इस अनोखे मंदिर में होलिका नहीं, हिरण्यकश्यप का होता है दहन, जानिए कहां है ये मंदिर  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  Hiranyakashyap Dahan: होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आमतौर पर, इस दिन होलिका का दहन किया जाता है, लेकिन राजस्थान के कोटा जिले के कैथून में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां होलिका की जगह हिरण्यकश्यप का दहन किया जाता है। यह परंपरा विभीषण मंदिर में निभाई जाती है, जो अपने आप में एक अनूठा मंदिर है।
	 
				  																	
									  
	विभीषण मंदिर का महत्व
	विभीषण मंदिर कैथून का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर रावण के भाई विभीषण को समर्पित है। मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है और यह पर्यटकों को आकर्षित करती है।
				  
	कैथून के विभीषण मंदिर में होली के अवसर पर हिरण्यकश्यप का पुतला जलाया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि हिरण्यकश्यप का दहन बुराई का नाश करने का प्रतीक है।
	 
				  						
						
																							
									  
	हिरण्यकश्यप दहन का इतिहास
	हिरण्यकश्यप दहन की परंपरा का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था जो भगवान विष्णु से घृणा करता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कई बार मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की। अंत में, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  				  																	
									  
	क्या है पौराणिक कथा
	कोटा के कैथून कस्बे में मौजूद देश के एकमात्र विभीषण का मंदिर में हर साल बड़ी संख्या श्रद्धालु आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर लगभग 5000 हजार साल पुराना है। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम के राज्याभिषेक के समय जब शिवजी ने मृत्युलोक की सैर करने की इच्छा प्रकट की तो रावण के भाई विभीषण ने भगवान शंकर और हनुमान को कांवड़ पर बिठाकर सैर कराने का संकल्प लिया। तब शिवजी ने विभीषण के सामने शर्त रखी कि जहां भी उनका कांवड़ जमीन को छुएगा, यात्रा वहीं खत्म हो जाएगी। 
				  																	
									  
	 
	जब विभीषण शिवजी और हनुमान को लेकर यात्रा पर निकले तो कुछ स्थानों के भ्रमण के बाद विभीषण का पैर कैथून आकर धरती पर पड़ गया और यात्रा खत्म हो गई। कांवड़ का एक सिरा कैथून से करीब 12 किलोमीटर आगे चौरचौमा में और दूसरा हिस्सा कोटा के रंगबाड़ी इलाके में पड़ा। तभी रंगबाड़ी में भगवान हनुमान और चौरचौमा में शिव शंकर का मंदिर स्थापित किया गया। जहां विभीषण का पैर पड़ा, वहां विभीषण मंदिर का निर्माण करवाया गया।