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यह राख है
कुमार अंबुज इसका रंग राख का रंग हैइसका वजन राख का वजन हैजब सारी गंध उड़ जाती हैंतो राख की गंध बची रहती हैइसे मुट्ठी में भरोयह एक देह हैइसे छोड़ो, यह धीरे-धीरे झरेगीऔर हथेली में, लकीरों में बची रहेगीहर क्रूरता, अपमान, प्रेम और संपूर्णता के बादयही राख हैजो उड़कर आँखों में भरती हैइसे नदी में फेंक दो या खेतों मेंइसे पहाड़ों पर फेंक दो या समुद्र मेंयह हमेशा बनी रहती हैखून में, हड्डियों में, नींद मेंयह राख है तुम्हारे बाद भी यह यहीं रहेगी। साभार: पहल