• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. प्रेरक व्यक्तित्व
  4. 23 मार्च को भगतसिंह का शहादत दिवस, 404 पन्ने की है उनकी डायरी
Written By

23 मार्च को भगतसिंह का शहादत दिवस, 404 पन्ने की है उनकी डायरी

Bhagat Singh 23 March | 23 मार्च को भगतसिंह का शहादत दिवस, 404 पन्ने की है उनकी डायरी
404 पृष्ठ की यह मूल डायरी आज भगतसिंह के पौत्र भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र यादविंदरसिंह के पास है, जिसे उन्होंने अनमोल धरोहर के रूप में संजोकर रखा है। दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम में इस डायरी की प्रति भी उपलब्ध है, जबकि राष्ट्रीय संग्रहालय में इसकी माइक्रो फिल्म रखी है। उच्चतम न्यायालय में लगी एक प्रदर्शनी में भी इस डायरी को प्रदर्शित किया जा चुका है।
 
डायरी के पन्ने अब पुराने हो चले हैं, लेकिन इसमें उकेरा गया एक-एक शब्द देशभक्ति की अनुपम मिसाल के साथ ही भगतसिंह के सुलझे हुए विचारों की तस्वीर पेश करता नजर आता है। शहीद-ए-आजम ने यह डायरी अंग्रेजी भाषा में लिखी है, लेकिन बीच-बीच में उन्होंने उर्दू भाषा में वतन परस्ती से ओत-प्रोत पंक्तियाँ भी लिखी हैं।
 
भगतसिंह का सुलेख इतना सुंदर है कि डायरी देखने वालों की निगाहें ठहर जाती हैं। डायरी उनके समूचे व्यक्तित्व के दर्शन कराती है। इससे पता चलता है कि वे महान क्रांतिकारी होने के साथ ही विहंगम दृष्टा भी थे। बाल मजदूरी हो या जनसंख्या का मामला शिक्षा नीति हो या फिर सांप्रदायिकता का विषय देश की कोई भी समस्या डायरी में भगतसिंह की कलम से अछूती नहीं रही है।
 
उनकी सोच कभी विदेशी क्रांतिकारियों पर जाती है तो कभी उनके मन में गणित-विज्ञान, मानव और मशीन की भी बात आती है। डायरी में पेज नंबर 60 पर उन्होंने लेनिन द्वारा परिभाषित साम्राज्यवाद का उल्लेख किया है तो पेज नंबर 61 पर तानाशाही का। इसमें मानव मशीन की तुलना के साथ ही गणित के सूत्र भी लिखे हैं।
 
इन 404 पन्नों में भगत के मन की भावुकता भी झलकती है, जो बटुकेश्वर दत्त को दूसरी जेल में स्थानांतरित किए जाने पर सामने आती है। मित्र से बिछुड़ते समय मन के किसी कोने में शायद यह अहसास था कि अब मुलाकात नहीं होगी, इसलिए निशानी के तौर पर डायरी में भगतसिंह ने बटुकेश्वर दत्त के ऑटोग्राफ ले लिए थे।
 
बटुकेश्वर ने ऑटोग्राफ के रूप में बीके दत्त के नाम से हस्ताक्षर किए। अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ होने के साथ ही भगतसिंह इतिहास और राजनीति जैसे विषयों में भी पारंगत थे। सभी विषयों की जबर्दस्त जानकारी होने के चलते ही हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने उन्हें अंग्रेजों की नीतियों के विरोध में आठ अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की इजाजत दी थी।
 
'तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक है मेरी भी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है...'' इन पंक्तियों का एक-एक लफ्ज उस महान देशभक्त की वतन पर मर मिटने की ख्वाहिश जाहिर करता है, जिसने आजादी की राह में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम लिया।
 
देशभक्ति की यह तहरीर भगतसिंह की उस डायरी का हिस्सा है, जो उन्होंने लाहौर जेल में लिखी थी। शहीद-ए-आजम ने आजादी का ख्वाब देखते हुए जेल में जो दिन गुजारे, उन्हें पल-पल अपनी डायरी में दर्ज किया। 27 सितंबर 1907 को जन्मे भगतसिंह 23 मार्च 1931 को मात्र 23 साल की उम्र में ही देश के लिए फाँसी के फंदे पर झूल गए। देशवासियों के दिलों में वे आज भी जिन्दा हैं।-एजेंसी