आज शाम से मैंने अपनी छत पर गुलेल और कुछ कंकर इकट्ठा कर रख लिए थे। कल सुबह सूरज निकलने के पहले वह फूल तोड़ने आएगा तो उसके सिर पर गुलेल से वार करूंगा। ‘साला फूल चोर’ रोज मेरे बगीचे को उजाड़ जाता है, मैं बुदबुदाया। इतना ही पूजा में फूल चढ़ाने का शौक है तो अपने घर पर मेहनत कर क्यों नहीं पौधे लगाता। दूसरों की मेहनत पर ऐश करने वाले को सजा तो मैं खुद ही दूंगा।
वह हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं रहता है, पर मैं उसे व्यक्तिगत रूप से जानता नहीं हूं। अड़ोस पड़ोस से मालूम हुआ कि वह मार्निंग वाक के बहाने मोहल्ले में घूम-घूम कर फूल चुराता है और इसके लिए उसने तार की आंकोड़ा वाली सींक भी बनाई है, जिससे दूरी पर लगे फूल सींक में फंसा कर तोड़ सके। कल तो उसने हद ही कर दी। हमारे घर पर लगे सुंदर-सुंदर गुलाब तोड़ लिए, सींक से फूल खींचने के कारण गमला नीचे गिरकर टूट गया।
इस बात का जिक्र जब मैंने अपने पड़ोसियों से किया तब पता चला कौन यह हरकत करता है। हमारे मित्र की पत्नी ने तो मुझे उसका नाम और पता देते हुए यह भी बताया कि 'भाई साहब मैं तो एक दिन उसे चप्पल से पीटने उसके पीछे भागी थी पर वह तो हाथ ही नहीं आया।' मैं छत पर छिप कर उसके आने का इंतजार कर रहा था और मन ही मन सोच रहा था आने दो उसको आज उसका हिसाब बराबर जरूर कर दूंगा। यह कौन-सा तरीका है कि, दूसरे के घरों से फूल चुराकर उससे भगवान की पूजा करो। इससे अच्छा होता कि किसी माली की बंदी लगवा लेता। पर आजकल सबको फ्री में मजा करने की आदत जो है।
लगभग 1 से ढेढ़ घंटे मैं छत पर टहलता रहा। उसकी प्रतीक्षा करता रहा। फिर घर के अंदर से पत्नी ने आवाज दी, कब तक छत पर टहलते रहोगे और कोई काम नहीं है क्या, चाय तैयार है। मैं अपनी योजना को नाकाम होते देख बेमन से नीचे घर में आ गया।
पर वह आज आया क्यों नहीं? आता तो जरूर उसे मजा चखाता। यह सोचते-सोचते कब चाय खत्म कर ली समझ में ही नहीं आया। मैंने पत्नी से कहा सुनती हो मैं जरा घूम कर आता हूं, आज चाय में मजा नहीं आया। मेरे वापस आने पर फिर से अदरक की जरा कड़क चाय बनाना।
यह कह कर मैं घर से बाहर निकला और सीधा उसके घर की ओर जाने के लिए मुड़ा। रास्ते में पुन: भाभीजी मिल गई। नमस्कार के बाद उन्होंने पूछा 'आज तो फूल सही सलामत होंगे साहब?' मुझे लगा भाभीजी ने देख लिया होगा मुझे छत से बगीचे की निगरानी करते हुए। सो मैंने कहा आज वह फूल तोड़ने आता तो जरूर मार खाता ‘साला फूल चोर’।
भाभीजी ने थोड़ा सीरियस होकर बताया 'भाई साहब वह अब नहीं आएगा, सुबह-सुबह फूलों के साथ वह भगवान के पास पहुंच गया।’ मैं स्तब्ध रह गया सुन कर, अगले ही पल सब बदला-बदला नजर आने लगा। मन एकदम दुखी हो गया उसकी मृत्यु की खबर सुनकर। कुछ भी हो मौत एक शाश्वत सत्य है, जिसके सामने सब झूठ है, मृत्यु सारे गिले-शिकवे, द्वेष मिटा देती है और हर कोई मृत आत्मा की शांति की कामना करता है।
मैंने तुरंत घर जाना ही उचित समझा। घर आकर मैंने अपने गमलों पर नजर डाली। तरोताजा गुलाब के फूल रोज की तरह सूरज की लालिमा के साथ खिले हुए बहुत खुबसूरत दिखाई दे रहे थे पर फूलों में सुबह की मुस्कुराहट का भाव दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि उन्हें भी आभास हो गया था कि अब कोई उन्हें तोड़कर भगवान के मस्तक पर नहीं चढ़ाएगा और इस वजह से उन्हें इठलाने का भी मौका नहीं मिलेगा।
- दिलीप गोविलकर, खंडवा