जानिए भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वालीं साहसी अरुणा आसफ अली के बारे में
बंगाली परिवार में जन्म लेने वाली लड़की का आजादी के लिए ऐसा जज्बा कि भर आएंगीं आंखें
Aruna Asif Ali: देश आजादी में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी और वतनपरस्ती में एक नाम अरुणा आसफ अली का भी दर्ज है। अरुणा आसफ़ अली देश की आजादी में अपना योगदान देने वाली कई बहादुर महिलाओं में से एक हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्हें ग्रैंड ओल्ड लेडी के नाम से संबोधित किया गया। 1942 के आंदोलन के समय उनकी बहादुरी के लिए उन्हें एक नायिका का दर्जा दिया गया।
9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गोवालिया टैंक मैदान बांबे में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को उन्होंने शान से फहराया। इस आलेख में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको अरुणा आसफ अली के बारे में बता रहे हैं। आइये जानते हैं कैसे उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।
ALSO READ: आखिर क्यों लाल किले से ही फहराया जाता है राष्ट्रीय ध्वज, जानिए इसके इतिहास की दास्तान अरुणा आसफ़ अली का जन्मअरुणा का जन्म 16 जुलाई 1909 में कालका नामक स्थान में हुआ था। ये जगह पहले पंजाब और अब हरियाणा का हिस्सा है। उनका असली नाम अरुणा गांगुली था और वह ब्राह्मण बंगाली परिवार से थीं। अरुणा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल से पूरी की थी। उन्होंने कलकत्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में एक शिक्षक के रूप में शुरुआत की।
नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी हुई थी शामिल
1928 में अरुणा ने अपनी उम्र से 21 साल बड़े इलाहाबाद कांग्रेस पार्टी के नेता आसफ अली से प्रेम विवाह किया था। जिसका उनके घर में काफी विरोध भी हुआ था। शादी के बाद ही वह कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बन गईं और आजादी के आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी।
अरुणा को 1930 में पहली बार नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उन पर खतरनाक होने का आरोप लगाया। जिसकी वजह से उन्हें लम्बे समय तक जेल में रहना पड़ा। 8 अगस्त 1942 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कांग्रेस सदस्यों कि इस प्रस्ताव के चलते उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश हो गया। अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त को गोवालिया टैंक मैदान मुंबई में कांग्रेस का झंडा फहराया। 1942 के आंदोलन के दौरान उनकी बहादुरी के लिए उन्हें नायिका का दर्जा दिया गया।
अरुणा ने शिक्षा के जरिए महिलाओं के उत्थान में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी साप्ताहिक पत्रिकाओं 'वीकली' और समाचार पत्र 'पैट्रियट' के माध्यम से महिलाओं की ज़िंदगी में बदलाव लाने का प्रयास किया।
अरूणा आसफ अली की जीवन यात्रा
देश को आजादी मिलने के बाद अरूणा आसफ अली कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की सदस्य बन चुकी थी। 1950 की बात वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गई। 1958 में अरुणा दिल्ली की पहली मेयर चुनी गई। 1975 में आपातकाल के दौरान वह इंदिरा और राजीव गांधी की करीबी बनी रही। 29 जुलाई 1996 को 87 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
अरूणा आसफ अली इन पुरस्कारों से हुईं सम्मानित
उन्हें 1965 में अंतरराष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार, 'ऑर्डर ऑफ़ लेनिन', जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, पद्म विभूषण और मृत्यु उपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।