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Last Modified: शनिवार, 8 नवंबर 2025 (10:11 IST)

भारत के बिना क्वाड का कोई भविष्य नहीं

Quad has no future without India
भारत में आयोजित होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन के आयोजन के रद्द होने या क्वाड से भारत के बाहर होने से भारत के दूरगामी रणनीतिक हित प्रभावित हो,ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। दरअसल सैन्य प्रतिद्वंद्विता और परस्पर आर्थिक निर्भरता को साथ-साथ चलाने की कूटनीति रणनीतिक हितों को कभी पूरा नहीं कर सकती। अमेरिका और चीन रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं,फिर भी उनका व्यापार अरबों डॉलर का है। भारत और चीन के बीच सीमाई विवाद और रणनीतिक तनाव के बावजूद दोनों देशों में बड़ा व्यापारिक संबंध बना हुआ है। ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था के लिए चीन एक महत्वपूर्ण बाजार है तथा ऑस्ट्रेलिया से चीन को खनिज,कृषि उत्पाद और अन्य संसाधनों का निर्यात किया जाता है। चीन जापान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और जापान की अनेक कंपनियां चीन में भारी निवेश करती हैं। जापान की तकनीकी और औद्योगिक क्षमताएं चीन के औद्योगिक विकास में बहुत मददगार है।
 
अमेरिका,जापान और ऑस्ट्रेलिया विकसित देश है,इन देशों की जरूरतें और भारत के जरूरते बिल्कुल अलग अलग है। विकसित देश अक्सर विकासशील देशों को अपने सामरिक हितों के लिए एक सैन्य संसाधन की तरह इस्तेमाल करते हैं। कभी हथियारों के बाजार बनाकर तो कभी प्रॉक्सी युद्धों के मैदान बनाकर वे इन देशों की शासन व्यवस्था,ऊर्जा,युवाशक्ति और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर देते हैं। परिणामस्वरूप,जिन देशों में शांति और प्रगति की संभावना होती है,वे अस्थिरता और गरीबी के चक्र में  फंस जाते हैं। अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ उपयोग करने की लगातार कोशिशें करता रहा है,लेकिन भारत ने अमेरिका समेत क्वाड के अन्य देशों के षड्यंत्रों को बखूबी समझा है।
 
शेख हसीना के सत्ता में रहने से भारत ने बांग्लादेश और चीन के सामरिक सहयोग को एक सीमा से आगे नहीं जाने दिया था। अब बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ता से जाने के बाद पाकिस्तान और चीन का समर्थन करने वाली राजनीतिक ताकतों को अमेरिकी मदद ने क्वाड की सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा को ही ध्वस्त कर दिया है। क्वाड के एक और साझेदार ऑस्ट्रेलिया से भी भारत के  रिश्तें स्थिर नहीं है। 2020 में ऑस्ट्रेलिया ने दो भारतीय नागरिकों को जासूसी के आरोप में निष्कासित कर दिया था,वहीं ऑस्ट्रेलिया अनेक बार कनाडाई प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो के साथ खड़ा दिखाई दिया। क्वाड जैसे बहुआयामी सुरक्षा संगठन के केंद्र में रहने वाले भारत के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत संबंध होने के बाद भी,इन दोनों देशों ने खालिस्तानी आतंकियों पर दबाव डालने के लिए भारत की मदद करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
 
2017 में चीन में आयोजित ओबीओआर सम्मेलन का भारत ने सीधे तौर पर बहिष्कार किया  था जबकि जापान और अमेरिका जैसे देश तो इसमें शामिल भी हुए थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाएं लंबे समय तक  आमने सामने रही है। क्वाड के सदस्य देश लेह जैसे सामरिक स्थल पर सैनिक अड्डा बनाकर चीन पर सीधे दबाव डाल सकते थे। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भारत का नौ सैनिक अड्डा है। क्वाड के सभी सदस्य देश इस नौसैनिक अड्डे पर अपने जंगी जहाज सामूहिक रूप से तैनात करने का साहसिक निर्णय करते तो संभवत: चीन पर दबाव बढ़ सकता था। लेकिन न तो भारत ने ऐसा प्रस्ताव किया और न ही क्वाड की कार्ययोजना में इस प्रकार की रणनीति पर विचार किया गया। पूर्वी चीन सागर में शेंकाकू आइलैंड को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद है,यह दक्षिणी द्वीप चीन के निकट है। यहां पर जापान चीन के खिलाफ आक्रामक है लेकिन क्वाड की किसी भी भूमिका को लेकर आपसी सहमति नहीं देखी गई।
 
चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है। भारत अपनी सुरक्षा मजबूरियों के चलते अमेरिका का स्वभाविक सहयोगी बन गया था। अब अमेरिका,दक्षिण चीन सागर से जुड़े फिलिपींस को यदि भारत के विकल्प के तौर पर देश रहा है तो यह उसकी रणनीतिक गलती है। अमेरिका के लिये यह क्षेत्र भारत के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है जो कि यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड की भौगोलिक सीमा है जबकि भारत के लिये इसमें पूरा हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर शामिल है।

चीन के लिए यह मार्ग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मलक्का जलडमरूमध्य के जरिए ही वह यूरोप तक अपना माल पहुंचाता है। अगर भारत इस मार्ग को अवरुद्ध कर दे तो उसके लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है इसलिए इस  क्षेत्र में भारत के प्रभाव को चीन नकार नहीं सकता है। मलक्का जलडमरूमध्य यानी मलक्का स्ट्रेट से अंडमान सागर महज दो सौ किलोमीटर दूर है। अमेरिका और यूरोप को इस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और नौसेना शक्ति की जरूरत है। बराक ओबामा ने अमेरिका की एशिया प्रशांत के केंद्र में भारत को रखकर जो दूरगामी नीति बनाई थी,ट्रम्प उसे ध्वस्त करते हुए नजर आ रहे है।
 
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