दूल्हे का स्वागत शराब पिलाकर करें
नई दिल्ली। कुछ समय पहले एक विज्ञापन आया करता था जिसमें कहा जाता था कि लड़की वाले बारात का स्वागत एक विशेष उत्पाद से ही करें। यह एक बिक्री बढ़ाने का तरीका हो सकता है लेकिन बैगा आदिवासियों में एक प्रथा है जहां शादी के दिन दूल्हे को उसकी सास अपने हाथों से शराब पिलाती है।
इससे भी ज्यादा हैरानी तो इस बात पर होती है कि यदि ऐसा न हो तो यह विवाह सम्पन्न नहीं समझा जाता। दरअसल, शराब पीना हमारे सभ्य समाज में गलत समझा जाता है इसलिए कोई मां-बाप यह नहीं चाहेगा कि उनकी बेटी का विवाह ऐसे घर में हो जहां दूल्हा शराब पीता हो।
लेकिन छत्तीसगढ के कवर्धा जिले में प्रचलित शादी की शुरुआत ही शराब से होती है। जब तक सास अपने हाथों से दूल्हे का जाम तैयार करके न दे और दूल्हा उसे पी न ले तब तक शादी अधूरी समझी जाती है। यह अनूठी परम्परा छत्तीसगढ के बैगा-आदिवासियों में प्रचलित है।
दूल्हे को दुल्हन की मां शराब पिलाकर रस्म की शुरुआत करती है और फिर पूरा परिवार शराब पीता है। और तो और दूल्हा और दुल्हन भी एक-दूसरे को शराब पिलाकर इस परंपरा को निभाते हैं। हो सकता है कि शादी को खुशी का मौका समझा जाता हो इसलिए शराब पीने-पिलाने की परम्परा हो।
बारात जब दुल्हन लेने गांव पहुंचती है तो सबसे पहले शराब का ही शगुन किया जाता है। एक अन्य चौंकाने वाली बात यह भी है कि यहां बिना किसी पंडित के शादी हो जाती है। दरअसल, बैगा आदिवासियों की शादी में कोई पंडित नहीं होता और न ही कोई विशेष सजावट होती है।
इस आदिवासी समाज की सबसे अच्छी और सबसे खास बात यह है कि यहां दहेज प्रथा भी पूरी तरह से बंद होती है और व्यंजन के नाम पर केवल महुए से बनी शराब। परिवार का मुखिया शादी का खर्च महज 22 रुपए ही लेता है। वहीं समाज के पंचों को 100 रुपए दिए जाते हैं।
वनांचल में निवासरत बैगा शादी रचाने और दुल्हन लाने के लिए आज भी पूरी बारात मीलों दूर पैदल चलकर जाती है। शादी का पंडाल सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से बनाया जाता है। तमाम रस्मों को पूरा करने के बाद दूल्हा दौड़ लगाकर दुल्हन को पकड़ लेता है। और फिर उसे अपनी अंगूठी पहना देता है और दोनों को पति-पत्नी की मान्यता मिल जाती है।