प्रदान करते हैं। उन्हें 'हाइब्रिड' (वर्णसंकर या दोगला) टेलीविजन कहा जा रहा था। लेकिन, अब उन्हें 'स्मार्ट टेलीविजन' कहा जाएगा, क्यों कि वे इंटरनेट पर सर्फिंग करने के ही नहीं, किसी स्मार्ट (बहु-उद्देशीय बुद्धिमान) फोन की तरह किसी घर के भीतर के सारे उपकरणों को टेलीविजन के सामने सोफे पर बैठे-बैठे एक ही जगह से चलाने और नियंत्रित करने के काम भी आएंगे, भले ही ये उपकरण घर के किसी भी कमरे में हों; वे घर की बत्तियाँ हों, फ्रिज हों, वॉशिंग मशीन हों या माइक्रोवेव ओवन। टेलीविजन और इन उपकरणों के बीच संवाद बिना किसी तार या केबल के घरेलू W-LAN की सहायता से होगा।
'यूट्यूब' अब टीवी पर : फिलिप्स, शॉर्प और LG जैसी कंपनियों का 'स्मार्ट टीवी' घर में होने पर 'यूट्यूब' या 'बिंग' जैसे वीडियो पोर्टल या किसी वीडियोथेक की फिल्में देखने के लिए कंप्यूटर नहीं चालू करना पड़ेगा, रिमोट कंट्रोल से आदेश देते ही वे सीधे ही टीवी के चौड़े पर्दे पर आ जाएंगी। 'विजेट्स' कहलाने वाली छोटी-छोटी सॉफ्टवेयर इकाइयों की सहायता से पर्दे पर चल रही तस्वीर के किसी हिस्से में एक झरोखा खोल कर (पिक्चर-इन-पिक्चर विधि से) समाचार, मौसम का हाल, ट्विटर या फेसबुक पर अपने लिए किसी संदेश को देखना या दूसरों को भेजना भी संभव होगा। सैमसंग और फिलिप्स के स्मार्ट टीवी ऐसे वेब-ब्राउज़र से भी लैंस होंगे, जो हर मनचाही वेबसाइट को टेलीविज़न के पर्दे पर ला उतारेंगे। स्वाभाविक है कि इन सारी सुविधाओं वाले टेलीविज़न का रिमोट कंट्रोल भी किसी कंप्यूटर के कॉम्पैक्ट की-बोर्ड से कम नहीं होगा।
स्मार्ट फोन का मेल टीवी के साथ : समय के साथ स्मार्ट टेलीविजन पर विभिन्न प्रयोजनों के लिए बने वे सारे अतिरिक्त 'ऐप' (एप्लीकेशन) प्रोग्राम भी डाउनलोड किए जा सकेंगे, जो उदाहरण के लिए मोबाइल फोन को स्मार्ट फोन बनाते हैं। आप टेलीविजन देख रहे हैं, पर किसी काम से किसी दूसरे कमरे में य़ा घर के बगीचे में जाना पड़ रहा है, तो आप चालू टीवी प्रोग्राम को अपने टैबलेट कंप्यूटर पर स्थानांतरित कर सकते हैं और उसे साथ ले जा कर उस पर देखते रह सकते हैं। आप अपने स्मार्ट टेलीविजन को चलाने और उसके जरिए होने वाले कामों को रिमोटकंट्रोल के बदले अपने स्मार्ट फोन से भी कर सकते हैं। इस सब को संभव बनाने और सभी निर्माताओं को HbbTV नाम का एक नया मानक (स्टैंडर्ड) अपनाने पर राजी करने के लिए इस समय प्रयास चल रहे हैं।
जरूरत है एकरूपीय मानकों की : फिलिप्स, LG और शॉर्प ने घोषणा की है कि वे आपस मे मिल कर टेलीविजन 'ऐप्स' में एकरूपता लाने का प्रयास करेंगी। वे जिस नए मानक के लिए प्रयत्नशील हैं, वह HTML5, CE-HTML और HbbTV जैसे 'ओपन स्टैंडर्स' पर आधारित होगा, ताकि उनके 'ऐप्स' अधिक से अधिक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए काम आएं। पर, उनकी बाजारी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि क्या सोनी, पैनासॉनिक, सैमसंग और तोशिबा जैसी उनकी प्रतियोगी कंपनियाँ भी उनके मानक को अपनाएंगी या अपना अलग मानक बनाएंगी। इन कंपनियों ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे अपना कोई अलग रास्ता नहीं बनाएंगी।
सेट-टॉप-बॉक्स : जिस के पास पहले से ही एक अच्छा और मंहगा HD TV है, जरूरी नहीं कि वह उसे सन्यास दे कर एक नया स्मार्ट टीवी खरीदे। वह 'वीडियोवेब टीवी' नाम का एक सेट-टॉप-बॉक्स खरीद कर इंटरनेट को अपने टेलीविजन पर ला सकता है और उसकी मल्टीमीडिया क्षमता का विस्तार कर सकता है।
जर्मनी में वह अभी से उपलब्ध है, कीमत है 150 यूरो (लगभग 10 हजार रुपए)। इसी तरह जो कोई मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम 'एन्ड्रोइड' और उसके लिए बने ऐप्स (प्रयोजनों) का अपने टेलीविजन पर भी उपयोग करना चाहता है, वह 'हामा' कंपनी का बनाया 'एन्ड्रोइड-टीवी बॉक्स' खरीद कर अपनी कामना पूरी कर सकता है। जर्मनी में उसका मूल्य है 189 यूरो (लगभग 13 हजार रुपए)।