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Written By भाषा

कबाड़ा, टेपा और महामूर्ख सम्मेलन

कबाड़ा, टेपा और महामूर्ख सम्मेलन - कबाड़ा, टेपा और महामूर्ख सम्मेलन
- वैभव माहेश्वरी
 
'बुरा न मानो होली है' के भाव के साथ होली पर रंगों की बौछार के साथ हास्य व्यंग्य के शब्द बाण भी छोड़े जाते हैं और जगह-जगह हास-परिहास पर आधारित आयोजनों में महामूर्ख जैसी उपाधियाँ दी जाती हैं। इस संबंध में मध्य प्रदेश के उज्जैन में होने वाला आयोजन कबाड़ा एक अनूठा कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में हर चीज हास्य का पुट देती है। इसके अलावा होली के मौके पर अनेक स्थानों पर महामूर्ख सम्मेलन भी होते हैं।
 
उज्जैन के प्रसिद्ध कवि ओम व्यास ने भाषा को बताया कबाड़ा की शुरूआत कुछ साल पहले की गई। जिस तरह से होली पर रंगों से आदमी का कबाड़ा हो जाता है उसी तरह इस कार्यक्रम में भी लोगों का हास्यात्मक कबाड़ा किया जाता है। होली के मौके पर अनेक आयोजनों में शामिल होने राजधानी आए व्यास ने कबाड़ा के बारे में बताया कि इस कार्यक्रम के निमंत्रण से ही हास्य की शुरूआत हो जाती है और इसे पढ़कर ही लोगों की हँ सी छूट जाती है। उनके अनुसार इसमें हास-परिहास का स्तर इस हद तक होता है कि कार्यक्रम के दौरान कब क्या हो जाए पता नहीं रहता।
 
प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि वैसे तो हास्य के लिए देश में हर समय ही वातावरण रहता है लेकिन होली का मौका थोड़ा अलग होता है। शर्मा ने राजधानी में होने वाले महामूर्ख सम्मेलन का जिक्र करते हुए बताया कि पहले काफी जोरशोर से रामलीला मैदान में अखिल भारतीय महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन होता था जिसमें हजारों लोग पहुँचते थे और किसी एक नेता को महामूर्ख की उपाधि दी जाती थी।
 
उन्होंने वर्तमान में हास्य की स्थिति पर निराशा जताते हुए कहा कि किसी को महामूर्ख की उपाधि देने का मकसद उसके स्वभाव पर चुटीले व्यंग्य कसकर उसे सजग करना होता है न कि लोगों को पीड़ा पहुँचाना। शर्मा के अनुसार व्यंग्य का कवि चौकीदार होता है जो हर सचाई को चुटीले अंदाज में प्रस्तुत कर सजगता दिखाता है वह क्षत्रिय नहीं होता जो लोगों को घायल कर दे।
 
ब्रज के कवि मनोज माहेश्वरी ठाकुर ने बताया कि होली के पर्व पर मस्ती के माहौल में लोग एक..दूसरे पर चुटीले व्यंग्य कसते हैं लेकिन ये सकारात्मक होते हैं और लोग इनका बुरा नहीं मानते। पिछले करीब डेढ़ दशक से हर साल होली के मौके पर काव्य गोष्ठी का संचालन करने वाले ठाकुर ने कहा खासतौर पर हास्य एवं व्यंग्य काव्य गोष्ठी में कवि को शब्दों के तीर तैयार रखने पड़ते हैं और अन्य कवियों की रचनाओं पर सकारात्मक चुटीली टिप्पणी करके श्रोताओं को आनंदित किया जाता है।
 
ओम व्यास ने बड़े मजाकिया अंदाज में कहा कि होली के आसपास आम पर बौर आता है तो आदमी भी बौरा जाता है। उज्जैन में करीब साढ़े तीन दशक से हर साल मूर्ख दिवस (एक अप्रैल) पर टेपा सम्मेलन का आयोजन होता है। डॉ. शिव शर्मा द्वारा आरंभ इस कार्यक्रम की ख्याति देश भर में है।
 
व्यास के मुताबिक मालवा की भाषा में टेपा का अर्थ होता है गाँव का भोला-भाला आदमी। इस सम्मेलन में किसी बड़ी हस्ती को बुलाकर टेपा की उपाधि दी जाती है। उन्होंने बताया कि उज्जैन महान व्यंग्यकार शरद जोशी की नगरी है और इस तरह के कार्यक्रमों की शुरूआत में उनकी विशेष भूमिका रही है। व्यास के मुताबिक इस बार टेपा की उपाधि से मुंबई के हास्य कवि आसकरण अटल को नवाजा जाएगा।
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