मासूम स्कूली बच्चों की दर्दनाक मौत से इंदौर उदास...
इंदौर। दोपहर बीत चुकी थी...घर जाने की खुशी में दिल्ली पब्लिक स्कूल के बच्चे बस में सवार हो चुके थे...लेकिन किसी को ये खबर नहीं थी कि वे 'मौत की बस' में बैठे हैं..बस ड्राइवर बायपास पर तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहा था और तभी ट्रक से टकराने के बाद एक भयानक आवाज के साथ बस के अगले हिस्से के परखच्चे उड़ गए। चारों तरफ हाहाकार मच गया और खून से लथपथ मासूमों की दिल दहला देने वाली चीखों ने गुजरते राहगीरों को स्तब्ध कर डाला...
मनहूस काले शु्क्रवार की शाम को मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत की खबर ने पूरे इंदौर शहर को उदासी के आगोश में भर लिया था। जैसे ही बासपास पर बिचौली हप्सी के समीप स्कूल बस दुर्घटना की खबर इंदौरियों के कानों तक पहुंची, हर कोई दहल गया और यह दुआ करने लगा कि बच्चे सुरक्षित हों, लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि आधा दर्जन से ज्यादा बच्चे हमेशा-हमेशा के लिए मौत की नींद सो चुके हैं...न जाने कितने घरों के नौनिहाल उस दुनिया में जा पहुंचे हैं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता...
शुक्रवार की सुबह जब इन बच्चों के माता-पिता ने स्कूल बस स्टॉप पर उन्हें छोड़ा होगा तो उनमें से कइयों ने हाथ हिलाकर 'अलविदा' कहा होगा। मां-बाप को सपने में भी ये ख्याल नहीं था कि ये उनकी जिंदगी का आखिरी 'गुडबाय' है...जिन घरों ने अपने बच्चों को खोया है, वहां मातम परसा पड़ा है और परिजन बदहवास हैं...
परिजन ही क्यों, पूरा शहर इस दर्दनाक हादसे से उदासी में डूबा है। जो बच्चे घायल हैं, उनकी सलामती के लिए हर मजहब, हर तबके के लोग एकजुट होकर अपने-अपने तरीके से दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं।
बायपास पर स्कूल बस की भीषण दुर्घटना की खबर सोशल मीडिया के जरिए चंद मिनटों में पूरे शहर में फैल गई। व्हाट्सएप ग्रुपों पर ये खबर न केवल शेयर की जाने लगीं, बल्कि खून देने की गुजारिश भी होने लगी। फिर क्या था, देखते ही देखते बॉम्बे हॉस्पिटल के बाहर खून देने वालों का सैलाब उमड़ पड़ा।
अस्पताल में सबसे ज्यादा मांग O नैगेटिव और B नैगेटिव की थी और यहां पर इतने ज्यादा ब्लड डोनर एकत्र हो गए कि अस्पताल प्रबंधन को लोगों को मना करना पड़ा कि घायलों के लिए खून का इंतजाम हो चुका है। देर शाम तक अस्पताल के बाहर यातायात जाम हो गया क्योंकि हर शहरी इस दर्दनाक खबर से 'बाखबर' होने के बाद अस्पताल की तरफ कूच कर रहा था।
फूल से कोमल जो बच्चे मौत के मुंह में समा गए हैं, उनके शव महाराजा यशवंतराव अस्पताल भिजवाए जा रहे हैं, ताकि पोस्टमार्टम हो सके। एमवाय अस्पताल में भी परिजनों के रुदन से कई लोगों की आंखें भर आई हैं। लोगों को ऐसा लग रहा है मानों उनका अपना कोई सगा चला गया...
7 साल की उम्र क्या होती है? ये वो बचपन होता है, जिसमें बच्चों की मासूम खिलखिलाहट, मस्ती और पूरे घर की रौनक...इस रौनक में श्रुति लुधियानी नाम की वो मासूम बच्ची भी थी, जो पढ़ने के लिए दिल्ली पब्लिक स्कूल गई थी...लेकिन शाम को उसकी मौत की खबर ने पूरे घर में कोहराम मचा दिया।
आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश के बीच श्रुति के पिता ने भरे गले से इतना ही कहा कि मैं अपनी मासूम की आंखें दान कर रहा हूं ताकि किसी दूसरे बच्चे की आंखों में मैं अपनी नन्ही श्रुति को देख सकूं। मेरी बेटी तो अब कभी लौटकर नहीं आएगी, लेकिन उसका ये गम मुझे ताउम्र रुलाता रहेगा..
से भी सच है कि 5 जनवरी का शुक्रवार नए साल के लिए काला शुक्रवार (ब्लैक फ्राइडे) साबित हुआ। एक मनहूस शुक्रवार, जिसने जहां पूरे इंदौर शहर को दहलाकर रख दिया, वहीं दूसरी तरफ अपने चिरागों की लौ से अनजान जिंदगियों में रोशनी करने के इस फैसले से हादसों के शिकार बच्चों के परिजनों ने इंसानियत को नया आयाम दे दिया.. जो एक मिसाल बन गया है। जैसा श्रुति के पिता ने अपनी बेटी की आंखें दान करने का निर्णय लिया है, ठीक उसी तरह कीर्ति अग्रवाल के पिता भी अपनी बेटी की आंखें दान कर रहे हैं। कीर्ति बहुत प्रतिभाशाली छात्रा थी और स्कूल की टॉपर थी।
स्कूल बस हादसे की खबर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कानों तक भी पहुंची और वे उज्जैन से सीधे अस्पताल पहुंच रहे हैं। उन्होंने स्थानीय प्रशासन को आदेश दिए हैं कि घायल बच्चों के उपचार का सारा खर्च शासन वहन करेगा। जो बच्चे जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं, उनमें से कई ठीक भी हो जाएंगे, लेकिन जो बच्चे दुनिया से चले गए हैं, उनकी मौत का जिम्मेदार कौन है, यह सवाल सभी के जेहन में कौंध रहा है।
अधूरे बायपास पर आए दिन मौत का नंगा नाच होता है, लेकिन इसके खिलाफ न तो कोई राजनेता आवाज उठाता है और न ही मध्यप्रदेश की सरकार...मुख्यमंत्री का दिल भी इसलिए दहला क्योंकि मामला बच्चों की मौत का था, जो सीधे इंदौर से जुड़ा था। बायपास ही अधूरा नहीं है बल्कि कई फ्लाय ओवर ब्रिज भी निर्माणाधीन हैं और नेशनल हाईवे अथॉरिटी की दादागिरी ऐसी है कि डकाच्या के सेंटर पाइंट से पहले ही पूरा टोल टैक्स वसूला जाता है।
शहर के बीच में बना यह बायपास 'मौत का बायपास' साबित होता जा रहा है। यही नहीं, मध्यप्रदेश से निकलने वाले 'हादसों के हाईवे' के नाम से कुख्यात आगरा-बंबई रोड अब तक न जाने कितने लोगों की 'बलि' ले चुका है। बायपास पर दुर्घटनाओं से बचने के लिए बनाए गए पुल ही दुर्घटना का कारण बन रहे हैं, क्योंकि ये पुल गांव की मुख्य सड़क से अलग हटकर बने हैं यानी सड़क पुल के नीचे से नहीं गुजर रही है, यही कारण है कि लोग रांग साइड चले आते हैं। इन तकनीकी खामियों का खामियाजा आम आदमियों को भुगतना पड़ रहा है।