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Written By WD

दस्तूर के मुताबिक

दस्तूर मुताबिक अनंत कविता
अनन्त मिश्र
NDND
डरे हुए लोग

डरी हुई बस्ती में

डरे-डरे आए

डरे-डरे रहे

और एक-एक कर चलते बने

मैं आया

उसी बस्ती में

लोगों को जगाया

और डरने से बचने के लिए

मैंने बहुत समझाया,

पर डरे हुए लोगों ने

मुझे भी बहुत डराया

और इतना डराया कि

कि मैं उनमें शरीक हो गया।

अब वे आश्वस्त हैं

और मैं डर-डर कर जी रहा हूँ

दुनिया के दस्तूर के मुताबिक।

साभार : दस्तावेज