नदी का जन्म होता
नदी श्रृंखला की कविताएँ-5
प्रेमशंकर रघुवंशी कोई भी पहाड़ीसीझती सिहरतीतो किसी न किसीनदी का जन्म होतादेखे हैं हमने - सतपुड़ा और अमरकंटक कीपहाड़ियों से अपने गाँव की कंदेली और नर्मदा के उद्गमऔर हर नदी के जन्म कीकोई न कोई कथा करुणा के रोमांच में डूबी होतीचाहे वह कालो रानी के आँसुओं सेभरी कंदेली हो याशोणभद्र और जोहला के छल सेचोट खाई नर्मदाऔर इन सबसे परेकूल-कछारों-मैदानों में जीवन रस भरतीरपटीली फिसलन के साथलहराती बल खाती मिलनातुर नदियाँदौड़ती जा रहीं वहाँजहाँ लहरों की अनंत बाँहें फैलाएसंगमन को खड़ा है नदीश!!साभार:पहल