who rebuilt kashi vishwanath temple: भारत की आध्यात्मिक राजधानी, काशी, सदियों से ज्ञान, संस्कृति और धर्म का केंद्र रही है। गंगा के पावन तट पर स्थित यह नगरी अपने असंख्य मंदिरों और उनमें से सबसे प्रमुख, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए विख्यात है। इस मंदिर का इतिहास केवल आस्था का नहीं, बल्कि विध्वंस और अंततः अविश्वसनीय पुनरुत्थान का भी साक्षी रहा है। यह कहानी हमें एक क्रूर मुगल शासक के फरमान और उसके बाद इंदौर की धर्मपरायण रानी, देवी अहिल्याबाई होलकर, के असाधारण संकल्प की याद दिलाती है।
औरंगजेब का फरमान: विध्वंस का काला अध्याय
बात 18 अप्रैल, 1669 की है, जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने एक ऐसा फरमान जारी किया जिसने काशी के सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने को गहरा आघात पहुँचाया। इस फरमान में उसने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। औरंगजेब की कट्टरपंथी नीतियों का यह एक और क्रूर उदाहरण था, जिसने भारत के कई प्राचीन मंदिरों को निशाना बनाया। उसके आदेश पर मुगल सेना ने जल्द ही विशेश्वर (विश्वनाथ) मंदिर पर धावा बोल दिया।
1669 में जब मुगल सेना ने मंदिर पर हमला किया, तो मंदिर के महंतों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को क्षति से बचाने के लिए उसे उठाकर पास के ज्ञानवापी कुंड में छलांग लगा दी। इस प्रकार, उन्होंने शिवलिंग की पवित्रता को सुरक्षित रखने का हरसंभव प्रयास किया। हमले के दौरान, मुगल सेना ने मंदिर के बाहर स्थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को भी तोड़ने का प्रयास किया। यह नंदी, जो सदियों से भगवान शिव के वाहन के रूप में मंदिर के बाहर विराजमान था, अपनी दृढ़ता का प्रतीक बन गया। तमाम प्रयासों के बावजूद, मुगल सैनिक इस विशाल प्रतिमा को तोड़ने में विफल रहे। यह नंदी आज भी विश्वनाथ मंदिर परिसर से कुछ दूरी पर स्थित ज्ञानवापी परिसर की ओर मुख किए हुए मौजूद है, जो उस विनाशकारी घटना की मूक गवाह है।
अहिल्याबाई होलकर ने कराया पुनर्निर्माण
औरंगजेब के इस क्रूर कृत्य के बाद, काशी विश्वनाथ मंदिर को काफी नुकसान हुआ। लेकिन, भक्ति और धर्म की लौ कभी बुझती नहीं। 18वीं शताब्दी के अंत में, भारत की महान शासिका, इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर, ने इस पवित्र स्थल के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया।
रानी अहिल्याबाई, जो अपनी धार्मिक प्रवृत्ति, न्यायप्रियता और कुशल प्रशासन के लिए जानी जाती थीं, ने 1777 में विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लिया। उन्होंने अगले 3 साल में मंदिर पुनर्निर्माण करवाया। । उन्होंने मंदिर के भव्य पुनर्निर्माण के अलावा भक्तों की सुविधा के लिए आसपास के क्षेत्र में भी कई सुधार किए।अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह का पुनर्निर्माण करवाया और शास्त्रोचित रूप से शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। कहते हैं रानी अहिल्याबाई ने शिवरात्रि के दिन ही मंदिर के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया था और शिवरात्रि पर ही मंदिर खोला गया। उनके इस महान योगदान को सम्मानित करने के लिए, 'श्री काशी विश्वनाथ धाम' के प्रांगण में आज भी रानी अहिल्याबाई के योगदान का एक शिलापट और उनकी एक मूर्ति स्थापित है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनकी भक्ति और दूरदर्शिता की याद दिलाती है।
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