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Written By ND

समाजशास्त्री

समाजशास्त्री -
- बीएल आच्छ
ND

वे दोनों घरेलू महिलाएँ थीं। पड़ोसन भी। चौके में बतियाए जा रही थीं।

'जानती हो उन्होंने आलीशान मकान ले लिया है।'

'हाँ, सुना है कि मिसेज बत्रा ने कार भी ले ली है।'
  जानती हो उन्होंने आलीशान मकान ले लिया है।' 'हाँ, सुना है कि मिसेज बत्रा ने कार भी ले ली है।' 'और तो और, फ्रीज-एसी भी एक्सचेंज में नए ले लिए हैं और पूरे हॉल में सोफा बनवा लिया है।'      


'और तो और, फ्रीज-एसी भी एक्सचेंज में नए ले लिए हैं और पूरे हॉल में सोफा बनवा लिया है।'

'हाँ, अब तो वे इतने बने-ठने इठलाते रहते हैं कि उनके घर जाने में संकोच होता है।'

उस समय बर्तन वाली भी कान लगाए फटाफट बर्तन माँजे जा रही थी। तभी कान जीभ तक पहुँच गया और बाई बोली- 'देखना आंटीजी अब ये लोग रिश्ते-नाते तो क्या, अपनी बात कहने के लिए भी तरस जाएँगे।' लगा कि तलहटी शिखर को देख रही थी।