होली का पर्व तो कई वर्षों से मनाया जा रहा है, लेकिन होली क्यों और कैसे मनाते है यह जानने के लिए आज भी लोग उत्सुक रहते हैं। होली अपने आप को पवित्र करने का पर्व है। इसलिए लोगों को इस पर्व पर सबसे पहले स्वयं को पवित्र करना चाहिए।
यूँ तो होली के पीछे हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की कहानी प्रचलित है। भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उसे गोद में लेकर वह अग्नि में बैठ गई थीं, जिसमें अधर्म की होली तो जल गई, लेकिन धर्मपरायण प्रहलाद सुरक्षित बच गए। इस पर्व पर मुख्य रूप से होली जलाना, रंग डालना, मिलना और गीत गाना ये चार बातें मुख्य हैं। कई सभ्य व शिक्षित लोग इसे हुड़दंग कहकर इसकी अवहेलना करते हैं, क्योंकि रंग डालते समय कई लोग एक-दूसरे पर कीचड़ भी डाल देते हैं।
पवित्रता का संकल्प लें : होली का अर्थ है पवित्र बनना। पवित्रता सुख शांति की जननी है, जहाँ पवित्रता की शक्ति है, वहाँ दुख, अशांति, तनाव, क्रोध और अहंकार ठहर नहीं सकता। लिहाजा हम स्वयं को पवित्र बनाने का संकल्प लें। यदि समाज के दस फीसदी लोग भी एक वर्ष के लिए होली के दिन पवित्रता का संकल्प लें तो भारत स्वर्ग बन जाएगा।
जलाएँ बुरे विचारों की होली : लोगों को अपने अंदर छुपे बुरे विचारों की होली को जलाना चाहिए। मन के भीतर छुपे ऐसे विचार जो आपको हमेशा परेशान और निराश करते हैं, ऐसे विचारों की होली जलाएँ, ताकि, आपका मन पावन, शांत, प्रसन्न और उत्साह से भर जाए।
अपने व्यक्तित्व का रंग दूसरों पर डालें: पानी में घुले रंग व गुलाल तो जनम-जनम तक एक-दूसरे पर डालकर कपड़े रंगते रहेंगे। अब जरूरत है मन को रंगने की। अपने व्यक्तित्व से दूसरों को ऐसे प्रभावित कीजिए की वह हमेशा आप को याद रखे।
कटुता भूलकर प्रेम बढ़ाएँ : साल का हर दिन एक पर्व की तरह ही होता है। अत: इस होली पर सभी को प्रेमभाव बढ़ाकर कटुता मिटाना चाहिए। अतीत को भूलकर अब सब मिल जाएँ। हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं। तो आइए होली के इस पावन पर्व पर अपने पवित्र मन से होली का रंगबिरंगी त्योहार मनाएँ।