डॉ. तेज प्रकाश पूर्णानंद व्यास
प्लेनो, टेक्सस ,अमेरिका
लगता है, कल की ही बात है, शासकीय माध्यमिक विद्यालय पीपलरवा (देवास) में गत शताब्दी के पांचवे दशक के अप्रतिम मेधा के धनी प्रभु जोशी (धर्मयुग ,सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान के अप्रतिम कहानियों के लेखक और जल रंग के विश्व ख्यात चित्रकार) और प्रल्हाद मालवीय ( साप्ताहिक हिंदुस्तान में रेत होती नदी जैसी पर्यावरण सुरक्षा के कहानी लेखक) के संग बीते बचपन के मधुरिम दिवसों की याद आज भी ताज़ा है । पढ़ना ,लिखना , खेलना कूदना, कबड्डी खो खो ,वॉलीबाल खेलना सब कुछ अवचेतन में आज भी गुंजन करता है । टाटपट्टी स्कूल में बद्री नारायण व्यास , मदन लाल तिवारी, माखन लाल जोशी, सेंगर, सहस्रबुद्धे, शेख , गंगाराम जोशी ,मनोहर लाल शर्मा से पढ़ना आज भी मन मस्तिष्क और अवचेतन में अवस्थित है।
ज्ञान के अंतरराष्ट्रीय क्षितिज, प्रकांड साहित्यकार व चित्रकार 'छोटी काशी' पीपलरावां (देवास) के मां शारदा वीणापाणि सरस्वती के वरद पुत्र प्रभु जोशी नहीं रहे, आज चार मई को उनकी द्वितीय पुण्य तिथि है। वे कोरोना से जीवन की जंग हार गए और पंचभूत में विलीन हो गए।
आपने 'छोटी काशी' के रूप में प्रसिद्ध पीपलरवां गांव में जन्म लिया और प्रारंभिक शिक्षा पाई। माध्यमिक विद्यालय में गत शताब्दी के पांचवे दशक में अध्ययन किया था। शिक्षक पिता माखनलाल जोशी के परिवार में आपका सनातन धर्म की छत्र छाया में वर्धन हुआ था।
प्रभु जोशी ने छोटे से गांव से विद्या अध्ययन कर लेखन और चित्रकार के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। साप्ताहिक धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी और नवनीत में अपनी कलम से अंतरराष्ट्रीय जगत को ठेठ गांव की जमीनी हकीकत को निरूपित करने वाले साहित्यकार, चित्रकार, कवि, लेखक, चिंतक, विचारक और ज्ञान के हिमालय प्रभु जोशी चार मई 2021 को नहीं रहे।
प्रभु जोशी एक देवदूत थे। दया, करुणा, प्रेम, प्रसन्नता, कृतज्ञता और परोपकार उनके जीवन के उच्च, उदात्त गुण थे। जिव्हाग्र पर सरस्वती का वास था। वे अद्भुत दैदीप्यमान वाणी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे।उनके उद्बोधन की शिखर प्रस्तुति अप्रतिम होती थी।
2010 में आपने शासकीय महाराजा भोज स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को डॉ. तेजप्रकाश व्यास के प्राचार्यत्व काल में प्रेरक व्याख्यान दिया था। उस समय आपका और श्रीमती जोशी का महाविद्यालय की ओर से सारस्वत सम्मान किया गया था। डॉ. व्यास पीपलरावां से ही प्रभु जोशी के बचपन के मित्र रहे हैं।
प्रभु जोशी की पहली कहानी 1973 में धर्मयुग में 'किस हाथ से' प्रकाशित हुई। 'प्रभु जोशी की लंबी कहानियां' तथा 'उत्तम पुरुष' कथा संग्रह प्रकाशित हुए। 'नईदुनिया' के संपादकीय तथा फ़ीचर पृष्ठों का 5 वर्ष तक सफल संपादन किया। पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दी तथा अंग्रेज़ी में कहानियां और लेखों का अनवरत प्रकाशन भी हुआ। लेखन और चित्रकारी का बचपन से शौक रहा। आपकी जलरंग में विशेष रुचि थी।जिसने अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
लिंसिस्टोन तथा हरबर्ट में ऑस्ट्रेलिया के त्रिनाले में उनके जलरंगों की चित्र प्रदर्शनी आयोजित हुई। गैलरी फॉर कैलीफोर्निया (यूएसए) के जलरंग हेतु थॉमस मोरान अवॉर्ड प्रदान किया गया। ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी गैलरी, न्यूयॉर्क के टॉप 70 में शामिल है। भारत भवन का चित्रकला तथा मप्र साहित्य परिषद का कथा-कहानी के लिए अखिल भारतीय सम्मान प्राप्त किया।
साहित्य के लिए आपको मप्र संस्कृति विभाग द्वारा गजानन माधव मुक्तिबोध फैलोशिप अवॉर्ड दिया गया। बर्लिन में संपन्न जनसंचार के अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में आफ्टर ऑल हाऊ लांग रेडियो कार्यक्रम को जूरी का विशेष पुरस्कार मिला। धूमिल, मुक्तिबोध, सल्वाडोर डाली, पिकासो, कुमार गंधर्व तथा उस्ताद अमीर खां पर केंद्रित रेडियो कार्यक्रमों को आकाशवाणी के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
औरों को हंसते देखो मनु, हंसो और सुख पाओ,
अपने सुख को विस्तृत कर लो,
सबको सुखी बनाओ।
जय शंकर प्रसाद
कामायनी के कर्म सर्ग में सृजित रचना प्रभु जोशी के जीवन से साम्यता रखती है।
द्वितीय पुण्यतिथि पर मां सरस्वती के वरद पुत्र को श्रद्धायुत पुष्पांजलि, आदरांजलि, सुमनांजलि, श्रद्धांजलि, सलिलांजलि।