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Written By WD

उसे मैं याद रहता हूँ

कृष्ण सुकुमार

कविता
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मुझे काबिल बहुत समझा गया मक्कार रहने तक
सुधरने पर सजाएँ दी गईं इंकार रहने तक

दिया उसने मुझे एहसास अपनापन भरा लेकिन
मुझे उसकी तरफ उसके लिए तैयार रहने तक

मिटे जब फासले तो जानना ही हो गया मुश्किल
उसे थोड़ा-बहुत समझा गया दीवार रहने तक

न जाने कौन से एहसान में दबकर हमेशा वो
मुझे बरदाश्त करता है मेरे बेज़ार रहने तक

ख़रीदे और बेचे जा रहे हैं आपसी रिश्ते
सभी संबंध कायम मगर बाज़ार रहने तक

हमेशा दोस्ती में जान की बाजी लगाता हूँ
मगर मैं साथ देता हूँ फ़क़त खुद्‍दार रहने तक

वो कायल है ज़ियादा ही मेरी तीमारदारी का
उसे मैं याद रहता हूँ मगर बीमार रहने तक

साभार : प्रयास