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Last Updated : सोमवार, 15 नवंबर 2021 (17:21 IST)

कौन थी रानी कमलापति जिनके नाम पर किया गया है भोपाल का हबीबगंज रेलवे स्टेशन

कौन थी रानी कमलापति जिनके नाम पर किया गया है भोपाल का हबीबगंज रेलवे स्टेशन - Who was Rani Kamalapati
Rani Kamalapati
Who was Rani Kamalapati : देश के पहले वर्ल्ड क्लास हबीबगंज स्टेशन का नाम अब रानी कमलापति स्टेशन होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने इस स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम पर रखने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था जिसे मंजूर कर लिया गया और इसका लोकार्पण 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया जाना प्रस्तावित है। आओ जानते हैं कि कौन थीं रानी कमलापति।
 
 
रानी कमलापति के इतिहास को लेकर मतभेद रहा है। मध्यप्रदेश सरकार के पत्र के मुताबिक 16वीं सदी में भोपाल गोंड शासकों के अधीन था। ऐसा माना जाता है कि उस समय राजा सूरज शाह के पुत्र निजाम शाह का रानी कमलापति से विवाह हुआ था। रानी कमलापति ने अपने जीवनकाल में अत्यंत बहादुरी और वीरता के साथ मुस्लिम आक्रमणकारियों का सामना किया था।
 
रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कहा जाता है। कहते हैं कि रानी कमलापति के पति राजा निजामशाह की हत्या उनके ही कुटुम्बियों ने कर दी थी। उस वक्त भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था। राजा निजामशाह के भतीजे ने गिन्नौरगढ़ को हड़पने की साजिश रची जबकि वह खुद उस वक्त बाड़ी पर शासन करता था।
 
भतीजा लड़ तो सकता नहीं था तो उसने निजामशाह को अपने महल भोजन के लिए बुलाया और खाने में जहर मिलाकर राजा की जीवनलीला समाप्त कर दी। राजा के मरने के बाद उसने गिन्नौरगढ़ पर अपना कब्जा करने के लिए सेना को भेज दिया। ऐसे में रानी कमलापति अपने बेटे नवलशाह की रक्षा के लिए बेटे को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गई।
 
भोपाल के छोटे तालाब के पास रानी का महल था वहां उसने शरण ली। रानी के मन में बदले की भावना थी तो उन्होंने अफगानिस्तान से आए मोहम्मद खान को अपनी व्यथा बताकर उससे सहयोग करने की इच्‍छा जाहिर की। मोहम्मद खान ने इसके एवज में 1 लाख रुपए की मांग की। रानी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया इस शर्त के साथ की धन नहीं तो और कुछ इसके एवज में दिया जाएगा। मोहम्मद खान ने भतीजे को मौत के घाट उतार दिया। 
 
रानी के पास उस समय धन की पूरी व्यवस्था नहीं हो सकी तो रानी ने भोपाल का एक हिस्सा मोहम्मद खान को जमीदारी के रूप में दे दिया। मोहम्मद खान ने वहां रहकर अपनी शक्ति बढ़ाई और कुछ समय बाद उसके मन में रानी के राज्य को हड़पने की मंशा जागृत हो गई। उसकी मंशा पहले पूरे भोपाल पर कब्जा करने की थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि वह रानी को अपने हरम में रखना चाहता था।
 
उसने षड़यंत्र रचने के साथ ही रानी के खिलाफ युद्ध का मोर्चा खोल दिया। भयानक युद्ध हुआ जिसमें रानी का पुत्र नवलशाह वीरगति को प्राप्त हुआ। कहते हैं कि युद्ध इतना भयानक था कि वह जगह खून से लाल हो गई थी। आज भी उस जगह को लालघाटी इसीलिए कहा जाता है। 
 
नवलशाह के वीरगति को प्राप्त होने के बाद मोहम्मद खान रानी के महल की ओर बढ़ा। कहते हैं कि इस युद्ध में केवल 2 लोग बचे थे उन्होंने योजना के तहत सूचित करने हेतु लालघाटी से धुंआ छोड़ा। महल में बैठी रानी इसका अर्थ समझ गईं कि पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ है। इस संकेत के बाद रानी ने अपने निजी सेवकों को तालाब की नहर का रास्ता अपने महल की ओर मोड़ने के आदेश दिए। 
 
रानी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ महल के सबसे नीचे वाले तल में जाकर बैठ गईं और अपने शील की रक्षा के लिए जल-समाधि ले ली। इसे ही आज जल-जौहर कहा जाता है। जैसे रानी पद्मिनी के साथ अगणित महिलाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया था, वैसा ही रानी कमलापति ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जल-जौहर किया।
 
आज भी रानी के महल की 7 मंजिल में से 5 पानी में डूबी हुई हैं।

दरअसल, सन् 1600 से 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले सहित भोपाल पर गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा था। गोंड राजा निजामशाह की पत्नी कमलापति की इच्छा से भोपाल तालाब के तट पर एक महल का निर्माण किया गया, जो आज रानी कमलापति महल के नाम से जाना जाता है। 
 
16वीं सदी में सलकनपुर, जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके यहां रानी‍ कमलापति का जन्म हुआ था। उसी दौर में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया, जो देहलावाड़ी के पास है। इसके राजा सुराज सिंह शाह थे। इनके पुत्र निजाम शाह थे।
 
बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह राजा निजाम शाह का भतीजा था। बाड़ी, जिला रायसेन के अंतिम शासक चैन सिंह 16वीं सदी में रहे। उसने अनेक बार राजा निजाम शाह को मारने की कोशिश की, जिसमें वह असफल रहा। एक दिन उसने राजा निजाम शाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में जहर देकर धोखे से उनकी हत्या कर दी। रानी कमलापति ने अपने कुछ वफादारों और 12 वर्षीय बेटे नवल शाह के साथ भोपाल में बने अपने महल में शरण ली। 
 
कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रुके हैं। इन अफगानों का सरदार दोस्त मोहम्मद खान था, जो पैसा लेकर युद्ध लड़ता था। रानी ने उससे समझौता करके चैनसिंह की हत्या करवा दी। किंतु बाद में मोहम्मद खान की नियत बदल गई और वह संपूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा। 
 
इसके बाद दोस्त मोहम्मद खान और रानी कमलापति के 14 वर्षीय बेटे नवल शाह के बीच भयानक युद्ध हुआ, जिसमें नवल शाह की दुखद मृत्यु हो गई। रानी कमलापति ने विषम परिस्थिति देखते हुए महल की समस्त धन-दौलत, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली। 
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