कविता : धरती का क्या होगा?
- रमेशचंद्र पंत
नदी किनारे एक गांव है,
और नीम की घनी छांव है।
ऊपर कुछ पक्षी बैठे थे,
दादाजी नीचे लेटे थे।
नदी हुई बेहद पतली थी,
सूख गई काया लगती थी।
सोच रहे थे पक्षी सारे,
बैठ नीम पर सांझ-सकारे।
अगर नहीं भू पर जल होगा,
धरती का सोचो क्या होगा?
यदि यह बंजर हो जाएगी,
दुनिया कैसे बच पाएगी।
साभार - देवपुत्र